निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि किसी ठेकेदार को बिना नोटिस दिए और सुनवाई का अवसर दिए ब्लैकलिस्ट करना कानून और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। इस फैसले में कोर्ट ने बिहार सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा एक ठेकेदार कंपनी को 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने का आदेश रद्द कर दिया।
यह मामला एक निजी कंस्ट्रक्शन कंपनी से जुड़ा है, जिसे 2008–09 में एक सड़क निर्माण का कार्य दिया गया था। कंपनी ने कोर्ट में दलील दी कि वह कार्य 2016 में पूरा हो चुका था और उसके बाद कई वर्षों तक कोई शिकायत नहीं आई। लेकिन जुलाई 2021 में अचानक उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया गया, वह भी बिना किसी नोटिस या सुनवाई के। हैरानी की बात यह रही कि ब्लैकलिस्टिंग का आदेश कंपनी को भेजा तक नहीं गया, बल्कि सीधा सरकारी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया।
कोर्ट ने अपने निर्णय में दो मुख्य बातें कही:
- नोटिस नहीं दिया गया: विभाग ने ठेकेदार को कोई शो-कॉज नोटिस (कारण बताओ नोटिस) नहीं भेजा था, जो कि “बिहार कांट्रैक्टर रजिस्ट्रेशन नियमावली, 2007” के अनुसार अनिवार्य है।
- सजा बहुत अधिक और अनुचित थी: बिना सुनवाई किए, सीधे 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग देना कानून के मुताबिक नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि ब्लैकलिस्ट करना कोई सामान्य प्रशासनिक कार्य नहीं है, इसका गंभीर असर होता है। इससे संबंधित व्यक्ति या कंपनी न सिर्फ वर्तमान में बल्कि भविष्य में भी सरकारी कार्यों में भाग नहीं ले सकती। इसे “नागरिक मृत्यु” (civil death) भी कहा जाता है। इसलिए इस प्रकार की कार्रवाई से पहले न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि याचिकाकर्ता एक तय तिथि पर विभाग के कार्यालय में उपस्थित होगा, जहां उसे नया नोटिस दिया जाएगा और उसका जवाब सुनने के बाद चार हफ्तों के भीतर नया निर्णय लिया जाएगा। तब तक कंपनी को अन्य सरकारी टेंडरों में भाग लेने की अनुमति दी गई है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन सभी ठेकेदारों और व्यवसायियों के लिए राहत है जो सरकार के साथ काम करते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि:
- सरकारी विभाग मनमाने तरीके से ब्लैकलिस्टिंग नहीं कर सकते।
- प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन जरूरी है, यानी किसी को सजा देने से पहले उसे सुनवाई का अवसर देना ही होगा।
- ब्लैकलिस्टिंग जैसा गंभीर कदम उठाने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन होना अनिवार्य है।
यह फैसला सरकारी विभागों के लिए एक चेतावनी भी है कि वे भविष्य में किसी भी तरह की कार्रवाई में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या याचिकाकर्ता को शो-कॉज नोटिस दिया गया था?
- नहीं, विभाग नोटिस देने का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका।
- क्या सिर्फ वेबसाइट पर आदेश अपलोड करना पर्याप्त था?
- नहीं, आदेश पहले संबंधित पक्ष को व्यक्तिगत रूप से भेजा जाना चाहिए।
- क्या 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग उचित थी?
- नहीं, कोर्ट ने इसे अत्यधिक और असंगत सजा माना।
- ब्लैकलिस्टिंग से पहले क्या-क्या प्रक्रिया जरूरी है?
- लिखित नोटिस भेजना
- जवाब देने का अवसर देना
- संतुलित और कारणयुक्त निर्णय लेना
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- State of Orissa v. Balram Sahu, (2009) 2 SCC 652
- Patel Engineering Ltd. v. Union of India, (2012) 11 SCC 257
- Gorkha Security Services v. Govt. of NCT of Delhi, (2014) 9 SCC 105
- Kulja Industries Ltd. v. BSNL, (2014) 14 SCC 731
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Vetindia Pharmaceuticals Ltd. v. State of Uttar Pradesh, (2021) 1 SCC 804
- Natwar Singh v. Director of Enforcement, (2004) 13 SCC 255
- SEBI v. Akshaya Infrastructure Pvt. Ltd., (2014) 11 SCC 112
- H.L. Trehan v. Union of India, (1989) 1 SCC 764
मामले का शीर्षक
M/s Memerej Construction Pvt. Ltd. v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No.1097 of 2022
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- एस.डी. संजय (वरिष्ठ अधिवक्ता) — याचिकाकर्ता की ओर से
- मोहित अग्रवाल, अक्षत अग्रवाल — याचिकाकर्ता के सह-प्रतिनिधि
- कुमार आलोक (SC-7) — प्रतिवादी सरकार की ओर से
निर्णय का लिंक
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