निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी को बिना विभागीय जांच के सेवा से हटाना असंवैधानिक है, जब तक यह स्पष्ट रूप से दर्ज न किया जाए कि जांच करना “व्यवहारिक रूप से संभव नहीं” है।
यह मामला बिहार सैन्य पुलिस (Bihar Military Police) के एक जवान से जुड़ा था जिसे शराब पीने और ड्यूटी के दौरान अनुशासनहीन व्यवहार करने के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया था।
याचिकाकर्ता, जो बिहार सैन्य पुलिस में कार्यरत था, किशनगंज के आदर्श थाना में तैनात था। 26 मई 2020 की रात उसे नशे की हालत में हंगामा करते हुए पाया गया — यह रिपोर्ट किशनगंज के पुलिस अधीक्षक ने भेजी थी। मेडिकल जांच में उसके शरीर में शराब की मात्रा पाई गई थी और कहा गया कि उसने साथी अधिकारियों से बदसलूकी की।
इसके आधार पर कमांडेंट, बिहार सैन्य पुलिस-12, सहरसा ने 31 मई 2020 को उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया। आदेश अनुच्छेद 311(2)(b) संविधान, बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियमावली 2005, और बिहार पुलिस मैनुअल वॉल्यूम-3 के अनुच्छेद 49(10)(ii) के तहत पारित किया गया। इन प्रावधानों के तहत, विभागीय जांच तभी छोड़ी जा सकती है जब यह साबित हो कि जांच करना संभव नहीं है।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से वकील ने कहा:
- उसे उचित अवसर और समय नहीं दिया गया कि वह अपनी सफाई पेश कर सके।
- अधिकारी ने बिना किसी ठोस कारण के अनुच्छेद 311(2)(b) का उपयोग किया।
- उसने अपनी सफाई में कहा कि ईद के रोजे के कारण कमजोरी थी और उसने केवल होम्योपैथिक दवा ली थी, शराब नहीं पी थी।
- अल्कोमीटर में 3.04% की रीडिंग शराब सेवन का अंतिम सबूत नहीं हो सकती।
- पूरी कार्रवाई जल्दबाजी, पूर्वाग्रह और संविधान के विपरीत थी।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मशहूर फैसले Union of India v. Tulsiram Patel (1985) 3 SCC 398 पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि किसी कर्मचारी को बिना जांच के बर्खास्त करने से पहले यह लिखित रूप में दर्ज करना जरूरी है कि जांच करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।
राज्य की दलीलें
राज्य की ओर से कहा गया कि बिहार सरकार ने निषेध कानून (Bihar Prohibition and Excise Act, 2016) लागू करने के बाद सरकारी कर्मचारियों, खासकर पुलिस बल, के आचरण पर सख्त नीति अपनाई है।
- शराब पीना अब दंडनीय अपराध है (धारा 37(c) के तहत)।
- पुलिस बल “अनुशासित सेवा” है, इसलिए इसका आचरण आदर्श होना चाहिए।
- 26 मार्च 2019 को बिहार पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी परिपत्र के अनुसार, किसी भी पुलिसकर्मी को शराब पीते पाए जाने पर तुरंत सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है।
न्यायालय का विश्लेषण
माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 311(2) यह सुनिश्चित करता है कि किसी सरकारी कर्मचारी को सेवा से हटाने से पहले उसे सुनवाई का अवसर दिया जाए।
यह सुरक्षा तभी समाप्त की जा सकती है जब तीन स्थितियों में से एक हो — जिनमें से एक है कि जांच करना संभव न हो (प्रावधान 2(b))।
परंतु इस प्रावधान का उपयोग करने से पहले चार बातें अनिवार्य हैं:
- कर्मचारी का आचरण इतना गंभीर हो कि बर्खास्तगी उचित हो।
- अधिकारी को संतुष्ट होना चाहिए कि जांच संभव नहीं है।
- यह संतोष लिखित रूप में दर्ज होना चाहिए।
