निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि अगर कोई पत्नी अपने ससुराल में प्रताड़ना का शिकार होने का दावा करती है और उसी कारण वह अपने पति से अलग रह रही है, तो उसे अंतरिम भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता। यह फैसला एक ऐसे मामले में आया जहाँ पति ने अपने ऊपर लगे अंतरिम भरण-पोषण के आदेश को चुनौती दी थी।
पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर फैमिली कोर्ट, भोजपुर, आरा द्वारा पारित आदेश दिनांक 25.05.2018 को रद्द करने की मांग की थी। इस आदेश में पति को निर्देश दिया गया था कि वह पत्नी को 8,000 रुपये प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण के रूप में और 20,000 रुपये मुकदमे की लागत के रूप में दे।
मामले की पृष्ठभूमि यह थी कि पति ने 2011 में वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए एक मामला दर्ज किया था। लेकिन जब पत्नी उसमें शामिल नहीं हुई, तो 2013 में पति ने तलाक का मुकदमा दायर किया। इसके बाद पत्नी ने 2015 में पति के खिलाफ 498ए और दहेज निषेध अधिनियम की धाराओं के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज कर दिया।
पत्नी ने कोर्ट में दावा किया कि उसका कोई निजी आय नहीं है और वह अपने भाइयों पर निर्भर है, जिनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है। उसने यह भी कहा कि पति की आय कई स्रोतों से होती है, जैसे किराए की संपत्ति, गाड़ी से आय, पोल्ट्री फार्म, शेयर ट्रेडिंग और सहारा इंडिया में एजेंट की नौकरी। उसने 30,000 रुपये प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण की मांग की थी।
पति ने इन दावों का खंडन किया और कहा कि पत्नी स्वयं काम करती है और उसकी आय 30,000 रुपये प्रतिमाह है। लेकिन उसने कोई सबूत पेश नहीं किया। उसने यह स्वीकार किया कि वह सहारा इंडिया में एजेंट के रूप में काम करता है।
हाई कोर्ट ने यह पाया कि पत्नी के कामकाजी होने का कोई ठोस प्रमाण नहीं है और सिर्फ यह कहना कि वह अपने पति के साथ नहीं रह रही, उसे भरण-पोषण से वंचित नहीं कर सकता — खासकर जब उसने प्रताड़ना के आरोप लगाए हैं और मामला अदालत में लंबित है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन महिलाओं के लिए राहत का संदेश है जो प्रताड़ना के कारण अपने पति से अलग रह रही हैं और आर्थिक रूप से असहाय हैं। यह साफ करता है कि अगर कोई पत्नी अपने वैवाहिक घर में प्रताड़ना का सामना कर रही है, तो वह अपनी सुरक्षा के लिए अलग रह सकती है और उसे अंतरिम भरण-पोषण का हक मिलेगा।
यह निर्णय यह भी स्थापित करता है कि यदि पति दावा करता है कि पत्नी कामकाजी है, तो उसे इस दावे को साबित करने के लिए ठोस प्रमाण देने होंगे। केवल मौखिक आरोपों से पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या पत्नी अलग रहने के बावजूद अंतरिम भरण-पोषण की हकदार है?
✔ हाँ, अगर प्रताड़ना का आरोप है और मामला लंबित है। - क्या पति के इस दावे को स्वीकार किया गया कि पत्नी स्वयं कमाती है?
❌ नहीं, क्योंकि कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया। - क्या 8,000 रुपये प्रतिमाह की राशि अनुचित है?
❌ नहीं, यह राशि न्यायसंगत मानी गई। - क्या हाई कोर्ट को फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करना चाहिए था?
❌ नहीं, फैमिली कोर्ट का आदेश उचित था।
मामले का शीर्षक
Anjani Kumar @ Pintu vs. Priya Devi @ Soni
केस नंबर
Civil Miscellaneous Jurisdiction No. 387 of 2019
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 89
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री मकरध्वज उपाध्याय — याचिकाकर्ता की ओर से
- (उत्तरदाता की ओर से वकील का नाम उपलब्ध नहीं)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NDQjMzg3IzIwMTkjMSNO-ZTAW27–am1–H8KI=
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