निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट की खंडपीठ ने बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की अपील को स्वीकार करते हुए एकल न्यायाधीश द्वारा दिए गए आदेश को रद्द कर दिया। पहले आदेश में आयोग को यह निर्देश दिया गया था कि वह आईआईटी पटना और एनआईटी पटना के विशेषज्ञों की एक नई पाँच सदस्यीय समिति गठित करे और OMR आधारित परीक्षा (सेट ‘B’) के चार सवालों का अंतिम सही उत्तर तय करे।
खंडपीठ ने कहा कि यह आदेश दरअसल पुनर्मूल्यांकन (re-evaluation) के बराबर है, जबकि न तो किसी नियम में और न ही विज्ञापन में पुनर्मूल्यांकन का प्रावधान था। इसीलिए एकल पीठ का आदेश कानूनन टिकाऊ नहीं था। अब आयोग भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकता है।
इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि यह थी कि सहायक प्राध्यापक (भौतिकी) की नियुक्ति के लिए 2020 में विज्ञापन निकला था। इसमें OMR आधारित परीक्षा (40 अंक) के साथ शैक्षणिक रिकॉर्ड (20 अंक), संविदा सेवा का वेटेज (25 अंक) और साक्षात्कार (15 अंक) शामिल था। केवल वही अभ्यर्थी साक्षात्कार में बुलाए जाते जो OMR परीक्षा में न्यूनतम अंक पाते। याचिकाकर्ता इस न्यूनतम अंक को प्राप्त नहीं कर पाया और इसी वजह से केवल OMR आधारित मूल्यांकन को चुनौती दी।
आयोग ने उत्तर कुंजी (answer key) की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए कई बार प्रक्रिया अपनाई। पहले अस्थायी उत्तर कुंजी प्रकाशित की, फिर आपत्तियाँ आमंत्रित कीं। उसके बाद विशेषज्ञ समिति ने कई प्रश्नों के विकल्प बदले और कुछ प्रश्न हटा दिए। इतना ही नहीं, आयोग ने आपत्ति दर्ज कराने वाले अभ्यर्थियों को व्यक्तिगत रूप से सुनवाई का मौका दिया और यहाँ तक कि विशेषज्ञों से फोन पर भी उनकी बात करवाई।
कुल मिलाकर चार बार अस्थायी कुंजी जारी की गई, हर बार आपत्तियों पर विचार हुआ और संशोधन किए गए। अंत में अंतिम कुंजी प्रकाशित की गई। याचिकाकर्ता को यह प्रक्रिया भी संतोषजनक नहीं लगी और उसने हाई कोर्ट की शरण ली।
एकल न्यायाधीश ने माना कि विशेषज्ञ समिति खुद बार-बार बदल रही थी, जिससे निश्चित उत्तर तय नहीं हो पा रहे थे। इसी आधार पर नई समिति गठित करने का निर्देश दिया।
लेकिन आयोग ने खंडपीठ में अपील दायर कर कहा कि बार-बार सुधार करना उनकी पारदर्शिता का प्रमाण है, न कि गलती का। चूँकि भर्ती के नियमों में पुनर्मूल्यांकन की व्यवस्था नहीं है, इसलिए अदालत इस तरह का आदेश नहीं दे सकती।
खंडपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के रण विजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2018) 2 SCC 357 मामले पर भरोसा किया, जिसमें साफ कहा गया है कि —
- यदि नियम पुनर्मूल्यांकन की अनुमति देते हैं, तभी यह संभव है।
- अन्यथा, केवल दुर्लभ और अपवादस्वरूप मामलों में ही अदालत दखल दे सकती है।
- उत्तर कुंजी को सही माना जाता है, जब तक कि स्पष्ट और प्रत्यक्ष त्रुटि न दिखे।
- शंका की स्थिति में लाभ परीक्षार्थी को नहीं बल्कि आयोग को मिलता है।
खंडपीठ ने पाया कि आयोग ने पारदर्शिता के साथ पूरी प्रक्रिया चलाई, चार बार कुंजी संशोधित की, उम्मीदवारों की आपत्तियाँ सुनीं और तर्कसंगत बदलाव किए। ऐसी स्थिति “दुर्लभ और अपवादस्वरूप” नहीं कही जा सकती।
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि एकल न्यायाधीश का आदेश केवल याचिकाकर्ता के लिए पुनर्मूल्यांकन कराने का था। लेकिन परीक्षा सामूहिक होती है, और अगर पुनर्मूल्यांकन होगा तो सभी के लिए होना चाहिए, केवल एक व्यक्ति के लिए नहीं।
इन्हीं आधारों पर खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश का आदेश रद्द कर दिया और आयोग को चयन प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- सरकारी संस्थाओं के लिए सबक: यदि आयोग या कोई भर्ती संस्था आपत्तियों पर गंभीरता से विचार करती है, विशेषज्ञ समिति गठित करती है और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाती है, तो अदालत उसकी कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
- अभ्यर्थियों के लिए संदेश: यदि उत्तर कुंजी में स्पष्ट और गंभीर त्रुटि है तभी राहत मिलेगी। केवल शंका या बार-बार बदलाव से अदालत पुनर्मूल्यांकन का आदेश नहीं देगी।
- नीति निर्धारकों के लिए संकेत: भविष्य में विज्ञापनों में यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि पुनर्मूल्यांकन की व्यवस्था होगी या नहीं। इससे अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचा जा सकेगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बिना नियम या विज्ञापन में प्रावधान के पुनर्मूल्यांकन कराया जा सकता है?
- निर्णय: नहीं। केवल दुर्लभ मामलों में, जहाँ प्रत्यक्ष त्रुटि हो, तब ही संभव। यहाँ ऐसा नहीं था।
- क्या केवल एक उम्मीदवार के लिए पुनर्मूल्यांकन किया जा सकता है?
- निर्णय: नहीं। परीक्षा सामूहिक होती है, इसलिए सबके लिए समान मानक होने चाहिए।
- क्या आयोग की प्रक्रिया निष्पक्ष थी?
- निर्णय: हाँ। चार बार अस्थायी कुंजी प्रकाशित हुई, आपत्तियों को सुना गया और आवश्यक संशोधन किए गए।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- राजेश कुमार बनाम बिहार राज्य, (2013) 3 SCC 690
- मनीष उज्जवल बनाम महार्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी, (2005) 13 SCC 744
- गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी बनाम सौमिल गर्ग, (2005) 13 SCC 749
- रिशाल बनाम राजस्थान लोक सेवा आयोग, (2018) 8 SCC 81
- रण विजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (2018) 2 SCC 357
- आशीष रंजन बनाम बिहार राज्य, CWJC No. 14828 of 2023, दिनांक 12.03.2024
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- रण विजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (2018) 2 SCC 357
- राजेश कुमार बनाम बिहार राज्य, (2013) 3 SCC 690
मामले का शीर्षक
बिहार लोक सेवा आयोग, सचिव के माध्यम से बनाम डॉ. ईना बहन
केस नंबर
Letters Patent Appeal No. 704 of 2024 in CWJC No. 5217 of 2023
उद्धरण (Citation)
2025 (1) PLJR 583
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश (के. विनोद चंद्रन) एवं माननीय श्री न्यायमूर्ति नानी टागिया
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री पी.के. शाही, एजी — अपीलकर्ताओं (आयोग) की ओर से
- श्री विकास कुमार, अधिवक्ता — अपीलकर्ताओं की ओर से
- श्री कुमार कौशिक, अधिवक्ता — उत्तरदायी संख्या 1 (याचिकाकर्ता) की ओर से
- गवर्नमेंट प्लीडर 5 — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
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