निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए बिहार कर्मचारी चयन आयोग (BSSC) को निर्देश दिया कि वह लैब टेक्नीशियन पद की भर्ती में एक अभ्यर्थी को उसकी उच्च शैक्षणिक योग्यता (B.Sc. Hons. Chemistry) के लिए निर्धारित 10 अंक प्रदान करे। आयोग ने पहले यह कहते हुए उसे ये अंक नहीं दिए थे कि उसकी डिग्री संबंधित विषय में नहीं है। न्यायालय ने कहा कि यह तर्क विधिक रूप से अस्थिर है और नियमों के विपरीत है।
मामले की पृष्ठभूमि
बिहार कर्मचारी चयन आयोग ने विज्ञापन संख्या 05010115 (दिनांक 21 जून 2015) जारी किया था, जिसमें लैब टेक्नीशियन के पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे।
विज्ञापन के अनुसार चयन 100 अंकों के आधार पर होना था —
- 85 अंक शैक्षणिक योग्यता, तकनीकी योग्यता और अनुभव के लिए
- 15 अंक साक्षात्कार (Interview) के लिए
इनमें से 10 अंक उच्च योग्यता (B.Sc./M.Sc.) रखने वाले अभ्यर्थियों के लिए निर्धारित किए गए थे।
याचिकाकर्ता (अभ्यर्थी) ने Backward Class Category में आवेदन किया था। उनके पास B.Sc. (Hons.) Chemistry की डिग्री थी, और उन्होंने प्रथम श्रेणी से परीक्षा उत्तीर्ण की थी। फिर भी, आयोग ने उन्हें 28.44 अंक ही दिए, जबकि उनके वर्ग की कटऑफ मार्क्स 31.025 थी। इस प्रकार, उन्हें साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया गया।
जब उन्होंने जानकारी मांगी तो पता चला कि आयोग ने उनकी उच्च योग्यता को “संबंधित विषय” न मानते हुए 10 अंक नहीं दिए।
आयोग का तर्क
BSSC ने जवाब में कहा कि केवल वही अभ्यर्थी 10 अंकों के पात्र हैं जिनकी उच्च डिग्री (B.Sc./M.Sc.) उसी विषय या संबंधित विषय में है, जो लैब टेक्नीशियन डिप्लोमा से जुड़ा हुआ हो। आयोग ने स्वास्थ्य विभाग के पत्र संख्या 1454(4), दिनांक 07.12.2017 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि केवल संबंधित विषयों में डिग्री रखने वाले उम्मीदवार ही इस लाभ के पात्र होंगे।
याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री नारायण सिंह ने कहा कि विज्ञापन में ऐसी कोई शर्त नहीं दी गई थी कि उच्च डिग्री संबंधित विषय में ही होनी चाहिए।
इसलिए आयोग का यह कदम नियम बदलने जैसा है, जो प्रक्रिया के बीच में स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने इसी विज्ञापन से जुड़े एक पूर्व निर्णय — प्रिय रंजन कुमार एवं अन्य बनाम बिहार राज्य (C.W.J.C. No. 4504/2018) — पर भरोसा किया, जिसमें पटना उच्च न्यायालय ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि उच्च योग्यता के अंक सभी को मिलने चाहिए, विषय कोई भी हो।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और विचार
अदालत ने मामले की गहराई से जांच करते हुए बिहार लैब टेक्नीशियन कैडर नियमावली, 2014 (Bihar Lab Technician Cadre Rules, 2014) का अध्ययन किया।
यह नियम संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए हैं।
नियम 7 के अनुसार भर्ती की प्रक्रिया में अंक इस प्रकार दिए जाने थे:
- इंटरमीडिएट (10+2) — 25 अंक
- उच्च शिक्षा (B.Sc./M.Sc.) — 10 अंक
- लैब टेक्नीशियन डिप्लोमा — 25 अंक
- अनुभव — 25 अंक
- साक्षात्कार — 15 अंक
कुल = 100 अंक
अदालत ने कहा कि इन नियमों में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि “उच्च योग्यता केवल उसी विषय में होनी चाहिए जो डिप्लोमा से संबंधित हो।”
