निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे मामले में हस्तक्षेप किया जिसमें बिहार सरकार के योजना और विकास विभाग ने एक निजी एजेंसी को दो साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया था। कोर्ट ने पाया कि अपील प्राधिकारी द्वारा दिया गया निर्णय “non-speaking order” यानी बिना किसी स्पष्ट कारण के दिया गया था और कानूनन गलत था।
यह मामला पटना की एक निजी मानव संसाधन (manpower) एजेंसी से जुड़ा है जिसे 1 दिसंबर 2022 को सरकारी अस्पतालों में स्टाफ उपलब्ध कराने के लिए एक साल का ठेका मिला था। लेकिन कुछ ही महीनों में विभाग ने एजेंसी को कारण बताओ नोटिस भेजा और ठेका रद्द करने के साथ-साथ उसे दो साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया।
एजेंसी ने पहले इस आदेश के खिलाफ CWJC No. 8122 of 2023 में पटना हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। कोर्ट ने उस समय विभाग को निर्देश दिया था कि एजेंसी को उचित सुनवाई का अवसर दिया जाए और एक नया आदेश जारी किया जाए।
इसके बाद विभाग ने सुनवाई की और पुनः ब्लैकलिस्ट करने का निर्णय लिया। एजेंसी ने इस बार विभागीय अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपील दायर की, लेकिन अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि याची ने कोई नया दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया।
पटना हाई कोर्ट की मुख्य पीठ, जिसमें माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन और माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी शामिल थे, ने पाया कि अपीलीय आदेश “non-speaking” था — उसमें न तो याची की दलीलों का उल्लेख था और न ही कोई तर्क। कोर्ट ने कहा कि केवल यह कहना कि “कोई नया साक्ष्य नहीं आया”, अपील खारिज करने का वैध कारण नहीं हो सकता।
कोर्ट ने यह आदेश रद्द करते हुए निर्देश दिया कि अपीलीय प्राधिकारी याची को नोटिस देकर फिर से सुनवाई करे और विस्तार से कारण सहित निर्णय दे।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन सभी एजेंसियों और कंपनियों के लिए एक राहत है जो सरकारी टेंडरों में भाग लेती हैं। हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि:
- सरकार किसी एजेंसी को ब्लैकलिस्ट करते समय सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करे।
- अपीलीय आदेशों में स्पष्ट कारण और विवेचना होनी चाहिए। बिना कारण बताए अपील खारिज करना कानून का उल्लंघन है।
- ब्लैकलिस्टिंग जैसे गंभीर कदम का सीधा असर किसी संस्था की प्रतिष्ठा और आजीविका पर पड़ता है, इसलिए इसमें न्यायिक मापदंडों का पालन अनिवार्य है।
- केवल “नया साक्ष्य नहीं है” कहकर अपील को नकार देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
इस फैसले से बिहार की सभी सरकारी एजेंसियों और ठेका कंपनियों को यह स्पष्ट संकेत गया है कि प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता और न्याय का पालन जरूरी है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या अपीलीय आदेश बिना कारण बताए पारित किया जा सकता है?
- नहीं। ऐसा आदेश “non-speaking” माना जाता है और अवैध होता है।
- क्या अपील सिर्फ इसलिए खारिज की जा सकती है क्योंकि कोई नया दस्तावेज़ नहीं दिया गया?
- नहीं। अपीलीय प्राधिकारी को रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों की समीक्षा करनी होती है।
- क्या विभाग ने कोर्ट के पहले आदेश का सही पालन किया?
- आंशिक रूप से। सुनवाई की गई, लेकिन अपीलीय प्रक्रिया में त्रुटि रही।
- कोर्ट ने क्या राहत दी?
- अपीलीय आदेश रद्द किया गया और मामले की दोबारा सुनवाई का निर्देश दिया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- कोई विशेष निर्णय नहीं — कोर्ट ने सामान्य प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों का प्रयोग किया
मामले का शीर्षक
M/s Vaishnavi Hospital v. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 12018 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन एवं माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अजय कुमार ठाकुर, श्री शिवम, सुश्री वैष्णवी सिंह
- राज्य की ओर से: श्री पी. के. वर्मा (AAG-3), श्री संजय कुमार घोषर्वे (AC to AAG-3)
निर्णय का लिंक
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