निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में बिहार सरकार के एक ठेकेदार को बिना सुनवाई 10 वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने माना कि संबंधित अधिकारी ने ठेकेदार को पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता, एक क्लास-1 ठेकेदार, को वर्ष 2019 में नालंदा जिले में “अहर-पईन योजना” के तहत जलस्रोतों की मरम्मत का ठेका ₹3.14 करोड़ में मिला था। काम तीन महीने में पूरा करना था, लेकिन ठेकेदार समय पर कार्य नहीं कर सका। इसके बावजूद विभाग ने समय बढ़ाया, पर असंतोषजनक प्रगति के चलते 27 अगस्त 2019 को उन्हें बिना किसी कारण बताओ नोटिस के 10 वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।
हैरानी की बात यह रही कि ब्लैकलिस्ट करने के बाद भी विभाग ने उन्हें वही काम पूरा करने दिया, जो उन्होंने 20 अगस्त 2021 तक खत्म कर दिया। बाद में विभाग ने इस देरी का कारण COVID-19 बताया, जबकि काम की मूल समय-सीमा कोरोना से पहले ही समाप्त हो चुकी थी।
याचिकाकर्ता ने वर्ष 2023 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की। अदालत ने याचिका देर से दाखिल करने पर नाराजगी जताई, लेकिन यह माना कि जब तक किसी को सुनवाई का अवसर न दिया जाए, तब तक कोई भी सज़ा या प्रतिबंध वैध नहीं माना जा सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को मजबूती देता है – “सुनवाई का अधिकार सबको मिलना चाहिए।” सरकारी अधिकारियों को यह याद रखना आवश्यक है कि कोई भी निर्णय, विशेषकर ब्लैकलिस्टिंग जैसा गंभीर कदम, बिना नोटिस और जवाब देने के अवसर के नहीं लिया जा सकता।
ठेकेदारों के लिए यह फैसला राहत देने वाला है क्योंकि यह दिखाता है कि मनमाने फैसलों के खिलाफ कोर्ट उनका संरक्षण कर सकता है। वहीं सरकार और प्रशासन के लिए यह चेतावनी है कि अनुचित प्रक्रिया से लिए गए निर्णय अदालत में टिक नहीं सकते।
यह फैसला बिहार जैसे राज्यों में सार्वजनिक परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या बिना नोटिस दिए किसी ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
❌ नहीं, यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। - क्या 2007 के बिहार ठेकेदार नियमों के तहत 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग मान्य थी?
❌ नहीं, जब तक सुनवाई नहीं होती, ऐसा प्रतिबंध अवैध है। - क्या याचिका देर से दाखिल होने से ठेकेदार का पक्ष कमजोर हुआ?
⚠ कुछ हद तक, लेकिन बिना नोटिस के कार्रवाई होने के कारण अदालत ने हस्तक्षेप किया। - क्या विभाग COVID-19 के कारण देरी को सही ठहरा सकता है जबकि डेडलाइन उससे पहले की थी?
❌ नहीं, यह दलील अव्यवस्थित थी।
मामले का शीर्षक
Kumar Mritunjay Construction Pvt. Ltd. v. State of Bihar & Others
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 14474 of 2023
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रॉय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री प्रभात रंजन – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री विनय कीर्ति सिंह (G.A. 2) और श्री अखिलेश्वर सिंह – प्रतिवादियों की ओर से
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