पटना हाई कोर्ट ने ठेकेदार की 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग रद्द की — न्यायसंगत प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ

पटना हाई कोर्ट ने ठेकेदार की 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग रद्द की — न्यायसंगत प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक सरकारी ठेकेदार को 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने के फैसले को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने माना कि विभाग ने ब्लैकलिस्टिंग का फैसला बिना उचित प्रक्रिया अपनाए, मनमाने ढंग से लिया।

मामला बिहार सरकार के लघु जल संसाधन विभाग से जुड़ा है। एक पंजीकृत ठेकेदार ने विभाग के 2021-22 के टेंडर में हिस्सा लिया था। आरोप लगा कि उसने अपने अनुभव प्रमाणपत्र में “कार्य मूल्य” (work done value) से संबंधित जानकारी में छेड़छाड़ की और फर्जी दस्तावेज़ लगाए।

20 फरवरी 2023 को विभाग ने उस ठेकेदार को 10 वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया। यह आदेश कार्यपालक अभियंता की रिपोर्ट के आधार पर इन-चार्ज चीफ इंजीनियर ने जारी किया। लेकिन इस फैसले के पहले ठेकेदार को ना तो स्पष्ट रूप से आरोप बताए गए और ना ही ब्लैकलिस्टिंग की संभावना की सूचना दी गई।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा:

  • जो नोटिस दिया गया वह केवल “व्याख्या माँगने” के लिए था, उसमें ब्लैकलिस्टिंग का जिक्र नहीं था।
  • नोटिस अस्पष्ट था, और वैधानिक अधिकारी द्वारा जारी नहीं किया गया था।
  • उसने 5 दिसंबर 2022 को विस्तृत जवाब दिया, लेकिन उस पर कोई विचार नहीं हुआ।
  • विभाग ने बाद में जो सिफारिशें लीं, उन्हें याचिकाकर्ता से साझा नहीं किया गया।
  • अंतिम आदेश में कोई कारण नहीं बताया गया, यह पूरी तरह से एकतरफा निर्णय था।

विभाग का पक्ष था:

  • ठेकेदार ने खुद माना कि फर्जी प्रमाणपत्र गलती से लगा दिया गया।
  • विभाग ने बिहार कांट्रैक्टर्स पंजीकरण नियमावली, 2007 के तहत कार्रवाई की।
  • उसे पर्याप्त अवसर दिया गया और नियमों के अनुसार ही निर्णय हुआ।

लेकिन हाई कोर्ट ने कहा:

  • ब्लैकलिस्ट करने से पहले स्पष्ट नोटिस देना जरूरी है, जिसमें यह बताया जाए कि ब्लैकलिस्टिंग की कार्रवाई की जा सकती है।
  • याचिकाकर्ता का जवाब ध्यानपूर्वक नहीं पढ़ा गया और उसे खारिज करने का कोई कारण नहीं दिया गया।
  • निर्णय “non-speaking” यानी बिना तर्क और कारण के दिया गया।
  • 10 साल की सजा अत्यधिक कठोर है, जबकि ठेकेदार का पंजीकरण खुद सिर्फ 5 साल का था।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Gorkha Security Services और Kulja Industries Ltd. जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि ब्लैकलिस्टिंग जैसी सजा देने से पहले उचित प्रक्रिया, निष्पक्ष सुनवाई और कारण देने की कानूनी ज़रूरत है।

अंततः कोर्ट ने ब्लैकलिस्टिंग का आदेश रद्द कर दिया और विभाग को 3 महीने में दोबारा, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के तहत, फैसला लेने का निर्देश दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय सरकारी विभागों को यह याद दिलाता है कि वे किसी भी व्यक्ति या संस्था को दंडित करने से पहले नियमों का पूरा पालन करें। ब्लैकलिस्टिंग से व्यक्ति की आजीविका और प्रतिष्ठा पर असर पड़ता है, इसलिए यह निर्णय बिना उचित सुनवाई और कारणों के नहीं लिया जा सकता।

इसके अलावा, इस फैसले से यह भी स्पष्ट हुआ कि ठेकेदारों को भी अपने दस्तावेज़ सत्य रूप में देने चाहिए, वरना उन्हें गंभीर परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। लेकिन साथ ही, विभाग मनमाने तरीके से कार्रवाई नहीं कर सकते।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या ब्लैकलिस्टिंग के लिए अलग से स्पष्ट नोटिस देना जरूरी है?
    ✔️ हां। कोर्ट ने कहा कि ऐसा नोटिस देना आवश्यक था, जो इस मामले में नहीं दिया गया।
  • क्या विभाग ने याचिकाकर्ता के जवाब को ध्यान से पढ़ा?
    ❌ नहीं। आदेश में कोई कारण नहीं दिया गया कि क्यों उसका पक्ष खारिज किया गया।
  • क्या 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग सजा उपयुक्त थी?
    ❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि यह सजा अनुपातहीन (disproportionate) और कठोर है।
  • क्या विभाग द्वारा बाद में जोड़ी गई सिफारिशें न्यायोचित थीं?
    ❌ नहीं। उन्हें याचिकाकर्ता से साझा नहीं किया गया, जिससे पारदर्शिता की कमी रही।
  • क्या वैकल्पिक उपाय होने के कारण रिट याचिका नहीं होनी चाहिए थी?
    ❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि जब मौलिक अधिकार और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हो, तब रिट याचिका वैध होती है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय [यदि कोई हो]

  • Gorkha Security Services बनाम सरकार (NCT of Delhi), (2014) 9 SCC 105
  • Siemens Engineer v. Union of India, AIR 1976 SC 1785
  • S.L. Kapoor v. Jagmohan, AIR 1981 SC 136
  • S.N. Mukherjee v. Union of India, AIR 1990 SC 1984
  • Chandan Kumar Yadav v. State of Bihar, 2013 (2) PLJR 605

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय [यदि कोई हो]

  • Kulja Industries Ltd. v. BSNL, (2014) 14 SCC 731
  • Erusian Equipment & Chemicals v. State of West Bengal, AIR 1975 SC 266
  • UMC Technologies v. FCI, (2021) 2 SCC 551
  • M.P. Power Management Co. Ltd. v. Sky Power, (2023) 2 SCC 703

मामले का शीर्षक

Rajiv Kumar बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 3860 of 2023

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

याचिकाकर्ता की ओर से:

  • श्री प्रभात रंजन, अधिवक्ता
  • श्री चंदन कुमार, अधिवक्ता

प्रतिवादी की ओर से:

  • श्री अजय कुमार, सरकारी अधिवक्ता-9

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/578ea692-7ae7-4596-9625-c0c3c169fac3.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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