पटना हाईकोर्ट ने टेंडर में बोली खारिज करने का फैसला बरकरार रखा, ब्लैकलिस्ट की जानकारी छुपाने को गंभीर माना

पटना हाईकोर्ट ने टेंडर में बोली खारिज करने का फैसला बरकरार रखा, ब्लैकलिस्ट की जानकारी छुपाने को गंभीर माना

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला इस सवाल पर था कि क्या किसी सरकारी कंपनी की बोली (टेंडर) को केवल इस वजह से खारिज किया जा सकता है कि उस कंपनी को पहले किसी दूसरे राज्य के सरकारी विभाग ने ब्लैकलिस्ट किया था, जबकि उस ब्लैकलिस्ट आदेश पर किसी और हाईकोर्ट से अंतरिम (अस्थायी) रोक लगी हुई थी।

याचिकाकर्ता एक “नवरत्न” सरकारी कंपनी है जो बिजली क्षेत्र में परामर्श और परियोजना निर्माण का काम करती है। इसने उत्तर बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (NBPDCL) की एक बड़ी योजना — मुख्यमंत्री कृषि विद्युत संबंध योजना — में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट एजेंसी (PMA) बनने के लिए बोली लगाई। इस योजना की अनुमानित लागत ₹600 करोड़ से अधिक थी और इसमें नौ सर्किलों में बिजली ढांचा तैयार करने का काम था।

टेंडर की शर्तों के अनुसार, बोली लगाने वाली कंपनी को एक शपथपत्र देना था कि वह बोली खोलने की तारीख तक किसी भी सरकारी विभाग, सार्वजनिक कंपनी या फंडिंग एजेंसी द्वारा ब्लैकलिस्ट या डिबार नहीं की गई है।

याचिकाकर्ता ने 1 अप्रैल 2021 को ऐसा शपथपत्र दिया कि वह ब्लैकलिस्ट नहीं है। लेकिन बाद में NBPDCL को पता चला कि उसे नमामि गंगे एवं ग्रामीण जलापूर्ति विभाग, उत्तर प्रदेश ने 11 दिसंबर 2020 को ब्लैकलिस्ट किया था। यह ब्लैकलिस्ट आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट, लखनऊ बेंच द्वारा 17 दिसंबर 2020 को स्थगित (स्टे) कर दिया गया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि स्टे लगने से ब्लैकलिस्ट “लागू” नहीं थी, इसलिए इसे बताने की जरूरत नहीं थी।

NBPDCL ने बोली खारिज करते हुए कहा:

  1. ब्लैकलिस्ट आदेश तब तक “मौजूद” रहता है जब तक उसे अंतिम रूप से रद्द नहीं किया जाता। केवल स्टे से वह पूरी तरह खत्म नहीं होता।
  2. “ब्लैकलिस्ट नहीं” वाला शपथपत्र देना झूठी जानकारी (misrepresentation) और तथ्य छिपाना है।
  3. टेंडर की धारा 1.1.3(e), 1.2.20 और 1.2.28 के मुताबिक ऐसी स्थिति में बोली अस्वीकार करना सही है।

याचिकाकर्ता ने पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी और तर्क दिया कि:

  • स्टे लगने के बाद ब्लैकलिस्ट प्रभावी नहीं थी, इसलिए अयोग्यता नहीं बनती।
  • हाईकोर्ट का आदेश इन रेम (सब पर लागू) होता है, इसलिए NBPDCL को भी मानना चाहिए था।
  • बोली खारिज करना मनमाना और बिना उचित कारण के था।

NBPDCL ने जवाब दिया कि:

  • अंतरिम आदेश (स्टे) अस्थायी होते हैं, इन्हें अंतिम अनुमति की तरह नहीं माना जा सकता, खासकर सार्वजनिक धन से जुड़े बड़े ठेकों में।
  • ब्लैकलिस्ट की जानकारी छुपाना, चाहे उस पर स्टे हो, गंभीर उल्लंघन है।
  • टेंडर की ईमानदारी और पारदर्शिता के लिए सख्ती जरूरी है।

