निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 5 मई 2021 को एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें 30वीं बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा के कुछ अभ्यर्थियों की याचिका को खारिज कर दिया गया। इन अभ्यर्थियों की उम्मीदवारी बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) ने रद्द कर दी थी क्योंकि उन्होंने साक्षात्कार के समय अपने मूल प्रमाण पत्र (original documents) प्रस्तुत नहीं किए थे।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्होंने परीक्षा की सभी तीन चरणों — प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार — में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन केवल कुछ दस्तावेज़ न होने के कारण उनका चयन रद्द कर देना अनुचित और मनमाना है। उनका आरोप था कि आयोग ने उन्हें बाद में प्रमाण पत्र देने का मौखिक आश्वासन दिया था, फिर भी बिना किसी सूचना या अवसर के उन्हें असफल घोषित कर दिया गया।
पृष्ठभूमि
BPSC ने विज्ञापन संख्या 6/2018 जारी कर 349 सिविल जज (जूनियर डिवीजन) पदों के लिए आवेदन मांगे थे। याचिकाकर्ताओं ने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास की, और फिर अक्टूबर 2019 में साक्षात्कार में शामिल हुए। लेकिन जब अंतिम परिणाम 29 नवंबर 2019 को घोषित हुआ, तो उनका नाम सूची में नहीं था। कारण बताया गया — उन्होंने कुछ मूल प्रमाण पत्र (जैसे चरित्र प्रमाण पत्र, बार काउंसिल का पत्र, या कार्यरत अभ्यर्थियों के लिए NOC) प्रस्तुत नहीं किए थे।
अभ्यर्थियों का कहना था कि—
- उन्होंने सभी दस्तावेजों की फोटो कॉपी जमा कर दी थी।
- आयोग के अधिकारियों ने मौखिक रूप से अनुमति दी थी कि वे मूल दस्तावेज़ बाद में प्रस्तुत कर सकते हैं।
- कुछ अन्य उम्मीदवारों को भी ऐसा मौका दिया गया था।
- विज्ञापन के धारा 8(i) में लिखा था कि प्रमाण पत्र साक्षात्कार या किसी अन्य समय मांगे जा सकते हैं।
इसलिए, उन्होंने अदालत से गुहार लगाई कि उनका नाम बहाल किया जाए और उन्हें अंतिम मेरिट सूची में शामिल किया जाए।
बीपीएससी का पक्ष
आयोग और उच्च न्यायालय (प्रशासनिक पक्ष के रूप में प्रतिवादी) ने स्पष्ट कहा कि—
- विज्ञापन और साक्षात्कार के निर्देशों में यह स्पष्ट रूप से लिखा था कि सभी अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के समय अपने सभी मूल प्रमाण पत्र लाने होंगे।
- धारा 10 में लिखा था कि मूल दस्तावेज़ न लाने पर आयोग को उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द करने का अधिकार होगा।
- साक्षात्कार कार्यक्रम के निर्देश क्रमांक 3 में यह भी लिखा था कि किसी को भी अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा।
- याचिकाकर्ताओं ने स्वयं अपने हलफनामे में स्वीकार किया कि वे आवश्यक मूल दस्तावेज़ नहीं ला सके।
इसलिए, आयोग के अनुसार उम्मीदवारी रद्द करना नियमों और विज्ञापन की शर्तों के अनुसार पूरी तरह उचित था।
न्यायालय का अवलोकन
माननीय न्यायमूर्ति शिवाजी पांडे और माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने मामले की विस्तार से सुनवाई की। अदालत ने माना कि विज्ञापन की शर्तें बिल्कुल स्पष्ट थीं —
- अभ्यर्थी के पास आवेदन भरते समय सभी प्रमाण पत्र मूल रूप में होना चाहिए।
- साक्षात्कार के समय उन्हीं दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करना अनिवार्य था।
- इसका पालन न करने पर उम्मीदवारी स्वतः रद्द की जा सकती थी।
अदालत ने पाया कि यह मामला पहले के एक फैसले “आरव जैन बनाम बिहार लोक सेवा आयोग (CWJC No. 24282/2019)” से बिल्कुल समान था। उस मामले में भी उम्मीदवार ने चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया था और न्यायालय ने बीपीएससी के निर्णय को सही माना था। इसलिए वर्तमान याचिका में भी वही सिद्धांत लागू होता है।
प्राकृतिक न्याय का कोई उल्लंघन नहीं
न्यायालय ने कहा कि जब विज्ञापन में शर्तें स्पष्ट हैं, तो उनके उल्लंघन पर “प्राकृतिक न्याय” या “भेदभाव” का तर्क नहीं दिया जा सकता।
