निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया, जो 31वीं बिहार न्यायिक सेवा (प्रारंभिक) प्रतियोगिता परीक्षा से संबंधित था। यह परीक्षा बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) द्वारा आयोजित की गई थी। याचिकाकर्ता का आरोप था कि आयोग ने प्रश्न पुस्तिका सेट–D के तीन प्रश्नों — क्रमांक 58, 126 और 133 — के उत्तर गलत दिए हैं, जिसके कारण उसे असफल घोषित कर दिया गया।
याचिकाकर्ता का कहना था कि:
- प्रश्न 58 में आयोग ने ‘B’ उत्तर सही बताया है, जबकि सही उत्तर ‘C’ है।
- प्रश्न 126 में ‘C’ की जगह सही उत्तर ‘D’ होना चाहिए था।
- प्रश्न 133 में ‘C’ के स्थान पर सही उत्तर ‘B’ है।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि इन गलत उत्तरों के कारण उसका नाम सफल अभ्यर्थियों की सूची में शामिल नहीं हुआ।
बीपीएससी ने परीक्षा के बाद 19 दिसंबर 2020 को अपनी वेबसाइट पर प्रोविजनल (मॉडल) उत्तर कुंजी जारी की थी और सभी अभ्यर्थियों से कहा था कि यदि किसी उत्तर पर आपत्ति है, तो वे 31 दिसंबर 2020 शाम 5 बजे तक लिखित रूप में आपत्ति भेज सकते हैं। आयोग ने स्पष्ट किया था कि निर्धारित समय और प्रक्रिया में प्राप्त आपत्तियाँ ही विचार के योग्य होंगी और विशेषज्ञ समिति उन्हें जांचेगी।
लेकिन याचिकाकर्ता ने निर्धारित समयसीमा में कोई आपत्ति नहीं दी। उसका कहना था कि कोविड-19 महामारी के कारण वह अपने गाँव में था जहाँ इंटरनेट की सुविधा सीमित थी, इसलिए उसे यह सूचना समय पर नहीं मिली।
आयोग ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया सभी परीक्षा संस्थानों द्वारा अपनाई जाने वाली मानक और पारदर्शी प्रक्रिया है। सभी उम्मीदवारों को समान अवसर दिया गया था। जो उम्मीदवार सतर्क नहीं रहा, वह बाद में इस प्रक्रिया पर सवाल नहीं उठा सकता।
न्यायालय ने माना कि आयोग ने पूरी प्रक्रिया सही और न्यायोचित ढंग से अपनाई थी। वेबसाइट पर सूचना प्रकाशित थी और उम्मीदवारों को सतर्क रहना चाहिए था। न्यायालय ने यह भी कहा कि आज के समय में गाँवों में भी इंटरनेट उपलब्ध है, इसलिए एक उम्मीदवार जो न्यायिक सेवा के पद के लिए परीक्षा दे रहा है, उससे अपेक्षा है कि वह अपडेट रहे।
न्यायालय ने यह भी ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता ने यह याचिका अंतिम परिणाम घोषित होने के बाद दायर की थी। अगर ऐसे विलंबित मामलों को स्वीकार किया जाए, तो परीक्षा प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं हो पाएगी।
अदालत ने अपने निर्णय में “अशुतोष कुमार झा बनाम बिहार राज्य” (LPA No. 1235 of 2016) का हवाला दिया। उस मामले में उच्च न्यायालय ने कहा था कि जब किसी विशेषज्ञ समिति ने उत्तरों का मूल्यांकन किया हो, तो न्यायालय को उसके निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जब तक कि वह निर्णय अत्यंत अनुचित या “परवर्स” न हो।
पटना उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह अदालत विशेषज्ञों के निर्णय की समीक्षा करने या स्वयं उत्तरों की जांच करने का मंच नहीं है। जब आयोग ने उचित प्रक्रिया अपनाई और उम्मीदवार ने समय पर आपत्ति नहीं की, तो उसे बाद में अदालत में चुनौती देने का अधिकार नहीं है।
अंततः, न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका अस्वीकार कर दी और कहा कि इसमें कोई वैधानिक त्रुटि नहीं पाई गई है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
यह फैसला सभी परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों और परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं के लिए एक स्पष्ट दिशा निर्धारित करता है —
- उम्मीदवारों को आयोग द्वारा निर्धारित समयसीमा और प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है। विलंब से की गई आपत्तियों पर अदालत विचार नहीं करेगी।
- न्यायिक समीक्षा की सीमाएँ तय की गई हैं। विशेषज्ञ समिति के निर्णय में न्यायालय तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक वह अत्यधिक अनुचित या गलत न हो।
- बीपीएससी द्वारा अपनाई गई आपत्ति प्रक्रिया को न्यायालय ने पारदर्शी और उचित बताया।
- अभ्यर्थियों को यह संदेश दिया गया कि वे डिजिटल माध्यमों से जारी सूचनाओं पर सतर्क रहें।
- यह फैसला परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता को बनाए रखता है और अनावश्यक मुकदमेबाजी को रोकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अभ्यर्थी परीक्षा परिणाम के बाद आपत्ति दर्ज कर सकता है, जब उसने समय पर आपत्ति नहीं दी हो?
❖ निर्णय: नहीं। एक बार निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद, उम्मीदवार अदालत में चुनौती नहीं दे सकता।
❖ तर्क: आयोग ने पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई थी, और वेबसाइट पर सूचना प्रकाशित थी। - क्या उच्च न्यायालय विशेषज्ञ समिति द्वारा तय उत्तरों में संशोधन कर सकता है?
❖ निर्णय: नहीं। अदालत तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगी जब तक उत्तर स्पष्ट रूप से गलत या निर्णय परवर्स न हो।
❖ तर्क: अशुतोष कुमार झा बनाम बिहार राज्य के निर्णय के अनुसार, अदालत शैक्षणिक मामलों में विशेषज्ञों की राय का सम्मान करेगी। - क्या कोविड-19 के कारण आपत्ति दाखिल न करने का बहाना मान्य है?
❖ निर्णय: नहीं। उम्मीदवार से अपेक्षा की जाती है कि वह ऑनलाइन प्रकाशित सूचनाओं पर नज़र रखे।
❖ तर्क: इंटरनेट के युग में यह तर्क स्वीकार्य नहीं कि सूचना नहीं मिल सकी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- अशुतोष कुमार झा एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, LPA No. 1235 of 2016 — याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- अशुतोष कुमार झा एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, LPA No. 1235 of 2016 — अदालत ने इसी आधार पर निर्णय दिया।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 8106 of 2021
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 322
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्रीमती मनीषा पांडेय, सुश्री श्वेता पांडेय, श्री विश्वनाथ पांडेय — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री जी.पी. ओझा (GA-7) — राज्य की ओर से
- श्री संजय पांडेय — बिहार लोक सेवा आयोग की ओर से
निर्णय का लिंक
MTUjODEwNiMyMDIxIzEjTg==-VA4hvbCt–am1–l8=
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