निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक ब्लॉक विकास पदाधिकारी (बीडीओ) की बर्खास्तगी को बरकरार रखा, जिसे डीजल अनुदान के वितरण में वित्तीय अनियमितता के आरोप में सेवा से हटाया गया था। यह मामला उस समय सामने आया जब एक सतर्कता जांच में पाया गया कि सरकारी योजना का पैसा अपात्र या काल्पनिक लाभार्थियों को बांटा गया था।
यह अधिकारी भागलपुर जिले के सोन्हौला प्रखंड में कार्यरत थे। 2013 में उन पर भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज हुआ। इस एफआईआर के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया और उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू हुई।
जांच अधिकारी ने मार्च 2014 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें अधिकारी को अनियमितता का परोक्ष रूप से जिम्मेदार पाया गया। इसी आधार पर उन्हें जून 2014 में तत्काल प्रभाव से सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
बर्खास्तगी के बाद अधिकारी ने अपील दायर की, लेकिन उसे भी खारिज कर दिया गया। उन्होंने दलील दी कि जांच निष्पक्ष नहीं थी, न तो सही प्रक्रिया अपनाई गई और न ही उनके जवाब पर ध्यान दिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था, केवल एफआईआर के आधार पर कार्रवाई की गई।
लेकिन हाई कोर्ट ने पाया कि विभागीय रिकार्ड में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया था कि डीजल अनुदान ऐसे लोगों को दिया गया जो या तो उस इलाके के निवासी नहीं थे, या जिनके पास खेती लायक जमीन नहीं थी। एक उदाहरण में बताया गया कि एक व्यक्ति जिसकी केवल 0.8 डिसमिल जमीन थी, उसे फर्जी तरीके से 2.4 एकड़ जमीन का मालिक दिखाया गया।
याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि लाभार्थियों की पुष्टि करना पंचायत स्तर की निगरानी समिति की जिम्मेदारी थी, न कि बीडीओ की। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि बीडीओ, प्रखंड का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है और अंतिम ज़िम्मेदारी उसकी ही बनती है।
अंततः, कोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्रवाई में पर्याप्त निष्पक्षता बरती गई थी, और यह निर्णय उपलब्ध दस्तावेजी साक्ष्यों पर आधारित था। इसलिए कोर्ट ने बर्खास्तगी को पूरी तरह जायज़ और सजा को अनुपातिक बताया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही को मजबूती देता है, खासकर उन योजनाओं में जहां सरकारी पैसे का वितरण होता है। हाई कोर्ट का यह कहना कि कोई भी अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता, एक सशक्त संदेश है कि लापरवाही या गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सरकार के लिए यह निर्णय प्रशासनिक अनुशासन बनाए रखने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का कानूनी आधार मजबूत करता है। आम जनता के लिए यह भरोसा बढ़ाता है कि सरकारी योजनाओं की गड़बड़ी पर कानून सख्त रवैया अपनाएगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या विभागीय जांच प्रक्रिया में गंभीर त्रुटि थी?
➤ नहीं, कोर्ट ने माना कि जांच प्रक्रिया में न्यायिक सिद्धांतों का पालन हुआ। - क्या बर्खास्तगी केवल एफआईआर के आधार पर की गई?
➤ नहीं, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निर्णय विभागीय रिकॉर्ड और दस्तावेजों के आधार पर लिया गया। - क्या बर्खास्तगी की सजा अत्यधिक थी?
➤ नहीं, कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक धन की हेराफेरी एक गंभीर अपराध है और सजा उचित है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Uday Pratap Singh vs. State of Bihar, 2017 (4) PLJR 195
- Roop Singh Negi vs. Punjab National Bank, (2009) 2 SCC 570
- Sharda Devi vs. The Patliputra Central Cooperative Bank, 2017 (1) PLJR 859
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Roop Singh Negi vs. Punjab National Bank, (2009) 2 SCC 570
मामले का शीर्षक
Vikramaditya Singh vs. The State of Bihar & Others
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 1012 of 2017
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 95
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री प्रभात रंजन — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री अनिल कुमार सिंह (जीपी26) — प्रतिवादी राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTAxMiMyMDE3IzEjTg==-v87R–am1–mbOopg=
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