निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक सुरक्षा सेवा कंपनी की याचिका पर आंशिक रूप से सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि किसी फर्म को सरकारी टेंडर प्रक्रिया से बाहर किया जाता है या उसे ब्लैकलिस्ट किया जाता है, तो पहले उसे अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए। बिना सुनवाई के की गई कोई भी ब्लैकलिस्टिंग कार्रवाई कानून के विरुद्ध मानी जाएगी।
यह मामला एक निजी कंपनी से जुड़ा है जो सुरक्षा और एएमसी (Annual Maintenance Contract) सेवाएं प्रदान करती है। कंपनी ने 18.03.2016 को जिला स्वास्थ्य समिति, पूर्णिया द्वारा जारी निविदा में हिस्सा लिया था। याचिकाकर्ता का दावा था कि वह इस कार्य के लिए सबसे योग्य और अनुभवी थी, लेकिन इसके बावजूद उसका फाइनेंशियल बिड खोला ही नहीं गया और उसे बिना ठोस कारण के निविदा प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि अधिकारियों ने जानबूझकर उसे दरकिनार किया ताकि अन्य पक्षों को फायदा हो। बाद में, जब मामला न्यायालय में विचाराधीन था, तो विभाग ने कंपनी को भविष्य की सभी निविदाओं से प्रतिबंधित कर (ब्लैकलिस्ट) दिया। इस पर याचिकाकर्ता ने अंतरिम आवेदन (Interlocutory Applications) दायर कर कोर्ट से राहत मांगी, जिसके तहत न्यायालय ने अस्थायी रोक भी लगाई थी।
अंततः वर्ष 2023 में, इस मामले की अंतिम सुनवाई के दौरान न्यायालय ने दो प्रमुख मुद्दों पर गौर किया:
- क्या निविदा से याचिकाकर्ता का फाइनेंशियल बिड रद्द किया जाना उचित था?
- क्या याचिकाकर्ता को सुने बिना उसे ब्लैकलिस्ट किया जाना वैध था?
पहले मुद्दे पर, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को निविदा की प्रक्रिया में कोई अंतरिम सुरक्षा नहीं दी गई थी और तब तक टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी, अतः निविदा रद्द करने के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
दूसरे और अधिक गंभीर मुद्दे पर, यानी ब्लैकलिस्टिंग, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय दिया। न्यायालय ने पाया कि दिनांक 16.08.2016 को जारी ब्लैकलिस्टिंग आदेश याचिकाकर्ता को सुने बिना पारित किया गया था, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के दो प्रमुख निर्णयों का हवाला दिया:
- UMC Technologies Pvt. Ltd. बनाम Food Corporation of India, (2021) 2 SCC 551
- Isolators Through Its Proprietor बनाम MP Madhya Kshetra Vidyut Vitran Co., 2023 LiveLaw (SC) 330
इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ब्लैकलिस्टिंग जैसे दंडात्मक आदेश बिना नोटिस और सुनवाई के लागू नहीं हो सकते।
इसलिए, पटना उच्च न्यायालय ने ब्लैकलिस्टिंग आदेश को रद्द कर दिया, परंतु संबंधित प्राधिकरण को यह स्वतंत्रता दी कि यदि वे फिर से कार्रवाई करना चाहें तो पहले याचिकाकर्ता को नोटिस दें, उसका पक्ष सुनें और कानूनी प्रक्रिया का पालन करें। यह पूरा कार्य आदेश प्राप्त होने के चार महीने के भीतर करना होगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय उन सभी व्यवसायिक संगठनों और ठेकेदारों के लिए महत्वपूर्ण है जो सरकारी टेंडर प्रक्रिया में भाग लेते हैं। यह सिद्ध करता है कि ब्लैकलिस्टिंग जैसे गंभीर फैसले जल्दबाजी में और बिना उचित प्रक्रिया के नहीं लिए जा सकते।
सरकारी विभागों के लिए भी यह एक चेतावनी है कि वे कानूनी और न्यायिक प्रक्रियाओं का पालन करें। कोई भी आदेश जो किसी कंपनी की प्रतिष्ठा और आजीविका को प्रभावित करता है, उसके लिए पारदर्शिता और उचित सुनवाई अनिवार्य है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या निविदा में फाइनेंशियल बिड न खोलना गलत था?
- निर्णय: नहीं
- कारण: टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और कोर्ट ने इस पर हस्तक्षेप नहीं किया।
- क्या ब्लैकलिस्टिंग आदेश वैध था?
- निर्णय: नहीं
- कारण: याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
- क्या विभाग दोबारा ब्लैकलिस्टिंग कार्रवाई कर सकता है?
- निर्णय: हां, लेकिन पहले विधिवत नोटिस और सुनवाई देनी होगी।
- ब्लैकलिस्टिंग पर पुनर्विचार की समयसीमा क्या है?
- निर्णय: आदेश प्राप्त होने से 4 महीने के भीतर कार्रवाई पूरी की जाए।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- UMC Technologies Pvt. Ltd. बनाम Food Corporation of India, (2021) 2 SCC 551
- Isolators Through Its Proprietor बनाम MP Madhya Kshetra Vidyut Vitran Co., 2023 LiveLaw (SC) 330
मामले का शीर्षक
M/s A To Z Protection And AMC Services Pvt. Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 10754 of 2016
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से कोई उपस्थित नहीं
- श्री अजीत कुमार (G.A.-9), श्री अरविंद कुमार (AC to G.A.-9) – प्रतिवादियों की ओर से
निर्णय का लिंक
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