पटना उच्च न्यायालय 2021 : बिना विभागीय जांच के कांस्टेबल की बर्खास्तगी पर रोक, अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत कारण दर्ज करना अनिवार्य

पटना उच्च न्यायालय 2021 : बिना विभागीय जांच के कांस्टेबल की बर्खास्तगी पर रोक, अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत कारण दर्ज करना अनिवार्य

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला एक पुलिस कांस्टेबल (याचिकाकर्ता) से जुड़ा है जिसे मार्च 2020 में लॉकडाउन के दौरान सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। आरोप था कि कांस्टेबल और उसके साथियों ने अवैध वसूली की और घटना के दौरान एक व्यक्ति को गोली लगी। इसके आधार पर थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई और कांस्टेबल को गिरफ्तार कर लिया गया।

पुलिस प्रशासन ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311(2)(b) का सहारा लेकर उसे बिना विभागीय जांच के सीधे नौकरी से हटा दिया। इस प्रावधान के तहत सरकार किसी कर्मचारी को बिना जांच के निकाल सकती है, लेकिन सिर्फ तभी जब लिखित रूप से यह बताया जाए कि जांच करना “व्यावहारिक रूप से संभव नहीं” है।

याचिकाकर्ता ने इस आदेश को चुनौती दी और पटना उच्च न्यायालय में मामला दाखिल किया। उसका कहना था कि न तो विभागीय जांच हुई और न ही अधिकारी ने यह स्पष्ट कारण बताया कि जांच क्यों संभव नहीं थी।

अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 311(2) को विस्तार से समझाया। सामान्य स्थिति में किसी भी सरकारी कर्मचारी को बिना सुनवाई का मौका दिए नहीं निकाला जा सकता। हां, तीन अपवाद जरूर हैं:

  1. आपराधिक मामले में दोष सिद्ध होने पर,
  2. जब जांच व्यावहारिक रूप से संभव न हो,
  3. जब राज्य की सुरक्षा के हित में जांच करना उचित न हो।

इस मामले में दूसरा अपवाद लागू किया गया था। लेकिन अदालत ने कहा कि केवल आरोप गंभीर होना या आरोपी का जेल में होना, जांच न करने का कारण नहीं हो सकता। अधिकारी को यह स्पष्ट और ठोस रूप से लिखना चाहिए कि जांच क्यों संभव नहीं है।

यहां अधिकारी ने केवल इतना लिखा कि आरोप गंभीर हैं, पुलिस की छवि खराब हुई है और कर्मचारी जेल में है। अदालत ने माना कि यह कारण अनुच्छेद 311(2)(b) की शर्त पूरी नहीं करते। गंभीर आरोप सज़ा की कठोरता तय कर सकते हैं, लेकिन जांच को खत्म करने का आधार नहीं हो सकते।

अदालत ने यह भी कहा कि आरोपों की सच्चाई जांच के बिना तय नहीं की जा सकती। उदाहरण के लिए – क्या वाकई कांस्टेबल मौके पर मौजूद था? क्या उसने हथियार का इस्तेमाल किया? क्या यह सबूत गवाहों से साबित हो सकता है? यह सब जानना विभागीय जांच में ही संभव है।

इसलिए अदालत ने बर्खास्तगी का आदेश और अपील खारिज करने का आदेश दोनों को निरस्त कर दिया। हालांकि, अदालत ने तत्काल बहाली का आदेश नहीं दिया। बल्कि कहा कि विभाग आठ हफ्तों के भीतर फिर से निर्णय ले। वह चाहे तो विभागीय जांच करे या यदि वास्तव में जांच करना असंभव है तो अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत उचित कारण लिखकर नया आदेश पारित करे।

इस तरह अदालत ने संतुलन बनाया – पुलिस पर लगे गंभीर आरोपों को हल्के में नहीं लिया, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया कि किसी कर्मचारी को बिना उचित कारण और प्रक्रिया के नौकरी से नहीं निकाला जा सकता।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • सरकारी कर्मचारियों के अधिकार सुरक्षित : अब किसी को भी बिना जांच के नौकरी से निकालने से पहले अधिकारी को ठोस कारण लिखना होगा।
  • पुलिस प्रशासन के लिए चेतावनी : गंभीर आरोप लगने पर भी विभाग को यह साबित करना होगा कि जांच करना क्यों संभव नहीं है। वरना आदेश अदालत में टिक नहीं पाएगा।
  • जनता का विश्वास : यह फैसला दिखाता है कि अदालत यह सुनिश्चित करती है कि निर्दोष को सजा न मिले और दोषी को सजा उचित प्रक्रिया से ही दी जाए।
  • सरकार के लिए मार्गदर्शन : आपातकालीन हालात (जैसे लॉकडाउन) में भी संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या अनुच्छेद 311(2)(b) के तहत बिना जांच बर्खास्तगी उचित थी?
    – अदालत ने कहा: नहीं। अधिकारी ने यह नहीं बताया कि जांच करना क्यों असंभव था।
  • क्या अपीलीय आदेश से गलती सुधर गई?
    – अदालत ने कहा: नहीं। अपीलीय अधिकारी ने भी कोई ठोस कारण दर्ज नहीं किया।
  • उचित राहत क्या होनी चाहिए?
    – अदालत ने कहा: पुराने आदेश रद्द किए जाते हैं। विभाग आठ हफ्तों में नया निर्णय ले, या तो विभागीय जांच करे या कारण सहित नया आदेश पारित करे।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Union of India v. Tulsiram Patel, (1985) 2 SCC 398
  • Satyavir Singh v. Union of India, AIR 1986 SC 555
  • Jaswant Singh v. State of Punjab, (1991) 1 SCC 362
  • Chief Security Officer v. Singasan Rabi Das, (1991) 1 SCC 729
  • Tarsem Singh v. State of Punjab, (2006) 13 SCC 581
  • Reena Rani v. State of Haryana, (2012) 10 SCC 215
  • Risal Singh v. State of Haryana, (2014) 13 SCC 244

मामले का शीर्षक

Rajnish Kumar Singh v. State of Bihar & Ors. (Patna High Court)

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 8054 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 623

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से : श्री रंजीत झा, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से : AC to SC-8 (स्टैंडिंग काउंसल-8 के सहायक अधिवक्ता)

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjODA1NCMyMDIwIzEjTg==-ito22CijFtg=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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