निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जो बिहार के विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर (Assistant Professor) की नियुक्तियों से जुड़ा है। यह मामला विशेष रूप से बॉटनी (वनस्पति विज्ञान) और ज़ूलॉजी (प्राणी विज्ञान) विषयों के शिक्षकों की भर्ती से संबंधित था।
विवाद तब उत्पन्न हुआ जब बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) ने सितम्बर 2020 में एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि अभ्यर्थी के पास “संबंधित / प्रासंगिक / सहयोगी (concerned/relevant/allied)” विषय में मास्टर डिग्री (Master’s Degree) होनी चाहिए।
लेकिन बाद में आयोग ने 17 नवम्बर 2020 को एक संशोधन (corrigendum) जारी किया, जिसमें कहा गया कि जो उम्मीदवार बॉटनी के लिए आवेदन करना चाहते हैं, उनके पास बॉटनी में ऑनर्स होना चाहिए, और जो ज़ूलॉजी के लिए आवेदन करना चाहते हैं, उनके पास ज़ूलॉजी में ऑनर्स होना अनिवार्य है।
याचिकाकर्ता (अभ्यर्थी) ने इस संशोधन को चुनौती दी, यह कहते हुए कि यह नियम बाद में जोड़ा गया और यह विज्ञापन और विश्वविद्यालय के लागू नियमों के खिलाफ है। साथ ही, उन्होंने यह भी मांग की कि “बायोइन्फॉरमैटिक्स” (Bioinformatics) विषय को बॉटनी और ज़ूलॉजी का “सहयोगी विषय” (allied subject) माना जाए।
न्यायालय ने पूरे मामले की समीक्षा करते हुए पाया कि —
- मूल विज्ञापन में ऑनर्स डिग्री की कोई आवश्यकता नहीं बताई गई थी।
- केवल यह कहा गया था कि उम्मीदवार के पास 55% अंकों के साथ “संबंधित/प्रासंगिक/सहयोगी” विषय में मास्टर डिग्री होनी चाहिए।
- आयोग द्वारा बाद में जोड़ा गया “ऑनर्स अनिवार्य” वाला प्रावधान मूल विज्ञापन के विपरीत था।
न्यायालय ने कहा कि एक बार भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद “नियमों का खेल” (rules of the game) बदला नहीं जा सकता। यह सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों में भी दोहराया जा चुका है।
न्यायालय ने यह भी माना कि यह तय करना कि कौन सा विषय “सहयोगी” है, यह एक शैक्षणिक निर्णय है जो विशेषज्ञों के अधिकार क्षेत्र में आता है। आयोग ने पहले ही Bioinformatics को बॉटनी और ज़ूलॉजी का सहयोगी विषय घोषित कर दिया था, इसलिए उस हिस्से पर विवाद नहीं रहा।
अंततः पटना उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि –
- “ऑनर्स की अनिवार्यता” वाला हिस्सा अवैध और असंगत है।
- Bioinformatics विषय रखने वाले अभ्यर्थी बॉटनी और ज़ूलॉजी दोनों पदों के लिए योग्य माने जाएंगे।
- आयोग को निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता का आवेदन स्वीकार कर उसकी पात्रता पर विचार करे।
यह फैसला उन अभ्यर्थियों के लिए राहत लेकर आया जो किसी सहयोगी विषय में मास्टर डिग्री रखते हैं लेकिन उनके पास मूल विषय में ऑनर्स नहीं है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला तीन मुख्य कारणों से महत्वपूर्ण है:
- नियमों की पारदर्शिता और स्थिरता:
कोई भी आयोग या सरकारी संस्था भर्ती की प्रक्रिया शुरू होने के बाद उसमें नए शर्तें नहीं जोड़ सकती। यह फैसला युवाओं के लिए न्यायसंगत अवसरों की गारंटी देता है। - सहयोगी विषयों की मान्यता:
आज की शिक्षा में कई विषय आपस में जुड़े हुए हैं। यह निर्णय इस विचार को मजबूती देता है कि बायोइन्फॉरमैटिक्स जैसे आधुनिक विषयों को पारंपरिक विज्ञानों (बॉटनी/ज़ूलॉजी) के साथ जोड़कर देखा जा सकता है। - प्रशासनिक मार्गदर्शन:
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विषय की “सहयोगी” स्थिति तय करने का अधिकार विशेषज्ञ निकायों को है, न कि प्रशासनिक अधिकारियों को। इस प्रकार यह फैसला शिक्षा आयोगों को अधिक पेशेवर दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा 1: क्या आयोग 17.11.2020 के संशोधन द्वारा “ऑनर्स की अनिवार्यता” जैसी नई शर्त जोड़ सकता था?
👉 निर्णय: नहीं। यह संशोधन विज्ञापन और नियमों के विपरीत था और भर्ती की प्रक्रिया के बीच में नियमों में बदलाव असंवैधानिक है। - मुद्दा 2: क्या Bioinformatics विषय बॉटनी और ज़ूलॉजी के लिए सहयोगी विषय माना जा सकता है?
👉 निर्णय: हाँ। आयोग ने स्वयं इसे सहयोगी विषय के रूप में स्वीकार किया था, इसलिए न्यायालय ने इसे उचित माना। - मुद्दा 3: याचिकाकर्ता को क्या राहत दी जाए?
👉 निर्णय: आयोग को निर्देश दिया गया कि वह अभ्यर्थी का आवेदन स्वीकार करे और उसे पात्रता के अनुसार विचार में ले।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Dr. G. Chandran v. The Registrar, Tamil University, W.P.(MD) No. 3441 of 2018 (Madras High Court) — यह निर्णय इस बात पर जोर देता है कि विषयों की समानता या सहयोगिता का निर्धारण विशेषज्ञ संस्थाओं द्वारा किया जाना चाहिए।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Hemani Malhotra v. High Court of Delhi, (2008) 7 SCC 11 — भर्ती प्रक्रिया के बाद नियम बदले नहीं जा सकते।
- K. Manjusree v. State of A.P., (2008) 3 SCC 512 — चयन प्रक्रिया में बाद में जोड़े गए मानदंड अस्वीकार्य हैं।
- P.K. Ramachandra Iyer v. Union of India, (1984) 2 SCC 141
- Umesh Chandra Shukla v. Union of India, (1985) 3 SCC 721
- Maharashtra SRTC v. Rajendra Bhimrao Mandve, (2001) 10 SCC 51 — सभी ने यह सिद्धांत दोहराया कि “rules of the game” बीच में नहीं बदले जा सकते।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 8860 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 752
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री राजेन्द्र नारायण, वरिष्ठ अधिवक्ता
- प्रतिवादी संख्या 4–6 की ओर से: श्री पवन कुमार चौधरी, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
MTUjODg2MCMyMDIwIzEjTg==-DkUGmL68sFs=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।







