निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक निजी स्कूल संचालक (याचिकाकर्ता) के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया। यह मामला पश्चिम चंपारण जिले के चनपटिया थाना में बिजली विभाग द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी से जुड़ा था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि स्कूल की इमारत 11 केवी विद्युत् लाइन के ऊपर बनाई गई है, जिससे खतरा उत्पन्न हो सकता है।
इस FIR में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353 और 188 के तहत मामला दर्ज किया गया था। लेकिन याचिकाकर्ता ने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि इन धाराओं के तहत कोई भी संज्ञेय अपराध (cognizable offence) उनके खिलाफ बनता ही नहीं।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद स्पष्ट किया कि IPC की धारा 353 तभी लागू होती है जब किसी सरकारी कर्मचारी के साथ ड्यूटी के दौरान हमला या जोर-जबर्दस्ती की गई हो। जबकि इस मामले में FIR में ऐसा कोई आरोप नहीं था कि याचिकाकर्ता ने किसी कर्मचारी के साथ मारपीट की या बल प्रयोग किया।
जहां तक IPC की धारा 188 का सवाल है, यह तब लागू होती है जब किसी अधिकृत अधिकारी द्वारा जारी आदेश का जानबूझकर उल्लंघन किया जाए। लेकिन FIR में ऐसा कोई आदेश या उसकी अवहेलना का ज़िक्र नहीं था। इसके अतिरिक्त, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 195(1)(a) के अनुसार, धारा 188 के तहत मामला तभी दर्ज हो सकता है जब सम्बंधित अधिकारी स्वयं लिखित शिकायत करे — जो कि इस मामले में नहीं हुई।
इसलिए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि FIR में जो तथ्य दिए गए हैं, वे किसी भी संज्ञेय अपराध को दर्शाते नहीं हैं और पुलिस के पास मामला दर्ज करने व जांच करने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं था।
परिणामस्वरूप, चनपटिया थाना कांड संख्या 37/2019 की प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया और याचिका स्वीकार कर ली गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला नागरिकों को इस बात का संरक्षण देता है कि हर प्रशासनिक या विवादास्पद स्थिति को आपराधिक मुकदमे का रूप नहीं दिया जा सकता। पुलिस और प्रशासन को यह याद दिलाता है कि केवल वही मामले दर्ज किए जाएं जिनमें विधिक आधार हो और जो उचित प्रक्रिया के अंतर्गत हों।
यह निर्णय खासकर उन मामलों में अहम है जहां IPC की धाराओं का अनुचित या जल्दबाज़ी में प्रयोग किया जाता है — जैसे कि धारा 353 और 188। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 188 के तहत बिना वैधानिक शिकायत के FIR दर्ज करना कानूनन गलत है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या धारा 353 बिना बल प्रयोग या हमला के लागू हो सकती है?
➤ नहीं, कोर्ट ने कहा कि कोई हमला या जोर-जबरदस्ती नहीं हुई थी। - क्या धारा 188 के तहत FIR बिना लिखित शिकायत के दर्ज हो सकती है?
➤ नहीं, CrPC की धारा 195(1)(a) के तहत लिखित शिकायत अनिवार्य है। - क्या FIR में कोई संज्ञेय अपराध का उल्लेख था?
➤ नहीं, कोर्ट ने कहा कि आरोप संज्ञेय अपराध नहीं बनाते। - क्या पुलिस को ऐसे मामले में जांच का अधिकार था?
➤ नहीं, संज्ञेय अपराध न होने के कारण पुलिस का मामला दर्ज करना ही अवैध था।
मामले का शीर्षक
Md. Jamal Akhtar बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CR. WJC No. 1199 of 2019
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 203
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री बिमलेश कुमार पांडेय – याचिकाकर्ता की ओर से
(प्रत्युत्तर में कोई उपस्थिति नहीं)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTYjMTE5OSMyMDE5IzEjTg==-PacCPER5QGw=
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