निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने 14 अगस्त 2020 को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि झूठे जाति प्रमाणपत्र और गलत जानकारी के आधार पर प्राप्त शिक्षक पात्रता प्रमाणपत्र (BETET) वैध नहीं है।
अदालत ने ऐसे उम्मीदवार की नियुक्ति अवैध और रद्द घोषित करते हुए सही उम्मीदवार की नियुक्ति को बहाल कर दिया।
यह मामला माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह के समक्ष सिविल रिट जूरिस्डिक्शन केस नंबर 8953/2018 में सुना गया।
मामला क्या था?
याचिकाकर्ता पश्चिम चंपारण जिले के बगहा क्षेत्र का निवासी था। उसने
- मैट्रिक, इंटरमीडिएट और बी.ए. (भूगोल) किया था,
- और BETET-2011 (Bihar Elementary Teachers Eligibility Test) पास किया था।
उसने वर्ष 2012 में ब्लॉक शिक्षक (कक्षा 6–8) पद के लिए पिछड़ा वर्ग (Backward Class) श्रेणी में आवेदन किया।
लेकिन चयन के समय उसकी जगह उत्तर प्रदेश निवासी उम्मीदवार (प्रतिवादी संख्या 11) को नियुक्त कर दिया गया।
याचिकाकर्ता ने इसे जिला अपीलीय प्राधिकरण (DAA) के समक्ष चुनौती दी।
DAA ने जांच में पाया कि प्रतिवादी संख्या 11 ने झूठे तरीके से खुद को बिहार का निवासी और पिछड़ा वर्ग (BC) बताया था, जबकि वह उत्तर प्रदेश का निवासी था।
इसलिए DAA ने 9 सितंबर 2016 को आदेश दिया कि वह व्यक्ति बिहार के BC वर्ग में नहीं आता और उसकी जगह याचिकाकर्ता को चयनित किया जाए।
राज्य अपीलीय प्राधिकरण में अपील
उस व्यक्ति (प्रतिवादी संख्या 11) ने इस आदेश को चुनौती देते हुए शिक्षा विभाग, बिहार राज्य अपीलीय प्राधिकरण, पटना में अपील (संख्या 51/2017) दायर की।
उसने कहा कि —
- उसने 2010 में बिहार में 0.04 डिसमिल जमीन खरीदी,
- 2012 में आवासीय प्रमाणपत्र (28 मई 2012) और जाति प्रमाणपत्र (24 फरवरी 2012) बनवाया,
- और इसलिए वह अब “बिहार निवासी” बन गया है।
राज्य अपीलीय प्राधिकरण ने उसकी दलील मान ली और कहा कि “बिहार का निवासी” का अर्थ “स्थायी निवासी” जरूरी नहीं है।
इसलिए 18 अप्रैल 2018 को उसका पक्ष स्वीकार कर लिया गया और उसकी नियुक्ति बहाल कर दी गई।
इससे याचिकाकर्ता की नियुक्ति रद्द हो गई।
पटना हाईकोर्ट में चुनौती
याचिकाकर्ता ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की और कहा —
- जब BETET परीक्षा (2011) के लिए आवेदन हुआ था, उस समय प्रतिवादी के पास न तो जाति प्रमाणपत्र था, न ही आवास प्रमाणपत्र।
- वह उत्तर प्रदेश का निवासी था और 2015 की मतदाता सूची (Siswa, U.P.) में उसका नाम दर्ज है।
- केवल जमीन खरीदने से कोई “बिहार निवासी” नहीं बन जाता।
- उसका जाति प्रमाणपत्र परीक्षा के कई महीने बाद (फरवरी 2012) जारी हुआ, इसलिए उसका उपयोग पिछली तिथि से नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत सुप्रीम कोर्ट के फैसले
- Bir Singh v. Delhi Jal Board, (2018) 10 SCC 312 — किसी व्यक्ति की जाति स्थिति एक राज्य से दूसरे राज्य में नहीं ले जाई जा सकती।
- S. Pushpa v. Sivachanmugavelu, (2005) 3 SCC 1 — किसी राज्य का SC/ST व्यक्ति दूसरे राज्य में आरक्षण लाभ नहीं पा सकता।
- Chandigarh Administration v. Surinder Kumar, (2004) 1 SCC 530 — आरक्षण का लाभ राज्य के नियमों पर निर्भर करता है।
