निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 16 अप्रैल 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जो बिहार मिलिट्री पुलिस (BMP) के कई कर्मियों को राहत देने वाला साबित हुआ। यह फैसला माननीय न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय ने दिया।
मामला उन पुलिस कर्मियों से जुड़ा था जिन्हें एसीपी (Assured Career Progression) का लाभ कई वर्ष पहले दिया गया था, लेकिन बाद में विभाग ने इसे गलत वेतन निर्धारण (wrong pay fixation) बताते हुए लाभ वापस लेने और वसूली करने का आदेश जारी किया।
अदालत ने इस वसूली को आंशिक रूप से अवैध घोषित किया और कहा कि जब कर्मचारी की कोई गलती नहीं है, तब विभाग द्वारा सालों बाद वसूली करना अनुचित और अन्यायपूर्ण है।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता सभी कॉन्स्टेबल और हवलदार थे जो बिहार मिलिट्री पुलिस की अलग-अलग बटालियनों में कार्यरत थे। उन्हें सरकार द्वारा एसीपी योजना के तहत वित्तीय उन्नति दी गई थी —
- पहला एसीपी लगभग 2008 में,
- दूसरा एसीपी 2010 से 2013 के बीच।
एसीपी योजना का उद्देश्य यह है कि जिन सरकारी कर्मियों को लंबे समय तक प्रमोशन नहीं मिलता, उन्हें वेतन वृद्धि के रूप में कैरियर प्रगति का लाभ मिले।
इन कर्मियों को पहले इस प्रकार लाभ दिया गया था —
- पहला एसीपी: सहायक उप-निरीक्षक (ASI) का वेतनमान ₹4000–6000
- दूसरा एसीपी: उप-निरीक्षक (SI) का वेतनमान ₹5500–9000
कई वर्षों बाद गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय ने कहा कि यह लाभ गलत वेतनमान में दिया गया था। उनके अनुसार सही वेतनमान यह होना चाहिए था —
- पहला एसीपी: हवलदार का वेतनमान ₹3200–4900
- दूसरा एसीपी: एएसआई का वेतनमान ₹4000–6000
इसलिए विभाग ने आदेश जारी कर न केवल एसीपी लाभ घटा दिया बल्कि पहले से दी गई रकम की वसूली भी शुरू कर दी।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री वाई.वी. गिरी और श्री अभय शंकर सिंह ने कहा कि:
- कर्मियों ने कोई धोखाधड़ी नहीं की थी, लाभ तो विभाग ने खुद दिया था।
- किसी ने झूठी जानकारी नहीं दी थी।
- विभाग ने करीब 10 साल बाद गलती बताई, जो बहुत देर से किया गया सुधार है।
- इतने वर्षों तक विभाग ने भुगतान जारी रखा, अब अचानक वसूली करना मनमाना और अन्यायपूर्ण है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जैसे —
- Syed Abdul Qadir v. State of Bihar (2009)
- State of Punjab v. Rafiq Masih (2015)
इन फैसलों में कहा गया था कि यदि कोई कर्मचारी ईमानदारी से भुगतान प्राप्त करता है और विभाग की गलती से अधिक भुगतान हो गया हो, तो उससे वसूली नहीं की जा सकती।
सरकार की दलीलें
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता (Advocate General) और सरकारी वकीलों ने कहा कि —
- एसीपी लाभ शर्तों के अधीन (provisional) था, जिसे बाद में ठीक किया जा सकता है।
- जब गलती पकड़ी गई, विभाग को उसे सुधारने और वसूली करने का अधिकार है।
- उन्होंने High Court of Punjab & Haryana v. Jagdev Singh (2016) मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर कर्मचारी ने लाभ शर्तों सहित स्वीकार किया है, तो सुधार के बाद वसूली की जा सकती है।
अदालत की राय और निर्णय
माननीय न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करते हुए कहा कि अदालत को न्याय और व्यावहारिकता के बीच संतुलन बनाना होगा।
- एसीपी सुधार (Correction) वैध:
