पटना हाई कोर्ट ने जिला पदाधिकारी, पटना द्वारा फर्म की अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग को रद्द किया, प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन माना

पटना हाई कोर्ट ने जिला पदाधिकारी, पटना द्वारा फर्म की अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग को रद्द किया, प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन माना

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक जनसंपर्क एवं मीडिया कार्य से जुड़ी फर्म की अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग (सदा के लिए प्रतिबंध) को रद्द कर दिया। यह आदेश जिला पदाधिकारी, पटना द्वारा जारी किया गया था। कोर्ट ने कहा कि यह कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है और पहले के न्यायिक आदेशों की अवहेलना करती है।

याचिकाकर्ता एक एकल स्वामित्व वाली फर्म है, जिसने सरकारी निविदा (Bid No. P.R.-2355 Jila 22-23) में भाग लिया था। नियमानुसार निविदा के साथ उन्होंने अर्नेस्ट मनी (जमानत राशि) जमा की थी।

लेकिन 23 जुलाई 2022 को जिला पदाधिकारी, पटना ने मेमो संख्या 1538/Nazo0 जारी कर आदेश दिया कि —

  • याचिकाकर्ता की अर्नेस्ट मनी जब्त की जाए,
  • फर्म को अनिश्चितकाल के लिए ब्लैकलिस्ट किया जाए,
  • यह सूचना सभी संबंधित विभागों को भेजी जाए।

याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में अपील की और कहा —

  • उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया।
  • आदेश मनमाना और बिना कारण के था।
  • ब्लैकलिस्टिंग एक तरह का स्थायी पेशेवर प्रतिबंध है, जिसका कोई औचित्य नहीं बताया गया।
  • आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(g) का उल्लंघन करता है।

कोर्ट ने पाया कि —

  1. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि कोई सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
  2. कारणहीन आदेश जारी किया गया, जिसमें गंभीर दंड के लिए कोई ठोस वजह नहीं दी गई।
  3. पहले दिए गए फैसले (रमन कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम, CWJC No. 16989/2017, 20.02.2018) की अनदेखी की गई, जिसमें इसी तरह की अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग रद्द की गई थी।
  4. अनुपात का सिद्धांत लागू नहीं किया गया — यानी अपराध और सजा का संतुलन नहीं रखा गया।
  5. ब्लैकलिस्टिंग से नागरिक और दंडात्मक, दोनों प्रकार के परिणाम होते हैं, इसलिए इसमें कड़ी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।

इन कारणों से कोर्ट ने 23 जुलाई 2022 का आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को भविष्य की निविदाओं में भाग लेने की अनुमति बहाल कर दी।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि —

  • कारण बताओ नोटिस और सुनवाई का अवसर दिए बिना ब्लैकलिस्टिंग नहीं की जा सकती।
  • बिना कारण दिए गए आदेश अदालत में टिक नहीं सकते।
  • अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग आम तौर पर अनुपातहीन और गैरकानूनी है।
  • सरकारी अधिकारियों को समान मामलों में पहले के हाई कोर्ट के फैसलों का पालन करना होगा।
  • अनुपात का सिद्धांत हर प्रशासनिक सजा में लागू होना चाहिए।

ठेकेदारों और एजेंसियों के लिए यह संदेश है कि यदि उन्हें बिना सुनवाई के ब्लैकलिस्ट किया गया है, तो वे इसे चुनौती दे सकते हैं। वहीं, प्रशासन के लिए यह चेतावनी है कि जल्दबाजी में और बिना कानूनी प्रक्रिया के सजा देने से बचना चाहिए।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या बिना नोटिस और कारण बताए किसी फर्म को अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
    ⮕ नहीं, यह प्राकृतिक न्याय और अनुपात के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
  • क्या पहले के हाई कोर्ट के आदेश समान मामलों में बाध्यकारी होते हैं?
    ⮕ हां, उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • रमन कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम, CWJC No. 16989 of 2017 (20.02.2018)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • रमन कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम, CWJC No. 16989 of 2017

मामले का शीर्षक

M/s Madhup Info Solutions बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 12312 of 2022

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय श्री न्यायमूर्ति सत्यव्रत वर्मा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

याचिकाकर्ता की ओर से: श्री पी.के. शाही, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री मृत्तुंजय कुमार, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: श्री एस.के. मंडल, SC-3

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/24bc8af7-4164-4502-bf13-3f2c798403ee.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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