पटना उच्च न्यायालय 2024 : बीएसएफसीएससी की डोर-स्टेप डिलीवरी निविदा पर दायर याचिका खारिज

पटना उच्च न्यायालय 2024 : बीएसएफसीएससी की डोर-स्टेप डिलीवरी निविदा पर दायर याचिका खारिज

पटना उच्च न्यायालय ने बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम (BSFCSC) द्वारा जारी एक निविदा को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। यह निविदा चार “परिवहन–cum–हैंडलिंग एवं डिलीवरी कॉन्ट्रैक्टर” के चयन के लिए जारी की गई थी, ताकि खाद्यान्न की डोर-स्टेप डिलीवरी सुनिश्चित की जा सके। याचिका उन निविदाकारों ने दायर की थी जो प्रारंभिक चरण में तकनीकी रूप से योग्य घोषित हुए थे, परंतु बाद में मूल्य वार्ता (price negotiation) में भाग नहीं लेने के कारण अनुबंध नहीं प्राप्त कर सके।

माननीय मुख्य न्यायाधीश और माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने 18 जुलाई 2024 को मौखिक निर्णय सुनाया और कहा कि जब याचिकाकर्ताओं ने स्वयं कम दर स्वीकार करने से इनकार कर दिया और वित्तीय वार्ता से हट गए, तब वे प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गए। इसलिए वे बाद में सफल निविदाकारों की योग्यता पर सवाल नहीं उठा सकते।

मामले की पृष्ठभूमि

बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम (BSFCSC) ने वैशाली जिले में खाद्यान्न के परिवहन और डोर-स्टेप डिलीवरी के लिए चार ठेकेदारों की नियुक्ति हेतु निविदा जारी की थी। कई निविदाकारों ने इसमें भाग लिया, जिनमें याचिकाकर्ता भी शामिल थे। तकनीकी मूल्यांकन के बाद सात निविदाकार योग्य पाए गए।

जब वित्तीय प्रस्ताव खोले गए, तो सभी योग्य निविदाकारों ने एक समान दर दी थी। निगम ने सभी से कम दर पर वार्ता करने के लिए कहा ताकि सार्वजनिक हित में व्यय घटाया जा सके। चार निविदाकारों ने ₹28 प्रति क्विंटल की दर स्वीकार कर ली। लेकिन याचिकाकर्ताओं ने कम दर स्वीकार करने से इनकार कर दिया। परिणामस्वरूप, अनुबंध उन चार निविदाकारों को दिया गया जिन्होंने कम दर पर काम करने को सहमति दी।

बाद में, असफल निविदाकारों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की और आरोप लगाया कि जिन निविदाकारों को अनुबंध मिला, वे तकनीकी रूप से अयोग्य थे। उन्होंने कई खामियाँ बताईं, जैसे—

  • बैंक स्टेटमेंट पर शाखा प्रबंधक के हस्ताक्षर नहीं हैं,
  • जीएसटी रिटर्न में फर्म का नाम दर्ज है, व्यक्ति का नहीं,
  • निविदाकार का खाद्यान्न व्यापार से संबंध है जो निविदा की शर्तों के खिलाफ है,
  • ऑडिट प्रमाणपत्र पर यूडीआईएन (UDIN) में गड़बड़ी है,
  • वाहन फिटनेस और अनुबंध दस्तावेज़ अधूरे हैं,
  • पते में अंतर है, और
  • टर्नओवर गलत बताया गया है।

राज्य और निगम की ओर से बताया गया कि सभी योग्य निविदाकारों को वार्ता के लिए बुलाया गया था, और चार ने ₹28 प्रति क्विंटल की दर स्वीकार की थी। याचिकाकर्ताओं ने उस समय कोई आपत्ति नहीं दी। उन्होंने केवल अनुबंध मिलने के बाद शिकायत की। साथ ही, निगम ने जिला प्रबंधक के विस्तृत कारणयुक्त आदेश (speaking order) में सभी आपत्तियों का जवाब दिया।

न्यायालय का निर्णय और तर्क

उच्च न्यायालय ने राज्य के तर्कों से सहमति जताई और कहा कि निर्णय प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं थी। अदालत ने कहा—

