निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक पारिवारिक संपत्ति विवाद को सुलझाया, जो कई वर्षों से चला आ रहा था। यह मामला Partition Suit No. 26 of 1981 से जुड़ा है, जिसमें एक परिवार के तीन भाइयों के वारिसों के बीच बंटवारे को लेकर विवाद था। यह मामला दो अपीलों के जरिए हाई कोर्ट में पहुंचा—First Appeal No. 326 of 1986 और First Appeal No. 84 of 2016।
इस मामले में याचिकाकर्ता (plaintiffs) ने दावा किया कि उनके पूर्वज राम प्रसाद सिंह के निधन के बाद उन्हें उनके हिस्से की संपत्ति (1/3 हिस्सा) नहीं मिली है। उनका कहना था कि परिवार की संपत्ति का कानूनी रूप से कभी विभाजन नहीं हुआ, केवल खेती अलग-अलग हो रही है, लेकिन कानूनी बंटवारा नहीं हुआ है। इसलिए उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें उनकी हिस्सेदारी का निश्चित रूप से निर्धारण करके भूमि का सीमांकन (demarcation) कराया जाए।
दूसरी ओर, विरोधी पक्ष (defendants) ने दावा किया कि परिवार का बंटवारा 1972 में ‘पंचनामा’ के जरिए हो चुका है, और सभी लोग अपने-अपने हिस्से की जमीन पर कब्जा किए हुए हैं। उनका यह भी कहना था कि कुछ लोगों ने अपनी जमीन बेच भी दी है।
निचली अदालत ने सुनवाई के बाद यह माना कि 1972 का पंचनामा कानूनी रूप से वैध नहीं है, क्योंकि:
- वह पंजीकृत (registered) नहीं था।
- सभी वारिस, विशेषकर नाबालिग, उसमें शामिल नहीं थे।
- उस समय दस्तखत करने वाले कुछ लोग नाबालिग थे और उनके अभिभावक द्वारा किया गया समझौता वैध नहीं माना जा सकता।
इसलिए अदालत ने 1986 में एक प्रारंभिक डिक्री (preliminary decree) पारित की, जिसमें यह माना गया कि याचिकाकर्ताओं और अन्य कानूनी वारिसों को कुल संपत्ति में 1/3 हिस्सा मिलना चाहिए। इसके बाद एक वकील कमिश्नर को नियुक्त कर भूमि की माप और बाँट (partition) का काम कराया गया, जिसकी रिपोर्ट पर आधारित अंतिम डिक्री (final decree) 2016 में पारित की गई।
इसके खिलाफ अपील की गई लेकिन पटना हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसलों को सही ठहराते हुए दोनों अपीलों को खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला स्पष्ट करता है कि हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा बिना पंजीकृत दस्तावेज (जैसे कि पंचनामा) के कानूनी रूप से मान्य नहीं माना जा सकता। केवल अलग-अलग खेती करने या रहन-सहन के आधार पर बंटवारे का दावा करना पर्याप्त नहीं है। सभी कानूनी वारिसों की सहमति और उनके हस्ताक्षर के बिना कोई भी समझौता पूर्ण नहीं माना जाएगा।
यह फैसला उन परिवारों के लिए मार्गदर्शक है जो बिना किसी लिखित और कानूनी दस्तावेज के आपसी समझौतों पर भरोसा करते हैं। यह बताता है कि संपत्ति विवादों से बचने के लिए कानूनी प्रक्रिया और दस्तावेज कितने आवश्यक हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या 1972 का पंचनामा वैध बंटवारा था?
➤ नहीं, वह पंजीकृत नहीं था और सभी कानूनी वारिसों की सहमति नहीं थी। - क्या सभी पक्षों में संपत्ति का संयुक्त स्वामित्व था?
➤ हाँ, अदालत ने संयुक्त स्वामित्व और कब्जा माना। - क्या वकील कमिश्नर की रिपोर्ट ठीक से स्वीकार की गई?
➤ हाँ, अदालत ने माना कि रिपोर्ट निष्पक्ष तरीके से बनाई गई थी। - क्या याचिकाकर्ता 1/3 हिस्से के हकदार हैं?
➤ हाँ, उन्हें उनका हिस्सा तय करके दिया जाएगा।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Kale & Ors. v. Deputy Director of Consolidation & Ors., (1976) 3 SCC 119
- Ravinder Kaur Grewal & Ors. v. Manjit Kaur & Ors., (2020) 9 SCC 706
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- K. Arumuga Velaiah v. P.R. Ramasamy, (2022) 3 SCC 757
- Deoki Mallah v. Surji Mallahain, 1999 (1) PLJR 199
- Madhusudan Das v. Narayanibai, (1983) 1 SCC 35
मामले का शीर्षक
Ganga Bishun Singh v. Suresh Prasad Singh & Ors.
केस नंबर
First Appeal No. 84 of 2016 with First Appeal No. 326 of 1986
उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 77
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री जस्टिस सुनील दत्ता मिश्रा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री भोला कुमार (अपीलकर्ता की ओर से, FA No. 84 of 2016)
- श्री नरेश चंद्र वर्मा (प्रतिवादियों की ओर से)
- श्री आलोक कुमार सिन्हा (अपीलकर्ता की ओर से, FA No. 326 of 1986)
निर्णय का लिंक
MSM4NCMyMDE2IzEjTg==-9Q69Gq14xUA=
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