पटना हाई कोर्ट ने वेतन और पेंशन बकाया के हक में सुनाया फैसला

पटना हाई कोर्ट ने वेतन और पेंशन बकाया के हक में सुनाया फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सेवानिवृत्त गैर-शिक्षण कर्मचारी को उसका लंबित वेतन, पेंशन और अन्य वित्तीय लाभ देने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के अधीनस्थ आर. के. कॉलेज, मधुबनी में “असिस्टेंट” के पद से 31 दिसंबर 2010 को सेवानिवृत्त हुए थे।

सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें निम्नलिखित भुगतान नहीं किया गया:

  1. वर्ष 1989 से 2010 तक का वेतन अंतर (लगभग ₹19.79 लाख),
  2. उच्च वेतनमान (₹15,600–39,100 + ग्रेड पे ₹7,600) के अनुसार पेंशन, ग्रेच्युटी और अर्जित अवकाश भुगतान,
  3. समूह बीमा अंशदान (GIC) और महंगाई भत्ते (DDA) पर 9% चक्रवृद्धि ब्याज,
  4. विलंबित भुगतान पर ब्याज।

कॉलेज द्वारा तय की गई बकाया राशि विश्वविद्यालय को भेजी गई थी, लेकिन “Pay Verification Cell” ने उनकी वेतन श्रेणी घटाकर ₹4000–6000 कर दी, यह कहते हुए कि वे केवल “Lower Divisional Assistant” (निचले स्तर के लिपिक) थे, न कि “असिस्टेंट”।

न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि “Statutory Pay Fixation Committee” की सिफारिशें अंतिम हैं और राज्य सरकार की वेतन सत्यापन इकाई को गैर-शिक्षण कर्मचारियों के वेतन निर्धारण में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि “असिस्टेंट” और “लिपिक” के बीच कोई व्यावहारिक अंतर नहीं है।

एक अन्य मामले (CWJC No. 22953 of 2018) में पहले ही यह तय हो चुका है कि बिहार सरकार के ACP नियम 2003, विश्वविद्यालयों के गैर-शिक्षण कर्मियों पर भी लागू होते हैं। साथ ही, राज्य सरकार ने 1 जुलाई 1981 से सभी विश्वविद्यालयों (पटना विश्वविद्यालय को छोड़कर) के गैर-शिक्षण तृतीय वर्ग कर्मियों के वेतनमान को समान रूप से लागू करने का निर्णय पहले ही ले रखा है।

कोर्ट ने आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर याचिकाकर्ता को पूरा बकाया वेतन, पेंशन और अन्य वित्तीय लाभ दिए जाएं।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार के विश्वविद्यालयों और अंगीभूत महाविद्यालयों में कार्यरत गैर-शिक्षण सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि एक बार वेतन निर्धारण समिति द्वारा कोई वेतनमान तय हो जाने के बाद, अन्य प्रशासनिक इकाइयाँ उसे बदल नहीं सकतीं।

यह निर्णय प्रशासनिक पारदर्शिता और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मजबूत कदम है। इससे अन्य प्रभावित कर्मचारी भी अपने हक के लिए कानूनी रास्ता अपना सकते हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या याचिकाकर्ता उच्च वेतनमान पर वेतन और पेंशन पाने के हकदार हैं?
    ✔ हां, कोर्ट ने वेतन निर्धारण समिति की सिफारिश को मान्यता दी।
  • क्या Pay Verification Cell को वेतन निर्धारण बदलने का अधिकार है?
    ✔ नहीं, कोर्ट ने कहा कि इसका कोई अधिकार नहीं है।
  • क्या ACP नियम 2003 गैर-शिक्षण विश्वविद्यालय कर्मचारियों पर लागू होते हैं?
    ✔ हां, पहले से तय फैसले के अनुसार लागू होते हैं।
  • क्या विलंबित भुगतान पर ब्याज और GIC, DDA पर चक्रवृद्धि ब्याज देना अनिवार्य है?
    ✔ हां, कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • प्रो. सुरेंद्र बहादुर सिंह बनाम बिहार राज्य, 2006 SCC OnLine Pat 739

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • CWJC No. 22953 of 2018 और संबंधित मामले, दिनांक 18 अक्टूबर 2024

मामले का शीर्षक

CWJC No. 992 of 2020

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 992 of 2020

उद्धरण (Citation)- 2025 (1) PLJR 245

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति विवेक चौधरी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री शशि भूषण सिंह – याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री बिंध्याचल राय – विश्वविद्यालय की ओर से
  • श्री राजीव रंजन (AC to GP 20) एवं श्री मादनजीत कुमार (GP 20) – राज्य सरकार की ओर से

निर्णय का लिंक

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“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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