अदालत ने कहा कि सरकार को गलती सुधारने का अधिकार है। सही वेतनमान इस प्रकार होगा —- पहला एसीपी: हवलदार का वेतनमान ₹3200–4900
- दूसरा एसीपी: एएसआई का वेतनमान ₹4000–6000
- पहले एसीपी (2008) की वसूली पर रोक:
यह लाभ लगभग 9 साल तक जारी रहा और किसी ने इसे गलत नहीं बताया।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट के Rafiq Masih और Syed Abdul Qadir फैसलों के आधार पर अदालत ने कहा कि इस अवधि की वसूली नहीं की जा सकती। - दूसरे एसीपी (2010–2013) की वसूली:
यह सुधार 5–7 साल के भीतर किया गया, इसलिए सरकार को सीमित वसूली करने की अनुमति दी गई।
लेकिन अदालत ने निर्देश दिया कि यह वसूली किस्तों में और मानवीय दृष्टिकोण से की जाए। - वेतन निर्धारण का अंतिम आदेश:
अदालत ने राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर सही वेतन निर्धारण करने और आंशिक वसूली की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया।
नतीजा:
मामले को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया —
वेतन सुधार को सही ठहराया गया, लेकिन पुराने वर्षों की वसूली (2008–2010) पर रोक लगा दी गई।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला हजारों बिहार पुलिस और मिलिट्री पुलिस कर्मियों के लिए राहतभरा है जिन्हें एसीपी लाभ दिया गया था और बाद में विभाग ने वसूली का आदेश जारी किया था।
- अदालत ने साफ किया कि यदि गलती विभाग की ओर से हुई है, तो कर्मचारी से पैसा वापस नहीं लिया जा सकता।
- यह भी कहा गया कि वसूली का अधिकार तभी है जब धोखाधड़ी या गलत जानकारी दी गई हो।
- विभाग को सलाह दी गई कि वेतन निर्धारण के मामलों में समय पर सुधार करें, अन्यथा बाद की वसूली अनुचित मानी जाएगी।
- यह निर्णय सरकारी कर्मचारियों के लिए एक न्यायिक सुरक्षा कवच प्रदान करता है, खासकर निचले स्तर के कर्मचारियों के लिए।
कानूनी मुद्दे और अदालत के निष्कर्ष
- क्या सरकार को पुराने एसीपी लाभ को संशोधित करने का अधिकार है?
✅ हाँ, गलती पाए जाने पर संशोधन किया जा सकता है। - क्या 10 साल बाद की वसूली वैध है?
❌ नहीं, इतनी देर बाद वसूली अनुचित है। - क्या 5–7 साल के भीतर वसूली की जा सकती है?
⚖️ हाँ, लेकिन आसान किश्तों में और कर्मचारियों को कठिनाई न हो, इसका ध्यान रखना होगा। - क्या याचिकाकर्ताओं ने कोई धोखाधड़ी की थी?
❌ नहीं, इसलिए पूर्ण वसूली अन्यायपूर्ण होती।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Syed Abdul Qadir v. State of Bihar (2009) 3 SCC 475
- State of Punjab v. Rafiq Masih (2015) 4 SCC 334
- High Court of Punjab & Haryana v. Jagdev Singh (2016) 4 SCC 78
- Sahib Ram v. State of Haryana (1995)
- Shyam Babu Verma v. Union of India (1994)
- Col. B.J. Akkara (Retd.) v. Government of India (2006)
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता (बिहार मिलिट्री पुलिस के कर्मी) बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case Nos. 6910, 1744, 7117, 7255, 8050, 8065 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 716
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय
निर्णय की तिथि: 16 अप्रैल 2021
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अभय शंकर सिंह, अधिवक्ता; श्री वाई.वी. गिरी, वरिष्ठ अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता; श्री मनीष कुमार (GP 4); श्री पी.के. वर्मा (AAG 3)
निर्णय का लिंक
MTUjNjkxMCMyMDIwIzEjTg==-5j–am1–FK–am1–SfnDk=
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