निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला नगर परिषद की एक मुख्य पार्षद के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव से जुड़ा था। बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 की धारा 25(4) और बिहार नगरपालिका अविश्वास प्रस्ताव प्रक्रिया नियमावली, 2010 के तहत यह व्यवस्था है कि किसी मुख्य पार्षद या उप-मुख्य पार्षद को विशेष बैठक में पार्षदों के बहुमत से हटाया जा सकता है।
कानून कहता है कि —
- विशेष बैठक तभी बुलाई जा सकती है जब कम से कम एक-तिहाई निर्वाचित पार्षद लिखित में प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करें।
- यह प्रस्ताव मुख्य पार्षद को दिया जाना चाहिए और उसके पास यह दायित्व है कि वह सात दिनों के भीतर बैठक की सूचना जारी करे तथा 15 दिनों के भीतर बैठक आयोजित करे।
- यदि मुख्य पार्षद यह काम नहीं करता, तो पार्षद स्वयं विशेष बैठक बुला सकते हैं और उसकी सूचना मुख्य नगर पदाधिकारी द्वारा जारी की जाती है।
इस मामले में 15 पार्षदों ने लिखित में प्रस्ताव दिया और मुख्य पार्षद को 20.10.2020 को इसकी जानकारी मिल गई। इसके बावजूद, उन्होंने सात दिनों के भीतर बैठक की सूचना जारी नहीं की। परिणामस्वरूप, पार्षदों ने स्वयं 05.11.2020 को विशेष बैठक बुलाई और 26 में से 19 पार्षदों ने मुख्य पार्षद के खिलाफ वोट दिया। बाद में 09.12.2020 को नए मुख्य पार्षद का चुनाव हुआ।
मुख्य पार्षद ने इस पूरी प्रक्रिया को हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनका कहना था कि —
- प्रस्ताव सीधे उन्हें नहीं दिया गया, बल्कि कार्यपालक अधिकारी ने सूचना दी, जो गलत है।
- दो साल पूरा होने से पहले प्रस्ताव लाना कानून के खिलाफ है।
- धारा 48(2) के अनुसार कम से कम दो-पांचवां पार्षद ही प्रस्ताव ला सकते हैं, जबकि यहाँ एक-तिहाई से कम पार्षद थे।
हाई कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि:
- यह तथ्यात्मक रूप से गलत है कि प्रस्ताव सीधे उन्हें नहीं दिया गया। 20.10.2020 को उन्हें पत्र और प्रस्ताव दोनों मिले, जिसका उन्होंने स्वयं अभिलेख पर स्वीकार किया।
- सात दिन में सूचना जारी न करने की वजह से पार्षदों को खुद बैठक बुलाने का अधिकार था।
- धारा 25(4) और 2010 की नियमावली एक स्वतंत्र प्रक्रिया है। इसे धारा 48(2) की सामान्य बैठक वाली प्रक्रिया से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।
न्यायालय ने यह भी कहा कि व्यक्तिगत रूप से हाथों-हाथ प्रस्ताव की सेवा आवश्यक नहीं है। जब तक यह साबित हो जाए कि प्रस्ताव मुख्य पार्षद को दिया गया और उन्हें जानकारी हो गई, तब तक प्रक्रिया वैध मानी जाएगी।
अंत में, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और मुख्य पार्षद पर ₹10,000 का जुर्माना भी लगाया, क्योंकि उन्होंने गलत तथ्यों के आधार पर अदालत को गुमराह करने की कोशिश की।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस फैसले का महत्व नगर निकायों की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली में बेहद अहम है।
- लोकतांत्रिक जवाबदेही मजबूत हुई – मुख्य पार्षद या उप-मुख्य पार्षद अब यह नहीं कह सकते कि प्रस्ताव केवल व्यक्तिगत सेवा से ही वैध होगा।
- प्रक्रिया स्पष्ट हुई – अब यह साफ है कि धारा 25(4) और 2010 नियमावली की प्रक्रिया स्वतंत्र है और धारा 48(2) की सामान्य बैठक से अलग है।
- पार्षदों को शक्ति – अगर मुख्य पार्षद सात दिन में कार्रवाई नहीं करते हैं तो पार्षद स्वयं बैठक बुलाकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं।
- अनावश्यक मुकदमेबाजी पर अंकुश – झूठे या तकनीकी आधार पर दायर याचिकाओं को अदालत ने हतोत्साहित किया और जुर्माना लगाकर सख्त संदेश दिया।
आम जनता के लिए इसका मतलब है कि चुने गए प्रतिनिधि केवल कुर्सी पर बैठे रहने के हकदार नहीं हैं; अगर बहुमत का विश्वास खो दिया तो उन्हें हटाया जा सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या प्रस्ताव की व्यक्तिगत सेवा (personal service) अनिवार्य है?
✅ नहीं। मुख्य पार्षद को सूचना और प्रस्ताव की जानकारी मिल जाना पर्याप्त है। - क्या धारा 48(2) की प्रक्रिया इस पर लागू होती है?
✅ नहीं। अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया धारा 25(4) और 2010 नियमों से संचालित होती है। - क्या सात दिन में सूचना न देने पर पार्षद बैठक बुला सकते हैं?
✅ हाँ। यह उनका वैधानिक अधिकार है। - क्या इस मामले में प्रक्रिया सही रही?
✅ हाँ। प्रस्ताव वैध था, बैठक वैध थी और मतदान का परिणाम भी स्पष्ट बहुमत में था। - क्या झूठे तथ्यों के आधार पर कोर्ट को गुमराह करने पर दंड लगाया जा सकता है?
✅ हाँ। कोर्ट ने ₹10,000 का जुर्माना लगाया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Sunita Devi v. State of Bihar & Ors., 2016 (1) PLJR 182
- Sabila Khatoon & Ors. v. State of Bihar & Ors., 2017 (2) PLJR 29
- Sheikh Hassmuddin & Anr. v. State of Bihar & Ors., 2015 (3) PLJR 203
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Amit Kumar & Ors. v. State of Bihar & Ors., CWJC No. 11142 of 2014 (निर्णय दिनांक 22.07.2014)
- Rajeshwar Prasad v. State of Bihar & Ors., LPA No. 1077 of 2014 (निर्णय दिनांक 04.08.2014)
- Nasima Khatoon v. State of Bihar & Ors. (citation उपलब्ध नहीं)
- Sunita Devi (2016) और Sabila Khatoon (2017) को पुनः मान्यता दी गई
मामले का शीर्षक
Jayanti Devi v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 8834 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 286
माननीय न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह (निर्णय दिनांक 22.03.2021)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सर्वदेव सिंह
- प्रतिवादी (नगर निकाय/निजी) की ओर से: श्री एस.बी.के. मंगलम एवं श्री रवि शंकर पंकज
- राज्य की ओर से: श्री राकेश अंबष्ठा (ए.सी. टू ए.ए.जी. 7)
निर्णय का लिंक
MTUjODgzNCMyMDIwIzEjTg==-eeYIEyOqeCE=
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