- Baleshwar Prasad Rajak v. State of Bihar, 2009 (2) BLJ 160 — जाति लाभ “मूल निवास” पर निर्भर करता है, न कि केवल निवास पर।
प्रतिवादी का पक्ष
प्रतिवादी ने कहा —
- BETET परीक्षा में गैर-निवासियों पर कोई रोक नहीं थी।
- उसने जमीन खरीदी, बिजली कनेक्शन लिया और प्रमाणपत्र वैध तरीके से बनवाए।
अदालत का विश्लेषण
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने कहा कि दो बातें अलग-अलग हैं —
- BETET परीक्षा देने की पात्रता,
- और आरक्षण का लाभ लेने की पात्रता।
मुख्य निष्कर्ष:
- BETET परीक्षा: गैर-निवासी भी परीक्षा दे सकते हैं।
- आरक्षण का लाभ: केवल वही व्यक्ति ले सकता है जो “बिहार का मूल निवासी” हो और आवेदन की अंतिम तिथि तक मान्य जाति प्रमाणपत्र रखता हो।
- झूठा दावा: प्रतिवादी के पास परीक्षा के समय कोई वैध प्रमाणपत्र नहीं था; उसने गलत जानकारी दी।
- भू-खरीद और निवासी स्थिति: केवल जमीन खरीदने से कोई व्यक्ति बिहार का निवासी नहीं बन सकता।
अदालत ने कहा कि प्रतिवादी ने धोखे से आरक्षण का लाभ लिया और उसका BETET प्रमाणपत्र अवैध है।
अंतिम निर्णय
- राज्य अपीलीय प्राधिकरण का आदेश (18 अप्रैल 2018) रद्द किया गया।
- प्रतिवादी का BETET प्रमाणपत्र और नियुक्ति दोनों अवैध घोषित किए गए।
- याचिकाकर्ता की नियुक्ति बहाल कर दी गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी नहीं मिलेगी — झूठे जाति या निवास प्रमाणपत्र के आधार पर की गई नियुक्ति टिक नहीं सकती।
- राज्यवार आरक्षण की सीमाएँ स्पष्ट — बिहार का आरक्षण केवल बिहार के मूल निवासियों के लिए है।
- गंभीर धोखाधड़ी के मामले में सख्त रुख — अदालत ने कहा कि धोखा सब कुछ रद्द कर देता है।
- सच्चे उम्मीदवारों की सुरक्षा — इससे सही उम्मीदवारों को न्याय मिला और चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता बढ़ी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या गैर-निवासी व्यक्ति बिहार में आरक्षण का लाभ ले सकता है? ❌ नहीं।
- क्या प्रतिवादी का BETET प्रमाणपत्र वैध था? ❌ नहीं, यह फर्जी जानकारी पर आधारित था।
- क्या केवल जमीन खरीदने से बिहार निवासी बना जा सकता है? ❌ नहीं।
- क्या अदालत ने याचिकाकर्ता की नियुक्ति बहाल की? ✅ हाँ।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Bir Singh v. Delhi Jal Board, (2018) 10 SCC 312
- S. Pushpa v. Sivachanmugavelu, (2005) 3 SCC 1
- Chandigarh Administration v. Surinder Kumar, (2004) 1 SCC 530
- Baleshwar Prasad Rajak v. State of Bihar, 2009 (2) BLJ 160
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Bir Singh v. Delhi Jal Board, (2018) 10 SCC 312
- Baleshwar Prasad Rajak v. State of Bihar, 2009 (2) BLJ 160
मामले का शीर्षक
Arvind Kumar v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 8953 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(3) PLJR 62
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से — श्री पी.के. शाही (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री ज़ैनुल अबेदीन
- प्रतिवादी की ओर से — श्री अवधेश कुमार मिश्रा, श्री प्रताप शर्मा, श्री अजय कुमार, सुश्री रीता राय
निर्णय का लिंक
MTUjODk1MyMyMDE4IzEjTg==-QGoScM0HgIQ=
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