निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ठेकेदार द्वारा दायर की गई याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। मामला बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम (BSEIDC) द्वारा ठेकेदार को काली सूची (blacklist) में डालने से संबंधित है। याचिकाकर्ता पर आरोप था कि उसने सरकारी निविदा (Tender) में फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र लगाया था, जिसके कारण उसे 10 वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।
पहले एक रिट याचिका CWJC No. 18068/2023 में, इसी ठेकेदार ने ब्लैकलिस्टिंग के आदेश को चुनौती दी थी। कोर्ट ने वह याचिका पहले ही खारिज कर दी थी। इसके बावजूद, याचिकाकर्ता ने नई याचिका CWJC No. 3493/2024 दाखिल कर दी, जिसमें उसने इस बार “कॉन्ट्रैक्टर रजिस्ट्रेशन रूल्स, 2012” में हुए 2022 के संशोधन को ही असंवैधानिक बताया।
इस बार याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि एक ही अधिकारी (निगम के प्रबंध निदेशक) को पंजीकरण, दंड और अपील तीनों का अधिकार देना अनुचित है। साथ ही यह भी कहा गया कि संशोधन से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है और ब्लैकलिस्टिंग की अवधि निर्धारित कर दी गई है।
हालाँकि, कोर्ट ने पाया कि यह पूरी याचिका पहले की याचिका से संबंधित मुद्दों को छिपाते हुए दायर की गई थी। यहाँ तक कि याचिकाकर्ता के वकील वही थे, लेकिन उन्होंने पहले वाली याचिका का कोई ज़िक्र नहीं किया था। कोर्ट ने इसे जानबूझकर की गई ‘छलपूर्ण कार्यवाही’ (deliberate deception) कहा।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब पहले की याचिका में ब्लैकलिस्टिंग को वैध ठहराया जा चुका है, तो अब नियमों को चुनौती देने का कोई आधार नहीं बनता।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया जो दो हफ्तों के भीतर बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (BSLSA) को देना होगा। यदि यह राशि समय पर नहीं दी जाती है, तो इसे भू-राजस्व की तरह वसूल किया जाएगा।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक याचिकाकर्ता यह जुर्माना नहीं चुकाता, तब तक वह अपनी ब्लैकलिस्टिंग की अवधि कम करवाने के लिए संबंधित अधिकारियों से अनुरोध भी नहीं कर सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि कोर्ट ऐसे मामलों को गंभीरता से लेता है जहाँ कोई याचिकाकर्ता जानबूझकर पिछली कार्यवाहियों को छिपाकर दोबारा याचिका दायर करता है। यह वकीलों और पक्षकारों को ईमानदारी से कोर्ट में प्रस्तुत होने का संदेश देता है।
सरकारी विभागों के लिए यह निर्णय एक प्रोत्साहन है कि वे टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखें और फर्जी दस्तावेज़ प्रस्तुत करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। जनता के लिए यह संकेत है कि कानून का दुरुपयोग करने वालों को कोर्ट बख्शता नहीं है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या ठेकेदार नियमों के संशोधन को तब चुनौती दे सकता है जब पहले से उसी मामले पर फैसला आ चुका हो?
- नहीं, जब पूर्व निर्णय में ब्लैकलिस्टिंग वैध ठहराई जा चुकी है तो नियमों को चुनौती देने का अधिकार नहीं बनता।
- क्या एक ही अधिकारी को रजिस्ट्रेशन, सज़ा और अपील का अधिकार देना गलत है?
- इस पर कोर्ट ने कोई अंतिम राय नहीं दी क्योंकि याचिकाकर्ता का पक्ष ही खारिज कर दिया गया।
- क्या याचिका दायर करने का यह तरीका प्रक्रिया का दुरुपयोग था?
- हाँ, कोर्ट ने इसे जानबूझकर किया गया छल बताया।
- क्या कोई दंड लगाया गया?
- ₹10,000 का जुर्माना BSLSA को दो सप्ताह में देने का आदेश।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- CWJC No. 18068/2023, निर्णय दिनांक 30.01.2024
मामले का शीर्षक
M/s Sharda Construction बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 3493 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति हरीश कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री प्रभात रंजन, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री पी. के. शाही, महाधिवक्ता — प्रतिवादी की ओर से
श्री गिरिजीश कुमार, अधिवक्ता — प्रतिवादी की ओर से
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