निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में बिहार सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा एक डिजिटल सेवा प्रदाता कंपनी को अनिश्चितकाल के लिए ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह आदेश न केवल अनुचित है, बल्कि असंतुलित और न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध भी है।
मामले में याचिकाकर्ता एक प्रतिष्ठित डिजिटल सेवा कंपनी है जिसे बिहार में कंप्यूटर आधारित परीक्षाओं (Computer Based Tests – CBT) के संचालन हेतु ठेका मिला था। यह ठेका पांच साल के लिए था, जिसे दो साल और बढ़ाया जा सकता था।
अगस्त 2024 में “कौशल परीक्षा-2” (CTT-2) के दौरान परीक्षा में कुछ खामियां सामने आईं। विशेष रूप से कक्षा 9वीं और 10वीं की पांच विषयों में प्रश्नों की पुनरावृत्ति (repetition) पाई गई। इसके चलते सात विषयों में पुनः परीक्षा करानी पड़ी।
SCERT (राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद) द्वारा इन अनियमितताओं की जांच कराई गई और फिर कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। कंपनी ने जवाब में बताया कि प्रश्नपत्र उन्हें SCERT द्वारा बहुत देर से — कई बार परीक्षा के दिन ही — उपलब्ध कराए गए थे। समय की कमी के कारण प्रश्नों को सिस्टम में अपलोड करते समय कुछ प्रश्न दोहराए गए।
कंपनी ने बिना कोई अतिरिक्त राशि मांगे पुनः परीक्षा सफलतापूर्वक करवाई और परिणाम प्रकाशित किए। लेकिन इसके बावजूद, विभाग ने उसे अनिश्चितकाल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया।
कंपनी ने कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी और कहा:
- यह आदेश बिना उचित जांच के जारी किया गया।
- कंपनी की सफाई को नजरअंदाज किया गया।
- आदेश स्पष्ट नहीं है और उसकी समयसीमा नहीं बताई गई।
- सारा दोष केवल कंपनी पर डाल दिया गया, जबकि विभाग की भी गलती थी।
कोर्ट ने सभी तर्कों पर सहमति जताई और कहा कि ब्लैकलिस्टिंग जैसी कड़ी कार्रवाई तभी की जानी चाहिए जब दोष साबित हो और उसका दायरा तय हो। कोर्ट ने यह भी माना कि प्रश्नपत्र देर से मिलने की वजह से ही तकनीकी गलती हुई और कंपनी ने पूरी जिम्मेदारी के साथ पुनः परीक्षा आयोजित की, जिससे छात्रों का नुकसान नहीं हुआ।
इसलिए कोर्ट ने ब्लैकलिस्टिंग का आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि विभाग 15 दिनों के भीतर कंपनी के जवाब को ध्यान में रखते हुए नया आदेश पारित करे।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला केवल ब्लैकलिस्टिंग पर है, ठेके की समाप्ति को चुनौती देने का अधिकार कंपनी को अलग से है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन सभी निजी कंपनियों और सेवा प्रदाताओं के लिए महत्वपूर्ण है जो सरकारी कार्यों में भाग लेते हैं, खासकर डिजिटल सेवाओं में। यह स्पष्ट करता है कि:
- बिना न्यायसंगत प्रक्रिया के कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती।
- यदि गलती विभाग की ओर से भी हुई हो, तो उसे भी ध्यान में रखना अनिवार्य है।
- अनिश्चितकालीन प्रतिबंध, जब तक उचित रूप से स्पष्ट न किया गया हो, कानून के खिलाफ होता है।
सरकारी एजेंसियों के लिए यह फैसला एक चेतावनी है कि कोई भी निर्णय निष्पक्ष, तर्कसंगत और न्यायोचित होना चाहिए, खासकर जब वह किसी कंपनी के व्यावसायिक अस्तित्व को प्रभावित करता हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग वैध थी?
- निर्णय: नहीं
- कारण: यह आदेश अस्पष्ट, असंतुलित और अन्यायपूर्ण था। याचिकाकर्ता के उत्तर को अनदेखा किया गया।
- क्या कंपनी अकेले दोषी थी?
- निर्णय: नहीं
- कारण: प्रश्न SCERT द्वारा समय पर नहीं दिए गए थे, जिससे तकनीकी गड़बड़ी हुई।
- क्या विभाग को दोबारा विचार करना चाहिए?
- निर्णय: हां
- कारण: कोर्ट ने मामला विभाग को पुनर्विचार हेतु लौटाया, और कहा कि 15 दिनों के अंदर नया निर्णय लिया जाए।
- क्या यह निर्णय ठेका समाप्त करने पर लागू होता है?
- निर्णय: नहीं
- कारण: याचिकाकर्ता चाहे तो अलग से वह निर्णय चुनौती दे सकता है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
कोई उल्लेख नहीं
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Daffodills Pharmaceuticals Ltd. & Anr. बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (2020) 18 SCC 550
मामले का शीर्षक
SIFY Digital Services Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No.1292 of 2025
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश श्री अशुतोष कुमार
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से:
श्री चित्रंजन सिन्हा, वरिष्ठ अधिवक्ता
श्री श्रीराम कृष्णा, श्री अमरजीत, श्री प्रभात कुमार सिंह, श्री शशांक शेखर कुमार, अधिवक्ता
राज्य की ओर से:
श्री अजीत कुमार, एसी टू जीए-9
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से:
श्री सत्यबीर भारती, वरिष्ठ अधिवक्ता
श्री अभिषेक आनंद, सुश्री कनुप्रिया, अधिवक्ता
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