निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के कथित अपहरण के मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को बरी कर दिया। पहले ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 366A के तहत दोषी मानते हुए सात साल की सजा और ₹30,000 का जुर्माना लगाया था। आरोपी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
मामला 2009 का है जब पीड़िता के पिता ने प्राथमिकी दर्ज कराई कि उनकी 15 वर्षीय बेटी स्कूल जाते वक्त अचानक लापता हो गई। छोटी बहन रोती हुई घर लौटी और बताया कि एक व्यक्ति (जिसे बाद में आरोपी बताया गया) ने उसकी बहन को ज़बरदस्ती गाड़ी में बैठाकर ले गया।
पुलिस ने उसी दिन दोपहर में आरोपी और लड़की को बलिया चौक से बरामद किया। लड़की ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे शादी के लिए मंदिर में ले जाकर जबरन सिंदूर लगाया और रात वहीं बिताई। मेडिकल जांच में लड़की की उम्र 15–16 साल बताई गई।
मामले की सुनवाई में कुल 11 गवाहों को प्रस्तुत किया गया। इनमें से चार स्वतंत्र गवाहों को सरकारी वकील ने “शत्रु पक्ष” घोषित कर दिया क्योंकि उन्होंने अभियोजन पक्ष के दावे का समर्थन नहीं किया। मुख्य गवाहों में पीड़िता, उसकी मां, बहन और पिता शामिल थे। लेकिन अदालत ने पाया कि इन गवाहों की गवाही में कई विरोधाभास हैं और सभी पारिवारिक रिश्तेदार हैं, जिन्हें “स्वार्थी गवाह” माना गया।
जांच के दौरान कई गवाहों ने स्वीकार किया कि लड़की खुद अपनी नानी के घर गई थी। अदालत ने देखा कि कोई स्वतंत्र साक्ष्य नहीं है जिससे यह सिद्ध हो कि लड़की को जबरन अगवा किया गया। ट्रायल कोर्ट ने इन विरोधाभासों की सही जांच नहीं की और आरोपी को दोषी ठहराया।
पटना हाईकोर्ट ने सबूतों की गहराई से समीक्षा के बाद पाया कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में असफल रहा और आरोपी को बरी कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता को रेखांकित करता है। अदालत ने दोहराया कि किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए ठोस, स्वतंत्र और भरोसेमंद साक्ष्य आवश्यक हैं। यह निर्णय यह भी स्पष्ट करता है कि नाबालिग से जुड़े मामलों में अदालत गंभीरता से सुनवाई करती है, लेकिन साथ ही अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी है कि वह ठोस सबूत प्रस्तुत करे। आम जनता के लिए यह संदेश है कि केवल आरोपों के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती जब तक कि सबूत पूरी तरह से सिद्ध न हों।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या आरोपी ने नाबालिग लड़की का अपहरण किया था?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं, अभियोजन पक्ष पर्याप्त प्रमाण नहीं दे सका।
- क्या गवाहों की गवाही विश्वसनीय और सुसंगत थी?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं, गवाहों की गवाही में विरोधाभास और स्वार्थ दिखा।
- क्या ट्रायल कोर्ट ने न्यायिक मानकों का पालन किया?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं, विरोधाभासी साक्ष्यों की अनदेखी की गई।
- अंतिम निर्णय: सजा रद्द, आरोपी को बरी किया गया और जमानत से मुक्त किया गया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Sudhir Yadav & Ors. v. State of Bihar, 2003(3) PCCR 85
- Unnamed Case, 2005(3) East Criminal Cases 256 Patna
मामले का शीर्षक
Dilip Thakur v. The State of Bihar
केस नंबर
Criminal Appeal (SJ) No. 360 of 2013
उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 178
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री अनिरुद्ध कुमार सिन्हा, अधिवक्ता – अपीलकर्ता की ओर से
- श्री अनिल कुमार सिंह (नं. 6), अधिवक्ता – अपीलकर्ता की ओर से
- सुश्री अनीता कुमारी सिंह, सहायक लोक अभियोजक – राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
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