पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा परिषद् की टेंडर प्रक्रिया पर उठाए सवाल: तकनीकी आधार पर ठुकराना अनुचित

पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा परिषद् की टेंडर प्रक्रिया पर उठाए सवाल: तकनीकी आधार पर ठुकराना अनुचित

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने 5 अक्टूबर 2020 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में बिहार शिक्षा परियोजना परिषद् (BEPC) द्वारा एक चार्टर्ड अकाउंटेंसी फर्म को टेंडर प्रक्रिया से बाहर करने को अनुचित ठहराया।

यह मामला उस समय शुरू हुआ जब BEPC ने समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत 2020–2021 के लिए समवर्ती ऑडिटर्स की नियुक्ति हेतु टेंडर निकाला। याचिकाकर्ता फर्म ने इसमें आवेदन किया और अपनी संविधान प्रमाणपत्र (constitution certificate) समेत सभी जरूरी दस्तावेज जमा किए।

लेकिन टेंडर मूल्यांकन समिति ने याचिकाकर्ता की बोली को यह कहते हुए “तकनीकी रूप से अमान्य” घोषित कर दिया कि उसका संविधान प्रमाणपत्र अपेक्षित प्रारूप में नहीं था, भले ही उसमें सभी आवश्यक जानकारियाँ मौजूद थीं। अगले ही दिन फर्म ने आपत्ति दर्ज कराई, लेकिन परिषद् ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।

इस बीच अन्य फर्मों के वित्तीय प्रस्ताव खोले गए और चयन प्रक्रिया पूरी हो गई। जब मामला कोर्ट पहुंचा, तब तक ऑडिटर्स की नियुक्ति हो चुकी थी।

फिर भी, हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए निम्नलिखित बिंदुओं को रेखांकित किया:

  • याचिकाकर्ता ने सभी जरूरी जानकारी उपलब्ध कराई थी। केवल दस्तावेज का प्रारूप अलग था, लेकिन उसकी सामग्री वैध थी।
  • परिषद् की आपत्ति केवल एक तकनीकी त्रुटि पर आधारित थी, जिसे आधार बनाकर अनुभवी फर्म को बाहर करना अनुचित था।
  • यह वही फर्म थी जो पिछले दो वर्षों से सफलतापूर्वक BEPC के लिए ऑडिट का कार्य कर चुकी थी।

हालाँकि कोर्ट ने नियुक्ति रद्द करने का आदेश नहीं दिया (क्योंकि चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी), लेकिन परिषद् को कड़ा निर्देश दिया:

  • भविष्य में इस तरह की मनमानी प्रक्रिया दोहराई न जाए।
  • टेंडर दस्तावेजों में सभी अपेक्षित प्रमाणपत्रों की जानकारी स्पष्ट रूप से दी जाए।
  • याचिकाकर्ता को भविष्य की टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से न रोका जाए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय स्पष्ट रूप से बताता है कि सरकारी टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय आवश्यक है। यह उन विभागों को संदेश देता है जो तकनीकी बहानों से सक्षम आवेदकों को बाहर कर देते हैं:

  • केवल दस्तावेज़ के प्रारूप में अंतर होने से फर्म की पात्रता समाप्त नहीं होती।
  • सरकारी टेंडर प्रक्रिया में सभी शर्तें स्पष्ट और सरल होनी चाहिए।
  • मनमानी निर्णयों से योग्य फर्मों का अपमान और जनहित का नुकसान होता है।

यह फैसला उन पेशेवरों और कंपनियों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो सरकारी टेंडरों में भाग लेते हैं। उन्हें अब ऐसे अनुचित बहिष्कार के खिलाफ न्याय की उम्मीद है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या याचिकाकर्ता को संविधान प्रमाणपत्र के प्रारूप के कारण अनुचित रूप से अयोग्य ठहराया गया?
    • हाँ।
    • क्योंकि दस्तावेज़ की सामग्री पूरी थी और त्रुटि केवल प्रारूप की थी।
  • क्या परिषद् को टेंडर में स्पष्ट शर्तें देनी चाहिए थीं?
    • हाँ।
    • क्योंकि अस्पष्ट शर्तें गलतफहमियाँ और विवाद उत्पन्न करती हैं।
  • क्या यह निर्णय भविष्य में याचिकाकर्ता के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है?
    • नहीं।
    • क्योंकि कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि यह निर्णय भविष्य की भागीदारी पर असर नहीं डालेगा।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

कोर्ट ने इस मामले में कोई विशेष पूर्व निर्णय का हवाला नहीं दिया।

मामले का शीर्षक

Subodh Goel & Co. v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर

CWJC No. 7711 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(1)PLJR 176

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री एस. डी. संजय, वरिष्ठ अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री गिरीजेश कुमार — BEPC की ओर से
  • श्री प्रियदर्शी मातृ शरण — राज्य सरकार की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzcxMSMyMDIwIzEjTg==-XLPyATDHB10=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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