कोई अतिरिक्त नोटिस या व्यक्तिगत अवसर देना आवश्यक नहीं था।
साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) गलत या अवैध लाभ को दोहराने की अनुमति नहीं देता। यदि किसी अन्य उम्मीदवार को गलती से छूट मिल गई हो, तो अन्य लोग उस गलती का लाभ नहीं ले सकते। अदालत ने Basawaraj v. Special Land Acquisition Officer (2013) 14 SCC 81 मामले का हवाला दिया जिसमें यही सिद्धांत बताया गया था।
अदालत ने यह भी कहा कि विज्ञापन की धारा 8(i) का अर्थ यह नहीं है कि उम्मीदवार को बाद में कभी भी दस्तावेज़ जमा करने की अनुमति है। यह धारा केवल आयोग को अधिकार देती है कि वह किसी भी समय दस्तावेज़ मांग सके, पर इसका अर्थ यह नहीं कि उम्मीदवार साक्षात्कार में दस्तावेज़ न लाए।
अंतिम निर्णय
अदालत ने पाया कि—
- याचिकाकर्ताओं ने स्वयं स्वीकार किया कि वे सभी मूल दस्तावेज़ नहीं लाए थे।
- आयोग ने नियमों का सख्ती से पालन किया।
- इसमें कोई मनमानी या अन्याय नहीं था।
इसलिए, याचिका खारिज कर दी गई। हालांकि, अदालत ने कोई लागत (cost) नहीं लगाई।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला बिहार सहित पूरे देश में सरकारी और न्यायिक सेवा परीक्षाओं के लिए बहुत अहम है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि—
- भर्ती प्रक्रिया में दी गई हर शर्त का पालन अनिवार्य है।
- मौखिक या अनौपचारिक छूट का कोई कानूनी मूल्य नहीं होता।
- अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उपयोग गलत छूट या गलती को दोहराने के लिए नहीं किया जा सकता।
- भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए आयोग सख्त कदम उठा सकता है।
यह निर्णय भावी अभ्यर्थियों को यह संदेश देता है कि भर्ती परीक्षा में नियमों का पालन उतना ही जरूरी है जितना योग्यता या प्रदर्शन।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या मूल दस्तावेज़ न लाने पर उम्मीदवारी रद्द करना अवैध था?
❌ नहीं। अदालत ने कहा कि आयोग ने सही निर्णय लिया। - क्या अतिरिक्त समय न देना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है?
❌ नहीं। जब नियम स्पष्ट हैं, तो उनका पालन न करना स्वतः अयोग्यता है। - क्या अनुच्छेद 14 के तहत छूट मिल सकती है क्योंकि किसी और को मिली थी?
❌ नहीं। समानता का अधिकार गलत फैसलों को दोहराने की अनुमति नहीं देता। - क्या धारा 8(i) बाद में दस्तावेज़ जमा करने की अनुमति देती है?
❌ नहीं। यह धारा उम्मीदवार की जिम्मेदारी को कम नहीं करती।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Director of Settlements (A.P.) v. M.R. Appa Rao, (2002) 4 SCC 638
- Bedanga Talukdar v. Saifudaullah Khan, (2011) 12 SCC 85
- State of Odisha v. Anup Kumar Senapati, (2019) 19 SCC 626
- Municipal Corporation of Greater Bombay v. Dr. Sushil V. Patkar, (1991 Supp (2) SCC 432)
- State of U.P. v. Raj Kumar Sharma, (2006) 3 SCC 330
- Basawaraj v. Special Land Acquisition Officer, (2013) 14 SCC 81
- P. Singaravelan v. District Collector, Tiruppur, (2020) 3 SCC 133
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Aarav Jain v. Bihar Public Service Commission, CWJC No. 24282 of 2019 (Patna High Court, 04.05.2021)
मामले का शीर्षक
Ratnakar Dubey & Ors. v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 2172 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 778
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति शिवाजी पांडे
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री रविंद्र कुमार शुक्ला — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री ललित किशोर (वरिष्ठ अधिवक्ता) सहायक श्री सत्या बीर भारती — बीपीएससी की ओर से
श्री पियूष लाल — पटना उच्च न्यायालय की ओर से
श्री वाई. वी. गिरी (वरिष्ठ अधिवक्ता) सहायक श्री प्रणव कुमार — निजी प्रतिवादियों की ओर से
निर्णय का लिंक
MTUjMjE3MiMyMDIwIzEjTg==-tyQYgQnk–am1–sc=
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