पटना हाईकोर्ट का फैसला: आपराधिक मामला छिपाने पर संविदा ठेकेदार की बोली रद्द और पाँच साल के लिए ब्लैकलिस्ट

पटना हाईकोर्ट का फैसला: आपराधिक मामला छिपाने पर संविदा ठेकेदार की बोली रद्द और पाँच साल के लिए ब्लैकलिस्ट

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक संविदा ठेकेदार की याचिका खारिज कर दी, जिसने बिहार राज्य खाद्य एवं असैनिक आपूर्ति निगम (BSFC) के एक टेंडर में हिस्सा लिया था लेकिन अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला छिपा लिया था। यह ठेका सिवान जिले में खाद्यान्न की डोर-स्टेप डिलीवरी (Door Step Delivery) से संबंधित था।

याचिकाकर्ता ने ₹28 प्रति क्विंटल की सबसे कम बोली लगाई थी, जबकि अन्य ठेकेदारों ने ₹36 प्रति क्विंटल की दर बताई थी। लेकिन बाद में पता चला कि याचिकाकर्ता के खिलाफ वर्ष 2016 में खाद्यान्न की कालाबाज़ारी से जुड़ा एक आपराधिक मामला दर्ज है। यह जानकारी उसने न तो अपने हलफनामे में दी थी और न ही आवेदन प्रक्रिया के दौरान प्रकट की थी।

टेंडर की शर्तों के अनुसार, किसी भी ऐसे व्यक्ति को बोली में भाग लेने की अनुमति नहीं है जिसके खिलाफ खाद्यान्न की कालाबाज़ारी, चोरी या किसी भी प्रकार की अनैतिक गतिविधियों से जुड़ा आपराधिक मामला लंबित हो। इस जानकारी को छिपाना नियमों का उल्लंघन माना जाता है और इसके लिए बोली को रद्द कर दिया जाता है, साथ ही पाँच साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है।

याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, जिसके जवाब में उसने FIR की बात स्वीकार की। इसके बाद समिति ने उनकी जमा राशि जब्त कर ली और पाँच वर्षों के लिए उन्हें ब्लैकलिस्ट कर दिया।

कोर्ट ने इन सभी तथ्यों की समीक्षा करते हुए स्पष्ट किया कि समिति ने जो निर्णय लिया वह टेंडर की शर्तों के अनुसार बिल्कुल उचित है। ऐसे मामलों में अदालत हस्तक्षेप नहीं करती।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी ठेकों में पारदर्शिता और ईमानदारी को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत संदेश देता है। सरकार की योजनाओं में भाग लेने वाले व्यक्तियों से यह अपेक्षित है कि वे अपनी पृष्ठभूमि की पूरी जानकारी दें, खासकर अगर उनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।

सरकार के लिए यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि नियमों का उल्लंघन करने वाले बोलीदाताओं के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जा सकती है। इससे सरकारी खजाने की रक्षा होती है और यह सुनिश्चित होता है कि सार्वजनिक कल्याण से जुड़े कार्य विश्वसनीय ठेकेदारों के हाथों में हों।

आम जनता, विशेष रूप से बिहार के ग्रामीण इलाकों में रहने वालों के लिए, यह फैसला आश्वासन देता है कि राशन जैसी योजनाओं की डिलीवरी अब ईमानदार और नियमानुसार ठेकेदारों द्वारा की जाएगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या आपराधिक मामला छुपाने से टेंडर प्रक्रिया में भागीदारी अमान्य होती है?
    ✔ हाँ, यह टेंडर की शर्तों का सीधा उल्लंघन है।
  • क्या जिला समिति द्वारा जमा राशि जब्त करना और ब्लैकलिस्ट करना उचित था?
    ✔ हाँ, यह टेंडर की निर्धारित शर्तों के अनुसार था।
  • क्या कम दर पर कार्य करने की पेशकश ब्लैकलिस्ट को निरस्त कर सकती है?
    ❌ नहीं, नियमों का पालन अधिक महत्वपूर्ण है।

मामले का शीर्षक
Nishant Kumar Singh v. State of Bihar & Others

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 385 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रॉय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री राजेन्द्र नारायण, वरिष्ठ अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह – प्रतिवादियों की ओर से

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/4a2d952c-6a80-4cde-be08-f2f86bf7267a.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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