  1. प्रतिस्पर्धा से बाहर व्यक्ति की चुनौती अस्वीकार्य है
    जब किसी निविदाकार ने स्वेच्छा से कम दर स्वीकार करने से मना किया, तो वह दौड़ से बाहर हो गया। ऐसे व्यक्ति को बाद में दूसरों की योग्यता पर प्रश्न उठाने का अधिकार नहीं है।
  2. तकनीकी खामियों का परीक्षण
    अदालत ने प्रत्येक आपत्ति की समीक्षा की और पाया कि वे अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन नहीं करतीं। उदाहरण के लिए—
    • बैंक स्टेटमेंट पर शाखा प्रबंधक की सील और हस्ताक्षर पहले और अंतिम पृष्ठ पर थे; निविदा में हर पृष्ठ पर हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं थी।
    • जीएसटी रिटर्न में फर्म का नाम होने से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि एकल स्वामित्व (proprietorship) में मालिक और फर्म एक ही इकाई माने जाते हैं।
    • खाद्यान्न व्यवसाय से संबंधित आरोप असत्य थे; जो लेनदेन दिखाए गए थे, वे निजी उपज के थे, न कि चावल या गेहूँ के व्यापार के।
    • यूडीआईएन और वाहन दस्तावेज़ सही पाए गए।
    • पते में अंतर स्थायी और वर्तमान पते का था, जो सामान्य है।
    • टर्नओवर वही था जो निविदाकार ने घोषित किया, न कि किसी और का।
  3. न्यायिक पुनरीक्षण (Judicial Review) का दायरा सीमित है
    अदालत ने कहा कि वह निविदा के तकनीकी मूल्यांकन का पुनर्मूल्यांकन नहीं कर सकती। न्यायालय केवल यह देख सकता है कि निर्णय निष्पक्ष, पारदर्शी और अनुबंध की शर्तों के अनुरूप है या नहीं।
  4. पूर्व निर्णयों का हवाला
    याचिकाकर्ताओं ने Dheeraj Kumar v. State of Bihar और Vikrant Kumar Gupta v. State of Bihar जैसे मामलों का हवाला दिया, परंतु अदालत ने कहा कि वे भिन्न परिस्थितियों के थे। वहाँ बैंक स्टेटमेंट पूरी तरह स्वहस्ताक्षरित था, जबकि यहाँ शाखा प्रबंधक का प्रमाणीकरण मौजूद था।

अंततः अदालत ने स्पष्ट किया कि “न्यायिक पुनरीक्षण निर्णय प्रक्रिया की जांच करता है, न कि उसके परिणाम की।” इसलिए याचिका खारिज कर दी गई और निगम द्वारा जारी अनुबंध तथा कार्यादेश (work order) वैध माने गए।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

निविदाकारों के लिए
यदि आप मूल्य वार्ता में भाग नहीं लेते या कम दर स्वीकार करने से मना करते हैं, तो आप स्वचालित रूप से प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाते हैं। बाद में अन्य प्रतिभागियों की योग्यता पर सवाल नहीं उठा सकते। आपत्तियाँ समय रहते उठाएँ, बाद में नहीं।

सरकारी अधिकारियों के लिए
यह फैसला यह संदेश देता है कि यदि अधिकारी प्रत्येक आपत्ति का कारणयुक्त उत्तर रिकॉर्ड में दर्ज करते हैं और सार्वजनिक हित में दर घटाते हैं, तो न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करेगा।

जनहित के लिए
कम दरों पर अनुबंध से सरकारी खर्च में बचत होती है। अदालत ने यह भी बताया कि तकनीकी शर्तों की व्याख्या ठीक वैसी ही होनी चाहिए जैसी निविदा दस्तावेज़ में लिखी गई है—ना कम, ना ज़्यादा।

कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निर्णय

• क्या जो निविदाकार मूल्य वार्ता से हट गया, वह बाद में विजेताओं की तकनीकी योग्यता को चुनौती दे सकता है?
नहीं। जिसने कम दर स्वीकार नहीं की, उसने प्रतिस्पर्धा छोड़ दी। उसके पास अब चुनौती देने का अधिकार नहीं है।

• क्या तकनीकी दस्तावेज़ों में कथित कमियाँ निविदा रद्द करने का आधार थीं?
नहीं। सभी दस्तावेज़ निविदा शर्तों के अनुरूप पाए गए। बैंक स्टेटमेंट, जीएसटी रिटर्न, यूडीआईएन, वाहन फिटनेस और पते में अंतर सभी को संतोषजनक माना गया।

• क्या न्यायालय निविदा प्रक्रिया के हर निर्णय की समीक्षा कर सकता है?
नहीं। न्यायालय केवल यह देखता है कि निर्णय पारदर्शी और वैधानिक है, न कि यह कि कोई दूसरा निर्णय बेहतर होता।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

Dheeraj Kumar v. State of Bihar, CWJC No. 6560 of 2024 (Patna High Court, 22.04.2024)
Vikrant Kumar Gupta v. State of Bihar, CWJC No. 16897 of 2023 (Patna High Court, 21.03.2024)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

कोई विशेष निर्णय उद्धृत नहीं किया गया; अदालत ने निविदा कानून के स्थापित सिद्धांतों पर भरोसा किया।

मामले का शीर्षक

Rajesh Ranjan & Anr. v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 2524 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश (K. Vinod Chandran) एवं माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

• याचिकाकर्ताओं की ओर से – श्री उदय कुमार, अधिवक्ता
• प्रतिवादियों (राज्य एवं निगम) की ओर से – श्री विवेक प्रसाद, जीपी–7

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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