बिना अनुबंध के ठेकेदार को काली सूची में डालना अवैध – पटना हाई कोर्ट का फैसला

बिना अनुबंध के ठेकेदार को काली सूची में डालना अवैध – पटना हाई कोर्ट का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने 16 नवम्बर 2021 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि किसी बोलीदाता (ठेकेदार) से सरकारी अनुबंध नहीं हुआ है, तो उसे काली सूची (blacklist) में डालना गलत और गैरकानूनी है। साथ ही, बिना कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) दिए की गई कार्रवाई को न्यायालय ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध बताया।

मामला गोपालगंज जिले के जिला निर्वाचन कार्यालय द्वारा मतदाता सूची तैयार करने के लिए निकाले गए एक सरकारी टेंडर से जुड़ा था। याचिकाकर्ता एक प्राइवेट फर्म है जिसने उस टेंडर में हिस्सा लिया। उसने 26 मदों में से 22 मदों के लिए सबसे कम दरें दीं, जिनमें से 12 मदों पर उसने ‘शून्य दर’ (zero rate) का प्रस्ताव दिया।

बाकी 4 मदों में किसी अन्य फर्म की दरें सबसे कम थीं। जिला प्रशासन ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह इन 4 मदों में भी कम दरें स्वीकार करे और इसके लिए हलफनामा दे। याचिकाकर्ता ने यह कहकर मना कर दिया कि उसकी मूल दरें संतुलित हैं और उसमें कोई बदलाव उचित नहीं है।

इसके बाद, न केवल उसका टेंडर रद्द कर दिया गया, बल्कि उसे आगे के सभी टेंडरों से हमेशा के लिए वंचित कर दिया गया — अर्थात, उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने इसे पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी और कहा:

  • उसका किसी भी तरह का अनुबंध नहीं हुआ था।
  • उसे कभी कोई नोटिस नहीं दिया गया।
  • हमेशा के लिए ब्लैकलिस्ट करना अनुचित और असंवैधानिक है।
  • यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(g) का उल्लंघन है।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की सभी बातों को स्वीकार करते हुए कहा:

  • जब तक कोई औपचारिक अनुबंध न हो, तब तक उसकी शर्तों को न मानना अनुबंध का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
  • किसी भी संस्था को ब्लैकलिस्ट करने से पहले कारण बताओ नोटिस और सुनवाई का मौका देना जरूरी है।
  • स्थायी या अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्ट करना असंगत और अनुपातहीन (disproportionate) है।

अंततः कोर्ट ने ब्लैकलिस्टिंग का आदेश रद्द कर दिया और याचिका स्वीकार कर ली।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय सरकारी टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। यह बताता है कि:

  • केवल टेंडर भरने से किसी संस्था पर कानूनी जिम्मेदारी नहीं आती जब तक अनुबंध नहीं हो।
  • किसी भी दंडात्मक कार्रवाई (जैसे ब्लैकलिस्टिंग) से पहले उचित प्रक्रिया, सूचना और सुनवाई जरूरी है।
  • ब्लैकलिस्ट करना एक गंभीर प्रशासनिक निर्णय है, और इसे मनमाने ढंग से नहीं लिया जा सकता।

इस फैसले से सरकारी अधिकारियों को यह सीख मिलती है कि वे किसी भी व्यवसायिक संस्था के अधिकारों का हनन न करें, और विधिक प्रक्रिया का पूरा पालन करें।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या बिना अनुबंध के किसी बोलीदाता को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
    ❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि अनुबंध के बिना उसकी शर्तों को न मानना उल्लंघन नहीं है।
  • क्या ब्लैकलिस्ट करने से पहले नोटिस देना जरूरी है?
    ✔ हां। बिना नोटिस के दंड देना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
  • क्या अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग वैध है?
    ❌ नहीं। कोर्ट ने इसे अत्यधिक और अनुपातहीन बताया।
  • क्या जिला प्रशासन की कार्रवाई मनमानी थी?
    ✔ हां। बिना अनुबंध, बिना नोटिस और अनिश्चितकाल के लिए ब्लैकलिस्ट करना मनमानी है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • M/s Suraksha Diagnostic Pvt. Ltd v. State of Bihar & Ors, 2016 SCC OnLine Pat 7834
  • Bhim Sain v. Union of India & Ors, AIR 1980 DEL 260
  • South Eastern Coalfields Ltd v. S. Kumar’s Associates AKM (JV), 2021 SCC OnLine SC 487
  • Daffodills Pharmaceuticals Ltd. v. State of UP, (2019) 17 SCALE 758
  • Ventindia Pharmaceuticals Ltd. v. State of UP, (2020) 1 SCC 804

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • UMC Technologies Pvt. Ltd v. Food Corporation of India & Anr, (2021) 2 SCC 551
  • Kulja Industries Ltd. v. Chief General Manager, BSNL, (2014) 14 SCC 731
  • Daffodills Pharmaceuticals Ltd. v. State of UP, (2019) 17 SCALE 758

मामले का शीर्षक

M/s The Art Gallery & Anr v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर

CWJC No. 24956 of 2019

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से:
    श्री आशीष गिरी, अधिवक्ता
    श्री ज्ञानेंद्र कुमार शुक्ला, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से:
    श्री मिथिलेश कुमार उपाध्याय, सहायक अधिवक्ता (AC to GP-3)

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/2a476083-0413-4cf8-8870-c057eeb6a1d8.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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