पटना उच्च न्यायालय ने गलत प्रक्रिया अपनाने पर राज्य सरकार की अपील खारिज की

पटना उच्च न्यायालय ने गलत प्रक्रिया अपनाने पर राज्य सरकार की अपील खारिज की

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला बिहार सरकार और एक निजी निर्माण कंपनी के बीच हुए अनुबंध से संबंधित है। यह अनुबंध सड़क निर्माण विभाग, गोपालगंज के तहत किया गया था। पटना उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एकल मध्यस्थ ने 4 जून 2005 को कंपनी के पक्ष में आर्बिट्रल अवार्ड (मध्यस्थ निर्णय) दिया।

पृष्ठभूमि
आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट, 1996 के अनुसार, किसी आर्बिट्रल अवार्ड को चुनौती देने का सही तरीका धारा 34 के तहत मूल अधिकार क्षेत्र वाली प्रधान सिविल अदालत (आमतौर पर जिला न्यायाधीश) के समक्ष आवेदन दायर करना है। लेकिन राज्य सरकार ने ऐसा करने के बजाय गोपालगंज के उप-न्यायाधीश की अदालत में एक टाइटल सूट दायर किया और अवार्ड को अमान्य घोषित करने की मांग की।

निर्माण कंपनी ने इस मुकदमे की ग्राह्यता पर आपत्ति जताई और कहा कि उप-न्यायाधीश के पास इस तरह के मामले सुनने का अधिकार नहीं है। अंततः 15 अप्रैल 2015 को उप-न्यायाधीश ने यह मुकदमा खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि उनके पास अधिकार क्षेत्र नहीं है और दावे के गुण भी साबित नहीं हुए।

इसके बाद राज्य ने इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की। अपील के दौरान, राज्य ने इस मामले को आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 37(1)(b) के तहत मिसलेनियस अपील में बदलने का प्रयास किया, लेकिन उच्च न्यायालय ने पाया कि शुरुआत में अपनाई गई गलत प्रक्रिया इतनी गंभीर थी कि केवल नाम बदलने से इसे सही नहीं किया जा सकता था।

उच्च न्यायालय की टिप्पणी

  • आर्बिट्रल अवार्ड को चुनौती देने का एकमात्र सही तरीका धारा 34 के तहत जिला न्यायाधीश के समक्ष याचिका है, न कि उप-न्यायाधीश के समक्ष दीवानी वाद।
  • राज्य ने 2012 में मुकदमे को धारा 34 की याचिका में बदलने का आवेदन दिया था, जिसे 2013 में खारिज कर दिया गया और इस आदेश को कभी चुनौती नहीं दी गई।
  • अदालत ने Shivam Housing Pvt. Ltd. v. Thakur Mithilesh Kumar Singh (2015) 3 PLJR 876 का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि केवल जिला न्यायाधीश ही धारा 34 की याचिका सुन सकते हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले — State of West Bengal v. Associated Contractors (2015) 1 SCC 32 और State of Jharkhand v. Hindustan Construction Co. (2018) 2 SCC 602 — ने भी यही सिद्धांत दोहराया।

अदालत का निर्णय
उच्च न्यायालय ने राज्य की अपील खारिज कर दी और कहा कि शुरू से ही अपनाई गई गलत प्रक्रिया को अपील के माध्यम से सुधारा नहीं जा सकता। निचली अदालत का रिकॉर्ड वापस करने का आदेश दिया गया।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • यह फैसला दोहराता है कि आर्बिट्रल अवार्ड को केवल आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 34 के तहत ही चुनौती दी जा सकती है।
  • स्पष्ट करता है कि मूल अधिकार क्षेत्र वाली प्रधान सिविल अदालत (आमतौर पर जिला न्यायाधीश) के पास ही इस तरह के मामलों में अधिकार है।
  • सरकारी विभागों और पक्षकारों के लिए चेतावनी है कि गलत कानूनी उपाय अपनाने से मामला तकनीकी आधार पर भी खारिज हो सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या उप-न्यायाधीश के समक्ष दीवानी वाद दायर कर आर्बिट्रल अवार्ड को चुनौती दी जा सकती है?
    ✘ नहीं। धारा 34 के तहत केवल जिला न्यायाधीश के समक्ष याचिका दायर की जा सकती है।
  • क्या मुकदमे को अपील में बदलकर गलती सुधारी जा सकती थी?
    ✘ नहीं। प्रारंभिक गलती और 2013 के आदेश को चुनौती न देने की चूक घातक रही।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • State of West Bengal & Ors. v. Associated Contractors, (2015) 1 SCC 32
  • State of Jharkhand & Ors. v. Hindustan Construction Co., (2018) 2 SCC 602
  • Shivam Housing Pvt. Ltd. & Anr. v. Thakur Mithilesh Kumar Singh & Anr., 2015 (3) PLJR 876

मामले का शीर्षक
State of Bihar बनाम M/s Bhaibhaw Construction Pvt. Ltd.

केस नंबर
Miscellaneous Appeal No. 272 of 2015

उद्धरण (Citation)
2020 (3) PLJR 278

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति ज्योति सरन
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
राज्य की ओर से: श्री बिनोद कुमार, AC to GP-10
प्रतिवादी कंपनी की ओर से: श्री नंद किशोर सिंह, श्री जितेंद्र कुमार, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MiMyNzIjMjAxNSMxI04=-k1pY49HgYSM=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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