पटना हाई कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर्मचारी को फिर से बहाल करने का आदेश दिया

पटना हाई कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर्मचारी को फिर से बहाल करने का आदेश दिया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी को नौकरी से हटाए जाने के खिलाफ दायर राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया और कर्मचारी की बहाली का आदेश बरकरार रखा। यह फैसला इस आधार पर दिया गया कि विभागीय जांच में उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया था।

मामला एक ब्लॉक सांख्यिकी पर्यवेक्षक से जुड़ा है, जिस पर 2014 में ₹5,000 रिश्वत मांगने का आरोप था। शिकायत पर निगरानी विभाग ने छापा मारा और ₹4,000 के साथ कर्मचारी को पकड़ा। इसके बाद उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत आपराधिक मामला दर्ज हुआ और साथ ही विभागीय जांच भी शुरू हुई।

विभागीय जांच में प्रस्तुतकर्ता अधिकारी ने 2016 में एक रिपोर्ट दी जिसमें कहा गया कि कर्मचारी पर लगे आरोप साबित नहीं हुए हैं। लेकिन जांच अधिकारी ने इस रिपोर्ट को नजरअंदाज करते हुए आरोपों को साबित माना। इसी आधार पर उसे 2017 में बर्खास्त कर दिया गया और 2021 में उसकी अपील भी खारिज कर दी गई।

कर्मचारी ने फिर पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की। एकल पीठ ने पाया कि जांच प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं—मुख्य गवाहों जैसे शिकायतकर्ता और छापे की टीम के पुलिसकर्मियों को गवाही के लिए नहीं बुलाया गया। केवल निगरानी विभाग के एक पत्र को सबूत माना गया जो पर्याप्त नहीं था। इसलिए कोर्ट ने कर्मचारी की बर्खास्तगी रद्द कर दी और उसे सभी वित्तीय लाभों सहित बहाल करने का आदेश दिया।

इसके खिलाफ राज्य सरकार ने एलपीए दायर किया, लेकिन हाई कोर्ट की खंडपीठ ने भी माना कि यह तकनीकी त्रुटि का मामला नहीं बल्कि पूरी तरह सबूतों की कमी का मामला है। इसलिए दोबारा जांच का आदेश देना अनुचित होगा।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला यह दर्शाता है कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई केवल विधिवत तरीके और उचित सबूतों के आधार पर ही की जानी चाहिए। कोर्ट ने यह साफ किया कि यदि जांच में जरूरी गवाह और दस्तावेज नहीं पेश किए जाते, तो केवल एकतरफा रिपोर्ट के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती। यह निर्णय कर्मचारियों को मनमाने निलंबन या बर्खास्तगी से सुरक्षा प्रदान करता है और सरकारी महकमों को जिम्मेदार जांच के लिए प्रेरित करता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या विभागीय जांच वैध थी: नहीं, क्योंकि जांच में कोई ठोस सबूत नहीं प्रस्तुत किया गया।
  • क्या बर्खास्तगी का आदेश सही था: नहीं, उसे रद्द कर दिया गया।
  • क्या मामले को दोबारा जांच के लिए वापस भेजा जाना चाहिए था: नहीं, क्योंकि यह केवल तकनीकी खामी नहीं बल्कि पूरी जांच में गंभीर लापरवाही का मामला था।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Roop Singh Negi v. Punjab National Bank, (2009) 2 SCC 570
  • Union of India v. Mohd. Ramzan Khan, (1991) 1 SCC 588
  • ECIL v. B. Karunakar, (1993) 4 SCC 727
  • Union of India & Ors. v. P. Gunasekaran, (2015) 2 SCC 610
  • State of Bihar v. Vikash Kumar, LPA No. 446 of 2024 (Patna High Court)

मामले का शीर्षक

State of Bihar & Ors. v. Anil Kumar Sinha

केस नंबर

LPA No. 770 of 2024

उद्धरण (Citation)- 2025 (1) PLJR 138

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति श्री पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री अंजनी कुमार, अपर महाधिवक्ता-4 (राज्य सरकार की ओर से)
  • श्री दीपक सहाय जमुआर, एसी टू एएजी-4 (राज्य सरकार की ओर से)
  • श्री अखिलेश दत्ता वर्मा, अधिवक्ता (प्रतिवादी कर्मचारी की ओर से)

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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