पटना हाई कोर्ट का फैसला: बीआईएडा द्वारा औद्योगिक भूखंड रद्द करने पर रोक

पटना हाई कोर्ट का फैसला: बीआईएडा द्वारा औद्योगिक भूखंड रद्द करने पर रोक

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला पटना के पाटलिपुत्र औद्योगिक क्षेत्र में स्थित एक डेयरी उद्योग से जुड़ा है। एक निजी कंपनी ने 2008 में यहाँ लगभग 24,032 वर्गफुट का औद्योगिक भूखंड बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (BIADA) से लीज़ पर लिया था। कंपनी ने दूध, पनीर, घी, दही, मक्खन और आइसक्रीम बनाने की फैक्ट्री स्थापित की, जिसकी क्षमता प्रतिदिन लगभग 25,000 लीटर दूध प्रसंस्करण की थी।

कंपनी का कहना था कि वह शुरू से ही उत्पादन कर रही थी और बैंकों से भी वित्तीय सहयोग लेकर सफलतापूर्वक कारोबार चला रही थी।

विवाद की शुरुआत

2015 में बीआईएडा ने कंपनी को नोटिस जारी किया और कहा कि:

  • निरीक्षण में उत्पादन गतिविधि दिखाई नहीं दी।
  • भूखंड पर अवैध दो मंज़िला निर्माण किया गया है।

कंपनी ने इसका जवाब दिया और बताया कि उत्पादन चालू है तथा निर्माण विस्तार के लिए किया गया था। इसके बावजूद 31.03.2016 को बीआईएडा ने लीज़ रद्द कर दी, सुरक्षा राशि ज़ब्त कर ली और भूखंड वापस लेने का आदेश दिया।

कंपनी की अपील भी 27.12.2016 को खारिज कर दी गई। फिर 2018 में उद्योग विभाग के विकास आयुक्त ने भी कंपनी की अपील खारिज कर दी और भूखंड का कब्ज़ा तुरंत लेने का निर्देश दिया।

कंपनी की दलीलें

कंपनी ने कोर्ट में कहा कि—

  • उसकी फैक्ट्री 2008 से लगातार चल रही है और कई बार सरकारी निरीक्षण में भी उत्पादन साबित हुआ है।
  • 2018 में उद्योग विभाग के निरीक्षण में साफ पाया गया कि यूनिट चालू है और तस्वीरें भी ली गईं।
  • कंपनी ने दिसंबर 2018 में अमूल (गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन) के साथ अनुबंध किया, जिसके तहत बिहार में अमूल ब्रांड के तहत दूध प्रसंस्करण व पैकेजिंग का काम किया जा रहा था।
  • प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वज़न और माप विभाग, और बॉयलर निरीक्षक ने उसके संचालन को मान्यता दी और प्रमाणपत्र दिए।
  • कोविड-19 लॉकडाउन के समय भी खुद बीआईएडा ने कंपनी को पास जारी किया था, इसे “आवश्यक सेवा” मानते हुए।
  • लीज़ रद्द करने की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण और परेशान करने वाली थी।

बीआईएडा का पक्ष

  • बीआईएडा का कहना था कि निरीक्षण के समय सिर्फ 40 लीटर दूध एक बर्तन में उबल रहा था, बॉयलर बंद था और कोई औद्योगिक गतिविधि नहीं चल रही थी।
  • इस आधार पर allotment रद्द करना सही था।

कोर्ट का विश्लेषण

माननीय न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण ने कहा:

  • जब राज्य के कई विभाग (उद्योग विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, बैंकों आदि) यह प्रमाणित कर रहे हैं कि यूनिट चालू है, तो अकेला बीआईएडा इसे “नॉन-फंक्शनल” नहीं कह सकता।
  • यह भी सच है कि महामारी के दौरान बीआईएडा ने खुद इस यूनिट को आवश्यक सेवा मानते हुए पास दिया।
  • बिहार सरकार लगातार निवेशकों को आमंत्रित कर रही है। अगर ऐसे में उद्यमियों को मनमाने तरीके से परेशान किया जाएगा और लीज़ अचानक रद्द कर दी जाएगी, तो रोजगार और उद्योग दोनों प्रभावित होंगे।
  • यूनिट बंद होने पर समय देना चाहिए या विविधीकरण (diversification) की अनुमति देनी चाहिए, न कि तुरंत लीज़ रद्द कर देना चाहिए।

कोर्ट का फैसला

  • कोर्ट ने माना कि कंपनी ने ठोस सबूतों से साबित किया है कि उसका उद्योग “सक्रिय और चालू” है।
  • इसलिए 31.03.2016, 27.12.2016 और 20.11.2018 के आदेश (लीज़ रद्द करने और अपील खारिज करने वाले) को रद्द कर दिया।
  • याचिका स्वीकार कर ली गई और कंपनी को राहत दी गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  1. उद्योगपतियों के लिए सुरक्षा: यह फैसला बताता है कि अगर कोई यूनिट वास्तव में चल रही है और सरकारी विभाग उसे मान्यता दे रहे हैं, तो बीआईएडा जैसे प्राधिकरण मनमाने ढंग से लीज़ रद्द नहीं कर सकते।
  2. सरकारी विभागों के लिए संदेश: राज्य की अलग-अलग एजेंसियों को एक-दूसरे से विरोधाभासी निर्णय नहीं लेने चाहिए। अगर उद्योग विभाग और अन्य एजेंसियाँ फैक्ट्री को चालू मान रही हैं, तो बीआईएडा अकेले उसे बंद नहीं मान सकता।
  3. सरकार की औद्योगिक नीति: बिहार सरकार निवेश आकर्षित करने के लिए उद्योगपतियों को बुलाती है। ऐसे फैसले निवेशकों का भरोसा मज़बूत करेंगे।
  4. रोजगार और अर्थव्यवस्था पर असर: इस फैसले से न केवल कंपनी को राहत मिली, बल्कि उससे जुड़े कर्मचारियों और दुग्ध आपूर्ति श्रृंखला को भी सुरक्षा मिली।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या बीआईएडा को यूनिट को “नॉन-फंक्शनल” मानकर लीज़ रद्द करने का अधिकार था?
    ❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि यूनिट चल रही थी और कई विभागों से प्रमाणित थी।
  • क्या अलग-अलग सरकारी विभागों की राय में असंगति का असर उद्योग पर डाला जा सकता है?
    ❌ नहीं। जब कई विभाग यूनिट को मान्यता दे रहे हैं, तो एक विभाग की नकारात्मक रिपोर्ट पर्याप्त नहीं है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • कोर्ट ने मुख्य रूप से दस्तावेज़ी सबूतों और औद्योगिक नीति के सिद्धांतों पर भरोसा किया।

मामले का शीर्षक

M/s Naturals Dairy Private Ltd. बनाम State of Bihar एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 22922 of 2018

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 261

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण (निर्णय दिनांक 22.03.2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय सिंह, श्री निखिल कुमार अग्रवाल, सुश्री अदिति हंसरिया
  • बीआईएडा की ओर से: श्री नरेश दीक्षित
  • राज्य की ओर से: श्री सुरेश कुमार, AC to GP-1

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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