निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाया जिसमें एक सरकारी निगम द्वारा ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था और उसकी बैंक गारंटी की राशि रोकी गई थी। अदालत ने साफ कहा कि केवल कागज़ी गलती (clerical error) के आधार पर किसी ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करना उचित नहीं है, खासकर तब जब वही गलती जारी करने वाले सरकारी अधिकारी ने बाद में खुद सुधार दी हो।
यह मामला बिहार के मुंगेर जिले में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट और सीवरेज नेटवर्क बनाने के बड़े ठेके से जुड़ा था। 2019 में इस काम के लिए निविदा (tender) निकाली गई थी। ठेकेदार कंपनी ने अन्य जरूरी कागजों के साथ अनुभव प्रमाण पत्र (experience certificate) भी दिया और ₹3.4 करोड़ की बैंक गारंटी जमा की।
बाद में निगम ने आरोप लगाया कि एक अनुभव प्रमाण पत्र में पंपिंग स्टेशनों की क्षमता (capacity) ज़्यादा लिख दी गई थी। असली क्षमता 32.51 MLD थी, लेकिन कागज में गलती से 73.74 MLD लिखा गया था। यह प्रमाण पत्र गुजरात जल आपूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड के कार्यपालक अभियंता ने जारी किया था। जब निगम ने जांच की, तो उसी अधिकारी ने लिखित में गलती मानते हुए सही आंकड़ा (32.51 MLD) बताया।
ठेकेदार ने तुरंत इस सुधार को निगम को दिया और कहा कि उसका इरादा धोखा देने का नहीं था। इसके अलावा, ठेकेदार के पास अन्य ऐसे अनुभव प्रमाण पत्र भी थे जो निविदा की शर्तें पूरी करते थे। इसके बावजूद निगम ने 4 नवंबर 2020 को ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कर दिया और उसकी जमा राशि रोक ली।
ठेकेदार ने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उसने साफ कहा कि वह न तो निविदा पर विचार करने की मांग कर रहा है और न ही ठेका पाने की। वह सिर्फ ब्लैकलिस्टिंग आदेश रद्द करने और जमा राशि वापस दिलाने की मांग कर रहा है।
निगम ने दलील दी कि ठेकेदार ने दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करके अपलोड किया था, इसलिए वह ज़िम्मेदार है और उसने जानबूझकर ज़्यादा क्षमता दिखाकर लाभ लेने की कोशिश की।
अदालत ने तथ्यों पर गौर किया और पाया कि:
- विवादित प्रमाण पत्र 2018 में जारी हुआ था, यानी निविदा से पहले ही।
- प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारी ने खुद गलती मानी और सही आंकड़े निगम को समय रहते बता दिए थे।
- सही आंकड़ा (32.51 MLD) भी निविदा की न्यूनतम शर्तों से ऊपर था और अन्य दस्तावेज़ों से भी पात्रता साबित हो रही थी।
इस आधार पर अदालत ने कहा कि ठेकेदार को धोखा देने का आरोपी नहीं ठहराया जा सकता। केवल हस्ताक्षर करने और दस्तावेज़ अपलोड करने से धोखाधड़ी की नीयत साबित नहीं होती।
क्योंकि ब्लैकलिस्टिंग का असर बहुत गंभीर होता है और इसे “नागरिक मृत्यु” जैसा माना जाता है, अदालत ने निगम का आदेश रद्द कर दिया। साथ ही, निगम को निर्देश दिया कि अगर बैंक गारंटी की राशि ली जा चुकी है तो उसे लौटाया जाए, और अगर नहीं ली गई है तो ठेकेदार को नवीनीकरण (renewal) से मुक्त कर दिया जाए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला दिखाता है कि सरकार या सरकारी निकाय ब्लैकलिस्टिंग जैसे कठोर कदम केवल गंभीर और प्रमाणित गलती पर ही उठा सकते हैं।
- साधारण clerical गलती को धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता, खासकर जब अधिकारी खुद सुधार दे दे।
- सरकारी विभागों को अनुपातिक कार्रवाई करनी चाहिए, जैसे कि सुधार मंगाना, न कि तुरंत ठेकेदार को स्थायी नुकसान पहुँचाना।
- ठेकेदारों को भी दस्तावेज़ अपलोड करते समय पूरी सावधानी रखनी चाहिए, लेकिन वे हर clerical गलती के लिए सख्ती से दोषी नहीं ठहराए जा सकते।
इससे आम जनता को यह संदेश मिलता है कि अदालतें अनुचित दंड से नागरिकों और कंपनियों को सुरक्षा प्रदान करती हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या केवल clerical गलती पर ब्लैकलिस्टिंग की जा सकती है?
❌ नहीं। अदालत ने कहा कि बिना धोखाधड़ी की नीयत साबित हुए ऐसा नहीं किया जा सकता। - क्या दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करना और अपलोड करना ही धोखा साबित करता है?
❌ नहीं। जब अधिकारी ने खुद गलती स्वीकार कर ली हो, तो ठेकेदार पर धोखा देने का आरोप टिकता नहीं। - ठेकेदार को क्या राहत मिली?
✅ अदालत ने ब्लैकलिस्टिंग आदेश रद्द किया और जमा राशि लौटाने का आदेश दिया।
मामले का शीर्षक
Petitioner Company vs. State PSU (BUIDCo)
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 8973 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 219
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता एवं सहायक अधिवक्ता
- प्रतिवादी निगम की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता एवं सहायक अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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