- यह निर्णय उसी सक्षम अधिकारी द्वारा लिया जाना चाहिए जो बर्खास्त करने का अधिकार रखता है।
न्यायालय ने पाया कि कमांडेंट ने अपने आदेश में कहीं भी यह नहीं लिखा कि जांच करना व्यवहारिक रूप से असंभव था।
वास्तव में, इस तरह के आरोप — जैसे शराब सेवन और बदसलूकी — साक्ष्य और गवाहों के माध्यम से जांचे जा सकते थे।
ऐसी कोई परिस्थिति नहीं थी जिसमें जांच कर पाना असंभव माना जा सके।
अदालत ने कहा कि इस तरह का आदेश संवैधानिक प्रक्रिया की अनदेखी है और यह अनुच्छेद 311(2) के खिलाफ है।
अदालत का निर्णय
न्यायालय ने पाया कि —
- विभागीय जांच को छोड़े जाने का कोई उचित कारण नहीं दिया गया।
- अधिकारी ने केवल उच्च अधिकारियों के परिपत्र (DGP के आदेश) का हवाला देकर संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार किया।
- ऐसा आदेश अवैध, असंवैधानिक और अमान्य है।
इसलिए, पटना हाई कोर्ट ने 31 मई 2020 की बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को तुरंत पुनः नियुक्त किया जाए, और उसे सभी बकाया वेतन व लाभ (Full Back Wages) दिए जाएं, जैसे कि कोई बर्खास्तगी हुई ही न हो।
हालांकि, राज्य सरकार को यह छूट दी गई कि यदि वह चाहे तो नियमित विभागीय जांच चलाकर कार्रवाई कर सकती है।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- यह फैसला सरकारी सेवकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा को मजबूत करता है।
- अनुच्छेद 311(2)(b) का उपयोग केवल अपवादस्वरूप परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, सुविधा के लिए नहीं।
- यह स्पष्ट करता है कि कोई भी प्रशासनिक परिपत्र संविधान से ऊपर नहीं हो सकता।
- पुलिस जैसे अनुशासित बलों में भी न्याय और प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है।
- यह निर्णय सरकारी कर्मचारियों को यह संदेश देता है कि किसी भी कार्रवाई से पहले उन्हें सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- प्रश्न: क्या बिना जांच के अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत बर्खास्तगी वैध थी?
निर्णय: नहीं। आदेश में यह नहीं लिखा गया कि जांच संभव नहीं थी, इसलिए बर्खास्तगी अवैध है। - प्रश्न: क्या नियमित विभागीय जांच हो सकती थी?
निर्णय: हाँ, आरोपों की प्रकृति ऐसी थी जिसे सामान्य जांच से साबित किया जा सकता था। - प्रश्न: क्या पुलिस महानिदेशक के आदेश से जांच टाली जा सकती है?
निर्णय: नहीं। प्रशासनिक आदेश संविधान के अनुच्छेद 311(2) से ऊपर नहीं हैं।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Union of India v. Tulsiram Patel, (1985) 3 SCC 398
- Jaswant Singh v. State of Punjab, (1991) 1 SCC 362
न्यायालय द्वारा उद्धृत निर्णय
- Union of India v. Tulsiram Patel, (1985) 3 SCC 398
- Reena Rani v. State of Haryana, (2012) 10 SCC 215
- Risal Singh v. State of Haryana, (2014) 13 SCC 244
मामले का शीर्षक
Md. Muqaddar Khan बनाम राज्य बिहार एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7803 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 355
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अंसुल, श्री उमाशंकर शर्मा, श्री अभिनव अशोक
- राज्य की ओर से: श्री विश्व विभूति कुमार सिंह, A.C. to A.G.
निर्णय का लिंक
MTUjNzgwMyMyMDIwIzEjTg==-JouFOvznLxw=
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