पटना उच्च न्यायालय का फैसला: अनुबंध पर कार्यरत अस्पताल प्रबंधक की सेवा समाप्ति रद्द

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: अनुबंध पर कार्यरत अस्पताल प्रबंधक की सेवा समाप्ति रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक अनुबंध पर कार्यरत अस्पताल प्रबंधक (Hospital Manager) की सेवा समाप्ति को रद्द करते हुए कहा कि जिला स्वास्थ्य समिति, पश्चिम चंपारण द्वारा किया गया यह निर्णय न्यायसंगत नहीं था। अदालत ने पाया कि (1) अंतिम शो-कॉज नोटिस में जो आरोप लगाए गए थे, समाप्ति आदेश उन सीमाओं से आगे चला गया, (2) जवाब देने के लिए केवल दो दिन का समय दिया गया, और (3) नोटिस का भाषा-शैली यह दर्शाती थी कि अधिकारी का मन पहले से तय था। इसलिए पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांतों के विपरीत थी।

यह मामला एक अस्पताल प्रबंधक से जुड़ा था जो जिला स्वास्थ्य समिति के अंतर्गत कार्यरत थे। उन पर अस्पताल प्रशासन, दवाओं की उपलब्धता और कार्यप्रणाली को लेकर कई बार कारण बताओ नोटिस (show-cause notice) जारी किए गए। उन्होंने प्रत्येक नोटिस का उत्तर दिया। परंतु अंत में 19.10.2019 को जारी अंतिम नोटिस पर उचित विचार किए बिना 03.02.2020 को सेवा समाप्ति का आदेश दे दिया गया।

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने यह पाया कि यह आदेश कानून के अनुरूप नहीं है। अदालत ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति से जवाब मांगा गया है, तो निर्णय उन्हीं बिंदुओं पर आधारित होना चाहिए। अधिकारी को केवल उन्हीं आरोपों पर विचार करना चाहिए जो नोटिस में लिखे गए हैं, अन्यथा आदेश अवैध हो जाता है।

इसके अलावा, कर्मचारी को केवल दो दिन का समय देना यह दिखाता है कि अधिकारियों ने उसे वास्तविक अवसर (real opportunity) नहीं दिया। अदालत ने कहा कि इतने कम समय में कोई भी व्यक्ति अपना पक्ष सही ढंग से नहीं रख सकता, इसलिए यह “प्राकृतिक न्याय” का उल्लंघन है।

एक और महत्वपूर्ण पहलू यह था कि कारण बताओ नोटिस की भाषा से यह स्पष्ट था कि अधिकारी का मन पहले से बना हुआ था। शो-कॉज नोटिस का उद्देश्य किसी व्यक्ति को मौका देना होता है कि वह अपना पक्ष रख सके। यदि नोटिस में ही यह कहा जाए कि “आरोप सिद्ध हैं” या “आप दोषी पाए गए हैं”, तो यह केवल औपचारिकता बन जाती है। न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के पुराने निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि ऐसा नोटिस “पूर्वाग्रहपूर्ण” (prejudged) माना जाता है और अमान्य होता है।

अंततः न्यायालय ने 03.02.2020 की समाप्ति आदेश को निरस्त कर दिया और संबंधित अधिकारियों को यह स्वतंत्रता दी कि यदि वे चाहें तो नए सिरे से, कानून के अनुसार, उचित प्रक्रिया अपनाकर कार्यवाही कर सकते हैं।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला उन सभी लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो सरकारी योजनाओं, स्वास्थ्य समितियों या परियोजनाओं में अनुबंध पर काम कर रहे हैं। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सरकार या उसकी संस्थाएँ किसी भी कर्मचारी को मनमाने ढंग से नहीं हटा सकतीं। यदि किसी पर आरोप लगाए जाते हैं, तो अधिकारी को चाहिए कि—

  1. आरोपों को स्पष्ट और सीमित दायरे में लिखें,
  2. कर्मचारी को पर्याप्त समय और अवसर दें,
  3. निर्णय उन्हीं आरोपों पर दें जिन पर जवाब मांगा गया था,
  4. निर्णय निष्पक्ष और तर्कसंगत रूप से दें।

यदि ये सिद्धांत नहीं अपनाए जाते, तो अदालतें ऐसे आदेशों को निरस्त कर सकती हैं।

सरकारी विभागों के लिए यह फैसला एक दिशानिर्देश की तरह है। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुबंध पर कार्यरत कर्मचारी को भी निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार मिले। इससे प्रशासनिक निर्णयों की विश्वसनीयता बढ़ती है और न्यायिक हस्तक्षेप की संभावना कम होती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या समाप्ति आदेश शो-कॉज नोटिस की सीमाओं से परे जा सकता है?
    ✦ नहीं। अदालत ने कहा कि किसी कर्मचारी को केवल उन्हीं आरोपों पर जवाब देना होता है जो नोटिस में दिए गए हैं। इसके बाहर के आधारों पर दंड देना कानूनन गलत है।
  • क्या केवल दो दिन का समय देना पर्याप्त अवसर माना जाएगा?
    ✦ नहीं। न्यायालय ने कहा कि यह बहुत कम समय है और इससे व्यक्ति अपने बचाव का अधिकार खो देता है।
  • क्या कारण बताओ नोटिस में अधिकारी का पूर्वाग्रह झलक रहा था?
    ✦ हाँ। अदालत ने माना कि नोटिस की भाषा से ऐसा लगता था कि अधिकारी पहले से ही निर्णय ले चुका था, इसलिए यह प्रक्रिया पक्षपाती थी।
  • अंतिम राहत क्या दी गई?
    ✦ सेवा समाप्ति आदेश दिनांक 03.02.2020 को निरस्त किया गया और अधिकारियों को स्वतंत्रता दी गई कि वे उचित प्रक्रिया अपनाकर दोबारा कार्यवाही कर सकते हैं।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • GRIDCO Limited & Anr. v. Sadananda Dolai & Ors., (2011) 15 SCC 16 — इस निर्णय के आधार पर कहा गया कि जब सरकारी संस्था अनुबंध समाप्त करती है और उसमें अनुचितता या पक्षपात हो, तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।
  • Oryx Fisheries (P) Ltd. v. Union of India, (2010) 13 SCC 427 — यह सिद्धांत दिया गया कि कारण बताओ नोटिस निष्पक्ष होना चाहिए और उसमें पूर्वाग्रह नहीं झलकना चाहिए।
  • Nasir Ahmad v. Assistant Custodian General, Evacuee Property & Anr., (1980) 3 SCC 1 — यह कहा गया कि यदि निर्णय नोटिस से आगे जाकर दिया गया है, तो वह अवैध होता है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Oryx Fisheries (P) Ltd. v. Union of India, (2010) 13 SCC 427 — अदालत ने इस पर भरोसा करते हुए कहा कि नोटिस निष्पक्ष और खुले मन से जारी किया जाना चाहिए।
  • Nasir Ahmad v. Assistant Custodian General, Evacuee Property & Anr., (1980) 3 SCC 1 — अदालत ने कहा कि कोई भी कार्रवाई नोटिस की सीमाओं से आगे नहीं जा सकती।

मामले का शीर्षक
Rahul Kumar v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7015 of 2020

उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 400

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सत्यव्रत वर्मा, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्री राजेश्वर सिंह, सरकारी अधिवक्ता (GA-10)

निर्णय का लिंक
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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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