पटना हाई कोर्ट ने ठेकेदार पर 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग को रद्द किया, कहा – नोटिस अस्पष्ट और सजा असंतुलित

पटना हाई कोर्ट ने ठेकेदार पर 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग को रद्द किया, कहा – नोटिस अस्पष्ट और सजा असंतुलित

निर्णय की सरल व्याख्या

1 जुलाई 2025 को पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया जिसमें एक निर्माण कम्पनी को बिहार सरकार के सड़क निर्माण विभाग द्वारा 10 वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट किए जाने को रद्द कर दिया गया। यह मामला तीन याचिकाओं के माध्यम से कोर्ट में लाया गया था, जिन्हें एक साथ सुना गया।

निर्माण कम्पनी का तर्क था कि विभाग द्वारा जो नोटिस भेजा गया था, वह अस्पष्ट था और उसमें यह नहीं बताया गया था कि कम्पनी ने कौन-कौन सी गलतियाँ कीं। जब कम्पनी ने इस पर स्पष्टीकरण मांगा, तो विभाग ने जवाब देने के बजाय सीधे 10 वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया।

कम्पनी ने कोर्ट में यह भी कहा कि इतने लंबे समय के लिए ब्लैकलिस्ट करना उसके लिए ‘नागरिक मृत्यु’ (civil death) के समान है, क्योंकि इससे कम्पनी पूरी तरह से व्यवसाय करने में असमर्थ हो जाती है और सरकारी ठेकों में भाग नहीं ले सकती।

हाई कोर्ट ने माना कि कोई भी प्रशासनिक कार्यवाही—जैसे कि ब्लैकलिस्ट करना—तब तक वैध नहीं मानी जा सकती जब तक उसमें उचित प्रक्रिया न अपनाई जाए। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी सजा जो अत्यधिक हो और बिना उचित सुनवाई के दी जाए, वह कानून के विरुद्ध है।

इसलिए कोर्ट ने मौजूदा ब्लैकलिस्टिंग आदेश को रद्द कर दिया, लेकिन यह भी निर्देश दिया कि विभाग नया, स्पष्ट नोटिस जारी करे जिसमें यह साफ-साफ लिखा हो कि कम्पनी से क्या गलती हुई। कम्पनी को अपना जवाब देने का अवसर दिया जाए और उसके बाद ही एक न्यायसंगत और संतुलित फैसला लिया जाए।

इस पूरी प्रक्रिया को छह हफ्तों के अंदर पूरा करने का आदेश दिया गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला उन सभी ठेकेदारों और निजी कम्पनियों के लिए महत्वपूर्ण है जो सरकारी परियोजनाओं में काम करते हैं। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सरकार या उसके विभागों को किसी भी ठेकेदार को बिना स्पष्ट कारण और बिना सुनवाई का अवसर दिए ब्लैकलिस्ट नहीं किया जा सकता।

सरकारी विभागों के लिए यह एक चेतावनी भी है कि वे निष्पक्षता और पारदर्शिता से काम करें। अत्यधिक और मनमानी सजा, जो कानूनी प्रक्रिया के बिना दी जाए, अब कोर्ट में टिक नहीं पाएगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा: क्या अस्पष्ट नोटिस के आधार पर ब्लैकलिस्टिंग वैध है?
    • निर्णय: नहीं, ऐसी कार्रवाई अनुचित मानी जाएगी।
  • मुद्दा: क्या 10 वर्षों के लिए ब्लैकलिस्टिंग उचित और संतुलित सजा है?
    • निर्णय: नहीं, यह सजा अत्यधिक है।
  • मुद्दा: ब्लैकलिस्ट करने की उचित प्रक्रिया क्या है?
    • निर्णय: स्पष्ट नोटिस, जवाब देने का मौका और कारणयुक्त आदेश होना चाहिए।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का सामान्य उल्लेख (विशेष नाम नहीं दिया गया) जिनमें निष्पक्षता और संतुलन पर जोर दिया गया।

मामले का शीर्षक

M/s Raja Constructions through its Managing Partner बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

CWJC No. 9879 of 2025 (साथ ही CWJC Nos. 10033 और 10034 of 2025)

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री जितेन्द्र सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री अनिल कुमार सिंह, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी की ओर से: श्री नदीम सिराज, अधिवक्ता; श्री मदनजीत कुमार, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/c7c687ee-13bb-47ad-8847-ffbcab2ff53d.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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