निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक स्क्रैप व्यवसायी की याचिका खारिज करते हुए कहा कि बिहार राज्य पाठ्यपुस्तक प्रकाशन निगम द्वारा ब्लैकलिस्ट किया जाना पूरी तरह उचित था। याचिकाकर्ता को अनुबंध के पालन में विफल रहने के कारण दो वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट किया गया था।
मामला निगम द्वारा फटे-पुराने पाठ्यपुस्तकों की बिक्री को लेकर एक निविदा (Tender) से जुड़ा था। यह किताबें दो श्रेणियों में बेची जानी थीं—कटे हुए (shredded) और बिना कटे हुए (unshredded)। शर्तों के अनुसार, इन किताबों का उपयोग केवल लुगदी (pulp) बनाने के लिए किया जाना था, ना कि लिफाफा बनाने या रद्दी के रूप में बेचने के लिए।
याचिकाकर्ता ने दोनों श्रेणियों के लिए अलग-अलग दरों पर बोली लगाई थी। लेकिन जब उसे केवल बिना कटे हुए किताबों के लिए ₹1.91 करोड़ का भुगतान कर डिलीवरी लेने का आदेश (वर्क ऑर्डर) मिला, तो उसने यह कहते हुए मना कर दिया कि:
- उसे दोनों प्रकार की किताबें मिलनी चाहिए थीं;
- उसकी बोली तो केवल ₹58.71 लाख की थी, उससे अधिक भुगतान का कोई औचित्य नहीं।
कोर्ट ने दस्तावेज़ों की जांच की और पाया कि याचिकाकर्ता ने बिना कटे हुए किताबों के लिए ₹26,786 प्रति टन और कटे हुए किताबों के लिए ₹9,786 प्रति टन की बोली लगाई थी। चूंकि उस समय केवल बिना कटे हुए किताबें ही उपलब्ध थीं, निगम ने उसी दर के आधार पर ऑर्डर जारी किया।
इसके अलावा, निविदा की शर्तें साफ़ कहती थीं कि यह बिक्री “जैसा है, जहाँ है” (As Is Where Is) आधार पर होगी, और बोलीदाता पहले जाकर सामग्री की स्थिति देख सकते थे। इसके बावजूद याचिकाकर्ता ने सामग्री नहीं ली और भुगतान नहीं किया।
याचिकाकर्ता ने जो दरें ऑनलाइन डाली थीं, वे जीएसटी और टीसीएस को छोड़कर थीं। जब निगम ने करों को जोड़कर अंतिम राशि बताई, तो याचिकाकर्ता ने आपत्ति की, जो कोर्ट के अनुसार अनुचित थी।
अंततः निगम ने वर्क ऑर्डर रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को दो वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया। कोर्ट ने इस फैसले को पूरी तरह न्यायोचित बताया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला दर्शाता है कि सरकारी निविदाओं में भाग लेने वाले व्यापारियों को अपनी ज़िम्मेदारी को गंभीरता से लेना होगा। बोली लगाने के बाद पीछे हटना या गलत दावे करना स्वीकार्य नहीं है। यह भी स्पष्ट किया गया कि “As Is Where Is” नीति के तहत सामग्री की स्थिति देखने का विकल्प होने पर बाद में शिकायत करना जायज नहीं।
सरकारी संस्थाओं के लिए यह निर्णय एक उदाहरण है कि नियमों के उल्लंघन पर कानूनी कार्रवाई करना पूरी तरह वैध है। आम जनता के लिए यह विश्वास कायम करता है कि सरकारी संपत्तियों की बिक्री प्रक्रिया पारदर्शी और अनुशासित तरीके से होती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या ठेकेदार को दोनों प्रकार की किताबें मिलनी चाहिए थीं?
- नहीं। निविदा “As Is Where Is” आधार पर थी, जिसमें केवल उपलब्ध सामग्री दी जानी थी।
- क्या कीमत में बढ़ोतरी अनुचित थी?
- नहीं। बोली में करों को छोड़कर दर दी गई थी, और कर जोड़ना नियमानुसार था।
- क्या ब्लैकलिस्ट करना उचित था?
- हाँ। याचिकाकर्ता ने भुगतान नहीं किया और सामग्री नहीं ली, इसलिए कार्रवाई उचित थी।
मामले का शीर्षक
M/s S.K. Traders बनाम बिहार राज्य पाठ्यपुस्तक प्रकाशन निगम एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 1476 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति राजीव रॉय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री ब्रिस्केतु शरण पांडेय, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री नरेश दीक्षित, अधिवक्ता — प्रतिवादी की ओर से
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