पटना हाईकोर्ट ने NBPDCL के फैसले को सही माना और कहा:

  • अंतरिम स्टे से ब्लैकलिस्ट “खत्म” नहीं होती, वह केवल लागू नहीं होती; लेकिन उसका तथ्य छिपाना गलत है।
  • सार्वजनिक ठेकों में अंतरिम आदेश को अंतिम आदेश जैसा मानना खतरनाक है।
  • न्यायालय की भूमिका टेंडर के फैसले को दोबारा आंकने की नहीं, बल्कि यह देखने की है कि प्रक्रिया कानूनी, निष्पक्ष और बिना भेदभाव के हो।
  • शपथपत्र में ब्लैकलिस्ट की जानकारी न देना गंभीर तथ्य-छिपाव है और इससे बोली खारिज करना उचित है।

अदालत ने याचिका खारिज कर दी और कोई लागत (कॉस्ट) नहीं लगाई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • पारदर्शिता की अनिवार्यता: टेंडर में भाग लेने वाले को हर वह जानकारी देनी होगी जो पात्रता पर असर डालती है, चाहे उस पर अदालत से रोक क्यों न लगी हो।
  • अंतरिम आदेश का सीमित असर: स्टे ऑर्डर का मतलब यह नहीं कि मूल आदेश अस्तित्व में नहीं है; इसलिए संबंधित तथ्य छिपाना गंभीर उल्लंघन है।
  • सार्वजनिक धन की सुरक्षा: अदालत ने स्पष्ट किया कि बड़े सार्वजनिक ठेकों में पात्रता की शर्तों का सख्ती से पालन होना चाहिए।
  • न्यायालय का सीमित हस्तक्षेप: टेंडर मामलों में अदालत प्रक्रिया की वैधता देखती है, न कि यह कि किसे ठेका मिलना चाहिए।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या ब्लैकलिस्ट आदेश पर स्टे लगने से उसकी जानकारी देना जरूरी नहीं रहता?
    निर्णय: जरूरी रहता है। स्टे से आदेश खत्म नहीं होता, और उसे न बताना गलत है।
  • क्या NBPDCL का बोली खारिज करना मनमाना था?
    निर्णय: नहीं। यह टेंडर की शर्तों और सार्वजनिक हित के अनुसार था।
  • टेंडर मामलों में अदालत का हस्तक्षेप कितना हो सकता है?
    निर्णय: केवल प्रक्रिया की वैधता तक; अदालत प्रशासनिक निर्णय का स्थानापन्न नहीं बन सकती।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Consolidated Coffee Ltd. v. Agricultural Income Tax Officer, (2001) 1 SCC 278
  • Reliance Energy Ltd. v. Maharashtra State Road Development Corp., (2007) 8 SCC 1
  • Vidya Charan Shukla v. Tamil Nadu Olympic Association, AIR 1991 Madras 323
  • Tata Cellular v. Union of India, (1994) 6 SCC 651
  • Asian Resurfacing of Road Agency (P) Ltd. v. CBI, (2018) 16 SCC 299
  • Devendra Kumar v. State of Uttarakhand, (2013) 9 SCC 363
  • Empire Jute Co. Ltd. v. Jute Corporation of India, (2007) 14 SCC 680

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Tata Cellular v. Union of India, (1994) 6 SCC 651
  • Afcon Infrastructures Ltd. v. Nagpur Metro Rail Corp. Ltd., (2016) 16 SCC 818
  • N.G. Projects Ltd. v. Vinod Kumar Jain, 2022 SCC Online SC 336
  • K.D. Sharma v. Steel Authority of India Ltd., (2008) 12 SCC 481

मामले का शीर्षक

REC Power Development and Consultancy Limited बनाम North Bihar Power Distribution Co. Ltd. एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 16313 of 2021

माननीय न्यायमूर्ति

माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री पी.के. शाही, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री मुकेश कुमार, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी की ओर से: श्री विनय कीर्ति सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री आनंद कुमार ओझा, अधिवक्ता; श्री ए.के. कर्ण, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/cc00b07d-dc36-464c-b313-caf9575048da.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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