पटना हाईकोर्ट ने बिना उचित नोटिस ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करने का आदेश रद्द किया

पटना हाईकोर्ट ने बिना उचित नोटिस ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करने का आदेश रद्द किया

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने यह तय किया कि क्या कोई सरकारी विभाग किसी पंजीकृत ठेकेदार को 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर सकता है, जब उसने उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया हो।

याचिकाकर्ता बिहार लघु सिंचाई विभाग का प्रथम श्रेणी पंजीकृत ठेकेदार था। उसने कई जिलों में मरम्मत और पुनर्स्थापना कार्यों के लिए जारी निविदा (टेंडर) में भाग लिया।

टेंडर की जांच के दौरान, एक अन्य ठेकेदार ने आरोप लगाया कि कुछ प्रतिभागियों ने पात्रता प्रमाणपत्रों में जालसाजी या हेरफेर किया है। तकनीकी बोली मूल्यांकन समिति ने याचिकाकर्ता को अयोग्य ठहराया और आगे कार्रवाई की सिफारिश की। विभागीय निविदा समिति ने मुख्य अभियंता को कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया।

इसके बाद कार्यपालक अभियंता ने 11.10.2022 को एक नोटिस जारी कर कहा कि “वर्क डन वैल्यू” में कथित छेड़छाड़ के लिए बिहार ठेकेदार पंजीकरण नियमावली, 2007 के तहत कार्रवाई क्यों न की जाए।

याचिकाकर्ता ने 05.12.2022 को जवाब दिया और आरोपों से इनकार किया। लेकिन 20.02.2023 को प्रभारी मुख्य अभियंता ने उसे नियम 11(क)(vii) के तहत 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया।

याचिकाकर्ता ने अदालत में इस आदेश को चुनौती दी और कहा—

  • नोटिस गलत प्राधिकारी (कार्यपालक अभियंता) ने जारी किया, जबकि यह केवल पंजीयन प्राधिकारी ही कर सकता था।
  • नोटिस में ब्लैकलिस्ट करने की संभावित सजा का उल्लेख नहीं था।
  • आरोप अस्पष्ट थे और कोई ठोस सबूत नहीं दिया गया।
  • ब्लैकलिस्ट करने का आदेश बिना कारण बताए दिया गया (गैर-कारणयुक्त आदेश)।
  • 10 साल का प्रतिबंध अत्यधिक और असंगत था, क्योंकि पंजीकरण केवल 5 साल के लिए मान्य होता है।

सरकार ने कहा कि—

  • प्रक्रिया का पालन किया गया था।
  • ठेकेदार ने जाली दस्तावेज देने की बात स्वीकार की थी।
  • कड़ी कार्रवाई ज़रूरी थी ताकि अन्य ठेकेदार ऐसा न करें।

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों (एरूशियन इक्विपमेंट, रघुनाथ ठाकुर, गोरखा सिक्योरिटी सर्विसेज, UMC टेक्नोलॉजीज, कुलजा इंडस्ट्रीज) का हवाला देते हुए कहा—

  • ब्लैकलिस्ट करना गंभीर निर्णय है और इसमें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य है।
  • नोटिस में यह साफ लिखना चाहिए कि ब्लैकलिस्ट करने की कार्रवाई पर विचार हो रहा है।
  • अंतिम आदेश कारणयुक्त और संतुलित होना चाहिए।

अदालत ने पाया कि—

  1. ब्लैकलिस्ट करने का कोई स्पष्ट नोटिस नहीं दिया गया।
  2. अंतिम आदेश में याचिकाकर्ता के बचाव पर कोई विचार नहीं किया गया।
  3. 10 साल का प्रतिबंध अत्यधिक और अनुपातहीन था।

इसलिए अदालत ने 20.02.2023 का आदेश रद्द कर दिया और मामला संबंधित प्राधिकारी को पुनः विचार के लिए तीन महीने के भीतर निर्णय करने का निर्देश दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी विभागों को याद दिलाता है कि—

  • केवल सक्षम प्राधिकारी ही ब्लैकलिस्ट करने की कार्रवाई शुरू कर सकता है।
  • नोटिस में संभावित कार्रवाई का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
  • आदेश में कारण लिखना अनिवार्य है।
  • सजा अपराध की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए।

ठेकेदारों के लिए यह उदाहरण है कि यदि प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता, तो वे अदालत में विभागीय आदेश को चुनौती दे सकते हैं। सरकार के लिए यह चेतावनी है कि प्रक्रिया में चूक होने पर आदेश रद्द हो सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा 1: क्या बिना स्पष्ट नोटिस के ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
    निर्णय: नहीं। यह गोरखा सिक्योरिटी सर्विसेज मामले के सिद्धांत के विपरीत है।
  • मुद्दा 2: क्या बिना कारण बताए ब्लैकलिस्ट करने का आदेश वैध है?
    निर्णय: नहीं। आदेश में कारण और बचाव पर विचार होना जरूरी है।
  • मुद्दा 3: क्या 10 साल का प्रतिबंध अनुपातिक था?
    निर्णय: नहीं। यह अत्यधिक कठोर और अनुचित था।
  • मुद्दा 4: क्या सक्षम प्राधिकारी ने प्राकृतिक न्याय का पालन किया?
    निर्णय: नहीं। उचित नोटिस और कारण की कमी से प्रक्रिया अनुचित रही।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Shobikaa Impex (P) Ltd. — प्रतिवादी पक्ष द्वारा।
  • Silppi Constructions Contractors v. Union of India — प्रतिवादी पक्ष द्वारा।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Erusian Equipment and Chemicals Ltd. v. State of West Bengal, AIR 1975 SC 266.
  • Raghunath Thakur v. State of Bihar, (1989) 1 SCC 229.
  • Gorkha Security Services v. Govt. (NCT of Delhi), (2014) 9 SCC 105.
  • UMC Technologies (P) Ltd. v. Food Corporation of India, (2021) 2 SCC 551.
  • Kulja Industries Ltd. v. Western Telecom Project BSNL, (2014) 14 SCC 731.
  • M.P. Power Management Co. Ltd. v. Sky Power Southeast Solar India (P) Ltd., (2023) 2 SCC 703.

मामले का शीर्षक
CWJC No. 3860 of 2023 — ठेकेदार बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 3860 of 2023

उद्धरण (Citation)
To be added manually

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रभात रंजन, अधिवक्ता; श्री चंदन कुमार, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: श्री अजय कुमार, G.A.-9

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/578ea692-7ae7-4596-9625-c0c3c169fac3.pdf&search=Debarment

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News