निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला बिहार पुलिस के एक हवलदार से जुड़ा है, जिसने पटना हाई कोर्ट का दरवाज़ा इसलिए खटखटाया क्योंकि विभाग ने उसके खिलाफ तीन बड़े आदेश जारी किए थे—
- उसे निलंबित कर दिया गया,
- दो साल तक उसकी दो वार्षिक वेतन-वृद्धियाँ रोक दी गईं,
- निलंबन की अवधि के दौरान उसे केवल निर्वाह भत्ता दिया गया, वेतन नहीं।
ये आदेश क्रमशः 05.11.2017, 24.07.2018 और 13.03.2019 को पारित हुए। हवलदार ने इन्हें चुनौती दी और कहा कि ये आदेश न तो क़ानून के अनुसार हैं और न ही न्यायसंगत।
घटना का पृष्ठभूमि यह था कि 20.11.2017 को एक हत्या के मामले में आक्रोशित भीड़ ने थाने पर हमला कर दिया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि वह थानेदार के साथ थाने के अंदर ही मौजूद था और वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का पालन कर रहा था। उसी बीच एक कार्यपालक दंडाधिकारी अतिरिक्त बल के साथ पहुंचे और भीड़ को काबू करने के लिए छत से गोली चलाई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई।
इस घटना के बाद आठ पुलिसकर्मियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई। सभी को पहले निलंबित किया गया, लेकिन बाद में तीन लोगों को बरी कर दिया गया और पाँच को दोषी मानकर सज़ा दी गई। याचिकाकर्ता उन्हीं पाँच में से एक था। उसका कहना था कि जांच प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं थी—न तो गवाहों को पेश किया गया और न ही उसे जिरह का मौका दिया गया।
राज्य की ओर से जवाब में कहा गया कि अपीलीय प्राधिकारी ने सभी पहलुओं पर विचार करके ही निर्णय लिया है।
मामले की सुनवाई के दौरान पटना हाई कोर्ट ने सभी आठों पुलिसकर्मियों के रिकॉर्ड मंगवाए और ध्यान से जाँच की। कोर्ट ने पाया कि समान आरोपों पर अलग-अलग परिणाम दिए गए हैं—कुछ को दोषमुक्त कर दिया गया और कुछ को दंडित किया गया—लेकिन इसके पीछे कोई तार्किक आधार नहीं बताया गया।
कोर्ट ने साफ कहा कि एक ही घटना और समान आरोपों पर “दो अलग-अलग मापदंड” नहीं अपनाए जा सकते। अगर तीन लोगों को छोड़ा गया तो बाकी पाँच को दंडित करने का भी ठोस कारण होना चाहिए। अन्यथा यह भेदभाव और मनमानी है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
साथ ही, हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि निलंबन अवधि के दौरान पूरे वेतन को रोकने का आदेश ग़लत है। सेवा संहिता के नियम 97(3) के अनुसार, विभाग को अलग से कारण बताओ नोटिस जारी करना चाहिए और कर्मचारी को यह अवसर देना चाहिए कि वह बताए कि निलंबन अवधि को सेवा में गिना जाए या नहीं। बिना नोटिस दिए केवल निर्वाह भत्ता देना अनुचित और अवैध है।
अंततः, पटना हाई कोर्ट ने सभी आदेशों को रद्द कर दिया और विभाग को निर्देश दिया कि वे आगे की कार्रवाई कानून और नियमों के अनुसार करें।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला पुलिसकर्मियों और सरकारी कर्मचारियों दोनों के लिए बहुत अहम है।
- समानता का अधिकार: कोर्ट ने साफ कर दिया कि एक ही घटना में शामिल कर्मचारियों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। अगर कुछ को सज़ा दी जाती है और कुछ को बरी किया जाता है, तो उसके पीछे ठोस और तार्किक कारण होना चाहिए।
- निलंबन अवधि का वेतन: बहुत से सरकारी कर्मचारी निलंबन की अवधि में केवल निर्वाह भत्ता पाते हैं और बाद में विभाग वेतन रोक देता है। यह फैसला बताता है कि बिना कारण बताओ नोटिस दिए ऐसा नहीं किया जा सकता।
- प्राकृतिक न्याय: जांच प्रक्रिया में कर्मचारी को गवाहों से जिरह का अधिकार और अपनी बात रखने का मौका मिलना ही चाहिए। अगर यह नहीं दिया गया, तो पूरी प्रक्रिया अवैध मानी जाएगी।
- सरकारी विभागों के लिए चेतावनी: यह निर्णय एक नज़ीर है कि विभागीय कार्रवाई करते समय मनमानी न करें। रिकॉर्ड में स्पष्ट कारण लिखें और सभी नियमों का पालन करें, अन्यथा कोर्ट हस्तक्षेप करेगा।
- आम जनता के लिए संदेश: यह फैसला यह भरोसा दिलाता है कि चाहे मामला विभागीय कार्रवाई का हो या अनुशासन का, अगर अधिकारी नियमों और संविधान की अवहेलना करते हैं तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या समान घटना और आरोपों पर सहकर्मियों को अलग-अलग दंडित किया जा सकता है?
❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। - क्या निलंबन अवधि के पूरे वेतन को बिना नोटिस दिए रोका जा सकता है?
❌ नहीं। सेवा संहिता का नियम 97(3) स्पष्ट रूप से कहता है कि इसके लिए अलग से कारण बताओ नोटिस देना होगा। - क्या जांच प्रक्रिया प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप थी?
❌ नहीं। गवाहों की जिरह का मौका न देना और प्रक्रिया को एकतरफा चलाना अवैध है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- याचिकाकर्ता ने पटना हाई कोर्ट का 10.02.2010 का फैसला (CWJC No. 17354/2009) का हवाला दिया था।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- कोर्ट ने मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 14 और बिहार सेवा संहिता के नियम 97(3) पर भरोसा किया।
मामले का शीर्षक
Shailendra Thakur @ Shailendra Kumar Thakur बनाम State of Bihar एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 25288 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 248
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण (दिनांक 18.02.2021, अपलोड दिनांक 23.02.2021)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री इंदु भूषण, अधिवक्ता; श्री नरसिंह टाँटी, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री एन. एच. खान (SC-1); श्री इर्शाद (AC to SC-1)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjUyODgjMjAxOSMxI04=—ak1–OBaYxC–ak1–B30=
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