निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि जमानत की शर्तें (Bail Conditions) इतनी कठोर नहीं होनी चाहिए कि आरोपी जमानत मिलने के बावजूद जेल से बाहर न आ सके। कोर्ट ने एक ऐसे आदेश को रद्द कर दिया जिसमें पति से यह शर्त रखी गई थी कि वह हर महीने अपनी पत्नी को ₹5000 देगा, अन्यथा उसकी जमानत रद्द कर दी जाएगी।
मामला गोपालगंज जिले का है। शिकायतकर्ता पत्नी ने 2014 में केस दर्ज कराया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसके पति और ससुरालवालों ने उसे प्रताड़ित किया और पति ने दूसरी शादी कर ली। इस आधार पर पति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (क्रूरता) और 494 (द्विविवाह/Bigamy) के तहत मुकदमा दर्ज हुआ।
पति को 9 जनवरी 2018 को गिरफ्तार किया गया। उसके बाद उसने जमानत के लिए आवेदन किया। 3 अप्रैल 2018 को सत्र न्यायाधीश, गोपालगंज ने जमानत दी लेकिन शर्त रखी कि:
- पति हर महीने पत्नी को ₹5000 देगा,
- अगर भुगतान बंद हुआ तो जमानत रद्द हो जाएगी,
- ससुरालवाले पति-पत्नी के बीच मेल-जोल में बाधा नहीं डालेंगे।
पति ने कहा कि वह गरीब मजदूर है और इतनी बड़ी रकम देने में सक्षम नहीं है। लेकिन निचली अदालत ने उसकी अर्जी खारिज कर दी। नतीजा यह हुआ कि जमानत मिलने के बावजूद वह तीन साल से जेल में ही रहा क्योंकि शर्त पूरी करना उसके लिए असंभव था।
हाई कोर्ट में उसने दलील दी कि यह शर्त अनुचित, कठोर और अन्यायपूर्ण है क्योंकि अदालत ने कभी उसकी आय या आर्थिक स्थिति का आकलन ही नहीं किया।
हाई कोर्ट ने माना कि जमानत देते समय शर्तें लगाना अदालत का अधिकार है, लेकिन वह शर्तें ऐसी नहीं हो सकतीं जो व्यावहारिक रूप से असंभव हों। खासकर वैवाहिक विवादों में यदि आर्थिक सहयोग की शर्त रखी जाती है तो रकम तय करने से पहले आरोपी की आर्थिक स्थिति, सामाजिक पृष्ठभूमि और पत्नी के लिए अन्य कानूनी विकल्पों (जैसे भरण-पोषण का दावा) को देखना जरूरी है।
यहाँ पति गरीब मजदूर था और तीन साल से जेल में था। इसलिए अदालत ने आदेश दिया कि ₹5000 मासिक भुगतान की शर्त हटाई जाए, लेकिन बाकी जमानत की शर्तें बनी रहें। साथ ही यह स्पष्ट किया कि पत्नी चाहे तो अन्य कानूनी प्रावधानों (जैसे धारा 125 CrPC, घरेलू हिंसा कानून आदि) के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
आरोपियों के लिए
यह फैसला बताता है कि अदालतें जमानत देते समय वाजिब और व्यावहारिक शर्तें ही लगा सकती हैं। बहुत कठोर शर्तें जमानत को निरर्थक बना देती हैं।
पत्नियों/पीड़ित महिलाओं के लिए
यह आदेश पत्नी के अधिकारों को खत्म नहीं करता। पत्नी अभी भी भरण-पोषण और अन्य कानूनी सहायता मांग सकती है। यह सिर्फ यह सुनिश्चित करता है कि जमानत का अधिकार निष्प्रभावी न हो।
निचली अदालतों के लिए
यह फैसला मार्गदर्शन देता है कि जमानत की शर्त तय करते समय आर्थिक पृष्ठभूमि, आय और वैकल्पिक उपायों को ध्यान में रखना जरूरी है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या जमानत की शर्त के रूप में बिना आय का आकलन किए ₹5000 मासिक भुगतान तय किया जा सकता है?
• नहीं। कोर्ट ने कहा यह अनुचित और कठोर है। - क्या पत्नी का भरण-पोषण का अधिकार खत्म हो जाता है अगर यह शर्त हटाई जाए?
• नहीं। पत्नी अन्य कानूनी उपायों के तहत भरण-पोषण मांग सकती है। - क्या राहत दी गई?
• ₹5000 मासिक भुगतान की शर्त हटाई गई और बाकी शर्तें कायम रहीं। पति को तुरंत जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- सामान्य सिद्धांतों का उल्लेख किया गया कि जमानत की शर्तें व्यावहारिक और न्यायपूर्ण होनी चाहिए।
मामले का शीर्षक
Binda Ram @ Binda v. State of Bihar & Anr.
केस नंबर
Criminal Miscellaneous No. 18014 of 2020 (Complaint Case No. 2653/2014, Gopalganj)
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 74
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति सुधीर सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री जितेन्द्र कुमार सिंह, श्री पंकज कुमार दुबे
- विपक्षी पत्नी की ओर से: श्रीमती मधुरी लता
निर्णय का लिंक
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