पटना हाईकोर्ट का फैसला: बीपीएससी को मेरिट लिस्ट की गलती सुधारने का अधिकार (2021)

पटना हाईकोर्ट का फैसला: बीपीएससी को मेरिट लिस्ट की गलती सुधारने का अधिकार (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने फरवरी 2021 में एक मामले में फैसला सुनाया, जिसमें बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) द्वारा संशोधित मेरिट लिस्ट को चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ता को पहले 25 मई 2019 की मेरिट लिस्ट में अंतिम चयनित उम्मीदवार दिखाया गया था। लेकिन बाद में आयोग ने 21 अगस्त 2019 को संशोधित परिणाम जारी किया, जिसमें उसकी जगह एक अन्य उम्मीदवार (प्रतिवादी संख्या 8) को शामिल किया गया, क्योंकि उसने अधिक अंक प्राप्त किए थे।

याचिकाकर्ता का तर्क था:

  • एक बार परिणाम प्रकाशित हो जाने के बाद आयोग functus officio हो जाता है यानी उसका काम खत्म हो जाता है, इसलिए वह बाद में लिस्ट में बदलाव नहीं कर सकता।
  • उसका नाम हटाने से पहले उसे सुनवाई का मौका नहीं दिया गया।

अदालत ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा:

  • गलती सुधारना आयोग का कर्तव्य है। यदि कोई त्रुटि हुई है, तो आयोग उसे ठीक कर सकता है ताकि सभी उम्मीदवारों के साथ न्याय हो।
  • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत लचीले होते हैं। हर मामले में सुनवाई जरूरी नहीं है, खासकर जब सुनवाई से परिणाम पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
  • इस मामले में सुनवाई बेकार होती। क्योंकि प्रतिवादी संख्या 8 ने अधिक अंक हासिल किए थे, याचिकाकर्ता का स्थान सुधर नहीं सकता था। सुप्रीम कोर्ट के Canara Bank v. V.K. Awasthy (2005) के फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि यह “useless formality” होती।
  • समानता और न्याय के लिए सुझाव: अदालत ने कहा कि अगर कोई रिक्त पद उपलब्ध हो, तो आयोग याचिकाकर्ता को वहां समायोजित करने पर विचार कर सकता है, लेकिन चयनित अधिक अंक वाले उम्मीदवार को हटाया नहीं जा सकता।

नतीजतन, याचिका खारिज कर दी गई और संशोधित परिणाम को बरकरार रखा गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • बीपीएससी और अन्य आयोगों के लिए: यह स्पष्ट करता है कि वे प्रकाशित परिणाम में भी त्रुटियाँ सुधार सकते हैं, बशर्ते सुधार मेरिट और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए हो।
  • उम्मीदवारों के लिए: केवल चयनित होना ही पर्याप्त नहीं, मेरिट यानी अंक सर्वोपरि है।
  • भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता: अदालत ने दिखाया कि प्राकृतिक न्याय का अर्थ अनावश्यक औपचारिकता नहीं है।
  • समानता का दृष्टिकोण: अदालत ने याचिकाकर्ता के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए कहा कि यदि अतिरिक्त पद हैं, तो उसे समायोजित किया जा सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या बीपीएससी प्रकाशित परिणाम में बदलाव कर सकता है?
    • निर्णय: हाँ। यदि गलती हो तो सुधार करना आयोग का अधिकार और कर्तव्य है।
  • क्या सुनवाई के बिना नाम हटाना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है?
    • निर्णय: नहीं। क्योंकि सुनवाई देने से भी याचिकाकर्ता का स्थान नहीं सुधरता, जब प्रतिवादी अधिक अंक वाला है।
  • क्या याचिकाकर्ता को कोई राहत मिल सकती है?
    • निर्णय: यदि रिक्त पद उपलब्ध हों, तो आयोग उसे समायोजित करने पर विचार कर सकता है, परंतु चुने गए अधिक योग्य उम्मीदवार को हटाया नहीं जा सकता।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Canara Bank v. V.K. Awasthy, (2005) 6 SCC 487

मामले का शीर्षक

Kumar Devesh v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर

CWJC No. 18486 of 2019

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 849

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री तेज बहादुर सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री बृशकेतु शरण पांडेय, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्री सुभाष चंद्र मिश्रा (SC-16), अधिवक्ता; श्री एसी टू SC-16
  • बीपीएससी की ओर से: श्री रत्नेश कुमार सिंह, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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