गिरफ्तारी के बाद ज़मानत मिलने पर भी जेल में रखा गया: पटना हाईकोर्ट ने माना अवैध हिरासत

गिरफ्तारी के बाद ज़मानत मिलने पर भी जेल में रखा गया: पटना हाईकोर्ट ने माना अवैध हिरासत

पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि ज़मानत मिलने के बावजूद अगर किसी व्यक्ति को जेल में रखा जाता है, तो वह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह याचिकाकर्ता को ₹1,00,000 (एक लाख रुपये) मुआवजा दे, क्योंकि उसे अवैध रूप से 16 दिन तक हिरासत में रखा गया था।

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला एक व्यापारी से जुड़ा है जिनके खिलाफ बिहार में पाँच आपराधिक मामले चल रहे थे। अलग-अलग मामलों में गिरफ्तारी के बाद, उन्हें तीन मामलों में 21 सितंबर 2024 तक ज़मानत मिल चुकी थी। इसके बावजूद, जेल प्रशासन ने उन्हें रिहा नहीं किया।

जेल प्रशासन ने तर्क दिया कि 13 सितंबर 2024 को एक मजिस्ट्रेट ने एक “प्रोडक्शन वारंट” जारी किया था, जिसमें याचिकाकर्ता को 26 सितंबर 2024 को अदालत में पेश करने का आदेश था। लेकिन हाईकोर्ट ने साफ किया कि चूंकि यह वारंट 26 तारीख के लिए था, इसलिए 21 सितंबर को रिहाई में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए थी।

अदालत ने कहा कि यदि ज़मानत मिल गई है, और कोई नया वैध आदेश नहीं है, तो व्यक्ति को तुरंत रिहा किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता को 21 सितंबर से 7 अक्टूबर 2024 तक गलत तरीके से हिरासत में रखा गया, जो स्पष्ट रूप से अवैध है।

इस दौरान दो और मामलों में उन्हें बाद में न्यायिक हिरासत में लिया गया, लेकिन अदालत ने कहा कि इससे पहले की अवैध हिरासत को “नजरअंदाज” नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता संविधान का मूल अधिकार है और किसी को भी कानून की प्रक्रिया के बिना हिरासत में नहीं रखा जा सकता।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूत करता है और यह स्पष्ट करता है कि ज़मानत मिलने के बाद व्यक्ति को तुरंत रिहा करना कानूनी दायित्व है।

आम जनता के लिए:
यह आश्वासन देता है कि यदि किसी को ज़मानत मिल चुकी है, तो उसे अनावश्यक रूप से जेल में नहीं रखा जा सकता। यदि रखा गया, तो वे कानूनी कार्रवाई और मुआवजे का हकदार हो सकते हैं।

सरकारी अधिकारियों के लिए:
यह एक चेतावनी है कि ज़मानत आदेशों की अनदेखी करने पर व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय की जा सकती है और मुआवजा राशि संबंधित अधिकारी से वसूली जा सकती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या ज़मानत के बावजूद जेल में रखना वैध था?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं, यह 16 दिन की अवैध हिरासत थी।
  • क्या प्रोडक्शन वारंट के आधार पर ज़मानत प्राप्त व्यक्ति को रोका जा सकता है?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं, जब तक वारंट लागू नहीं होता, रिहाई रोकी नहीं जा सकती।
  • क्या अवैध हिरासत के लिए मुआवजा मिलना चाहिए?
    • न्यायालय का निर्णय: हाँ, ₹1,00,000 का मुआवजा आदेशित।
  • क्या जेल अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए?
    • न्यायालय का निर्णय: हाँ, विभागीय जांच और मुआवजा वसूली का आदेश।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Re: To issue certain guidelines regarding inadequacies and deficiencies in criminal trials, (2023) 12 SCC 688

मामले का शीर्षक

राम निवास गुप्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Criminal Writ Jurisdiction Case No. 2105 of 2024

उद्धरण (Citation)- 2025 (1) PLJR 118

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. बी. पी. सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

श्री अरुण कुमार – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री ए.जी. – प्रतिवादी की ओर से

निर्णय का लिंक

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“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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