निर्णय की सरल व्याख्या
इस मामले में एक पति ने पटना फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए अंतरिम भरण-पोषण के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। उसका कहना था कि उसे दिए गए आदेश के मुताबिक पत्नी को 12,000 रुपये और बेटे को 3,000 रुपये प्रति माह देना उसके लिए संभव नहीं है, क्योंकि उसकी आय बहुत कम है।
पति और पत्नी की शादी फरवरी 2006 में हुई थी और 2008 में उनका एक बेटा हुआ। 2012 में पत्नी ने पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना (धारा 498A) का केस दर्ज कराया। इस केस में हाई कोर्ट ने पति को अग्रिम जमानत देते हुए यह शर्त रखी थी कि वह हर महीने 8,000 रुपये पत्नी को देगा।
बाद में, पत्नी ने 2015 में धारा 125 सीआरपीसी के तहत 1,50,000 रुपये प्रति माह के भरण-पोषण की मांग की। उसने कहा कि उसका पति मरीन इंजीनियर है और करीब 5 लाख रुपये प्रति माह कमाता है। उसके पास पटना में जमीन और गांव में 5 एकड़ खेती की ज़मीन भी है। पत्नी ने कहा कि वह 2015 में नौकरी छोड़ चुकी है और कोई आय नहीं है।
पति ने कोर्ट में कहा कि वह अब सिर्फ 12,000 रुपये प्रति माह कमाता है और उसमें से 8,000 रुपये पहले से पत्नी को दे रहा है। उसने यह भी कहा कि पत्नी शिक्षिका है और उससे ज्यादा कमाती है।
फैमिली कोर्ट ने सभी पक्षों की बातों को सुनकर पत्नी को 12,000 रुपये (जिसमें पहले से मिलने वाले 8,000 रुपये शामिल हैं) और बेटे को 3,000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया, साथ ही मुकदमेबाजी खर्च के लिए 10,000 रुपये भी देने को कहा।
पति ने इस आदेश को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाई कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा:
- पत्नी को प्रताड़ना के कारण घर छोड़ना पड़ा, इसलिए उसे भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।
- पति ने अपनी आय कम होने का कोई प्रमाण नहीं दिया।
- पत्नी के काम करने का भी कोई स्पष्ट सबूत पति ने नहीं दिया।
- भरण-पोषण की राशि तात्कालिक सहायता के लिए होती है और इसका उद्देश्य पत्नी और बच्चे को गरिमा के साथ जीवन जीने का अवसर देना होता है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले (Bhuwan Mohan Singh v. Meena) का हवाला देते हुए कहा कि अगर पति सक्षम है, तो उसे पत्नी और बच्चे के लिए आर्थिक सहायता देनी ही होगी।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला स्पष्ट करता है कि भरण-पोषण देना केवल एक औपचारिकता नहीं बल्कि पति की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है। अगर पत्नी और बच्चा स्वयं का पालन नहीं कर सकते, तो पति उन्हें उचित जीवन स्तर देने के लिए बाध्य है, चाहे उसकी नौकरी में बदलाव आया हो या नहीं।
इससे महिलाओं को यह भरोसा मिलता है कि वे आर्थिक रूप से सुरक्षित रहेंगी, भले ही वैवाहिक संबंध टूट जाएं या विवादों में हों। सरकारी नीतियों और समाज के लिए यह संकेत है कि महिलाओं की गरिमा और बच्चों की भलाई सर्वोपरि है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या फैमिली कोर्ट का भरण-पोषण आदेश अनुचित था?
- नहीं, आदेश उचित तथ्यों पर आधारित था।
- क्या पति की कम आय को सही तरीके से आंका गया?
- हां, क्योंकि उसने अपनी कम आय का कोई सबूत नहीं दिया।
- क्या पत्नी ने स्वेच्छा से घर छोड़ा था, इसलिए उसे भरण-पोषण नहीं मिलना चाहिए?
- नहीं, क्योंकि प्रताड़ना का आरोप था।
- क्या अग्रिम जमानत के आदेश में दिया गया भरण-पोषण पर्याप्त था?
- नहीं, फैमिली कोर्ट ने उसे समायोजित करते हुए सही निर्णय दिया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Bhuwan Mohan Singh v. Meena, AIR 2014 SC 2875
मामले का शीर्षक
Vishvajit Kumar v. Shweta Kumari
केस नंबर
Civil Miscellaneous Jurisdiction No. 1071 of 2017
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 725
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संदीप कुमार, श्री निखिल अग्रवाल, श्रीमती अदिति हंसरिया, श्रीमती दीपिका शर्मा
- प्रत्युत्तरकर्ता की ओर से: श्री अंशुल, श्री सच्चिदानंद स्वरूप, श्री राजेश रंजन
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NDQjMTA3MSMyMDE3IzEjTg==-D0–am1–XNPwJWSw=
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