मध्यस्थता पुरस्कार को चुनौती देने का अधिकारिक न्यायालय कौन? पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

मध्यस्थता पुरस्कार को चुनौती देने का अधिकारिक न्यायालय कौन? पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया है कि मध्यस्थता (arbitration) के निर्णय को चुनौती देने के लिए कौन-सा न्यायालय उपयुक्त है। यह मामला राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा भूमि अधिग्रहण मुआवजे को लेकर दिए गए एक मध्यस्थता निर्णय के खिलाफ दायर याचिका से संबंधित था।

NHAI ने भूमि अधिग्रहण अधिकारी द्वारा दिए गए मुआवजे के खिलाफ सेक्शन 34 के तहत एक याचिका दायर की थी, जिसमें मध्यस्थता निर्णय को रद्द करने की मांग की गई थी। यह याचिका सुपौल के सब-जज (Sub Judge) के समक्ष दायर की गई थी। सब-जज ने याचिका को खारिज कर दिया।

इसके बाद NHAI ने पटना हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट ने माना कि सब-जज के पास इस प्रकार के मामले सुनने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि मध्यस्थता अधिनियम, 1996 की धारा 2(1)(e) के अनुसार, केवल “मूल अधिकार क्षेत्र वाला प्रधान सिविल न्यायालय” (Principal Civil Court of Original Jurisdiction), यानी ज़िला न्यायाधीश, ही ऐसे मामलों की सुनवाई कर सकता है।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यह नियम सामान्य सिविल मामलों पर लागू प्रक्रिया संहिता (CPC) से अलग है। CPC के अनुसार आम मामलों को सबसे निचले स्तर के सक्षम न्यायालय में दायर किया जा सकता है, लेकिन मध्यस्थता अधिनियम एक विशेष कानून है, और इसके अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया का पालन आवश्यक है।

अतः हाईकोर्ट ने सब-जज द्वारा पारित आदेश को अवैध ठहराया और उसे रद्द करते हुए पूरा मामला ज़िला न्यायाधीश, सुपौल को भेज दिया। हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि ज़िला न्यायाधीश इस मामले का निपटारा दो महीने के भीतर करें।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी प्राधिकरणों, खासकर भूमि अधिग्रहण मामलों में शामिल पक्षों के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह स्पष्ट करता है कि मध्यस्थता निर्णय को चुनौती देने के लिए केवल ज़िला न्यायाधीश के पास ही अधिकार है, जिससे प्रक्रिया संबंधी त्रुटियों और तकनीकी अड़चनों से बचा जा सके।

आम जनता, विशेष रूप से वे लोग जिनकी ज़मीन अधिग्रहण की गई है, के लिए यह निर्णय राहतकारी है क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होता है कि उनकी याचिकाएं सही न्यायालय में सुनी जाएंगी और समय पर न्याय मिलेगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या सब-जज के पास मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत याचिका सुनने का अधिकार है?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं। यह अधिकार केवल ज़िला न्यायाधीश के पास है।
    • कारण: मध्यस्थता अधिनियम की धारा 2(1)(e) में “न्यायालय” को विशेष रूप से “Principal Civil Court” के रूप में परिभाषित किया गया है, जो सब-जज को शामिल नहीं करता।
  • क्या सब-जज द्वारा याचिका खारिज करना वैध था?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं। चूंकि आदेश अधिकार क्षेत्र के बाहर पारित हुआ था, वह अमान्य है।
  • उचित समाधान क्या था?
    • न्यायालय की कार्रवाई: मामले को ज़िला न्यायाधीश, सुपौल को स्थानांतरित कर दिया गया और समयबद्ध निर्णय का निर्देश दिया गया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Shivam Housing Pvt. Ltd. v. Thakur Mithilesh Kumar Singh, 2015(3) PLJR 876

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Shivam Housing Pvt. Ltd. v. Thakur Mithilesh Kumar Singh, 2015(3) PLJR 876

मामले का शीर्षक

National Highway Authority of India बनाम Debu Mahaseth एवं अन्य

केस नंबर

Miscellaneous Appeal No. 33 of 2014

उद्धरण (Citation)

2020 (3) PLJR 67

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • अपीलकर्ता की ओर से: श्री कुमार गौतम, अधिवक्ता
  • प्रतिवादियों की ओर से: श्री अमृत अभिजात, श्री मनोज कुमार गुप्ता एवं श्री घनश्याम, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MiMzMyMyMDE0IzEjTg==-3JjZWeUk–am1–xs=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News