इसलिए आयोग का यह तर्क कि रासायन शास्त्र (Chemistry) संबंधित विषय नहीं है, नियमों की भाषा से विरोधाभासी है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि —
- विधिक नियम (Statutory Rules) की शक्ति किसी भी विभागीय पत्र या आदेश से अधिक होती है।
- विभाग या आयोग किसी प्रशासनिक पत्र (administrative circular) से नियमों को बदल नहीं सकते।
- चयन की प्रक्रिया में वही मान्य होगा जो विज्ञापन और नियमावली में लिखा गया है।
अदालत ने यह माना कि आयोग का निर्णय अनुचित है और उसने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर नियमों की गलत व्याख्या की है।
न्यायालय का निर्णय
अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किए:
- आयोग को निर्देश दिया गया कि वह याचिकाकर्ता की B.Sc. (Hons.) Chemistry डिग्री को उच्च योग्यता के रूप में मान्यता दे और इसके लिए 10 अंक प्रदान करे।
- आयोग को तीन सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता का कुल अंक पुनः गणना कर उसकी मेरिट में सुधार करना होगा।
- यदि सुधार के बाद वह कटऑफ के भीतर आता है, तो उसे साक्षात्कार हेतु बुलाया जाएगा।
इस प्रकार, न्यायालय ने सुनिश्चित किया कि अभ्यर्थी को उसका विधिसम्मत लाभ मिले और आयोग की मनमानी रोकी जा सके।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार में चल रही प्रतियोगी भर्तियों में पारदर्शिता और न्यायसंगतता को मजबूत करता है।
- उम्मीदवारों के लिए सबक: अब कोई भी आयोग विज्ञापन की शर्तों को बाद में बदल नहीं सकता। यदि विज्ञापन में किसी प्रतिबंध का उल्लेख नहीं है, तो वह चयन के बाद नहीं जोड़ा जा सकता।
- सरकार के लिए संदेश: विभागों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे नियमों और विज्ञापन के बीच संगति (consistency) बनाए रखें।
- समानता का सिद्धांत: यह फैसला दिखाता है कि सभी उम्मीदवारों को समान अवसर मिलना चाहिए, चाहे उनकी डिग्री संबंधित विषय में हो या नहीं, बशर्ते वे योग्यता रखते हों।
यह फैसला न केवल एक अभ्यर्थी की न्याय की लड़ाई का परिणाम है, बल्कि भविष्य की सभी भर्तियों के लिए एक मार्गदर्शक निर्णय (landmark ruling) है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या आयोग विषय के आधार पर उच्च योग्यता के अंक देने से इनकार कर सकता है?
❌ नहीं। नियमों में ऐसी कोई शर्त नहीं है। आयोग का यह कदम अवैध है। - क्या विभागीय पत्र या आदेश नियमावली से ऊपर हो सकता है?
⚖️ नहीं। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि Statutory Rules सर्वोपरि होते हैं। - क्या अभ्यर्थी को पुनः मूल्यांकन का अधिकार है?
✅ हाँ। आयोग को तीन सप्ताह में सुधार कर साक्षात्कार के लिए बुलाने का आदेश दिया गया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Priya Ranjan Kumar & Another v. State of Bihar & Others, CWJC No. 4504 of 2018 (Patna High Court) — इस फैसले में भी यही तय हुआ था कि उच्च योग्यता के अंक सभी को मिलने चाहिए, चाहे विषय कोई भी हो।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Priya Ranjan Kumar मामला (2018) — अदालत ने उसी को आधार बनाते हुए यह फैसला दिया।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (पटना उच्च न्यायालय, एकल पीठ)
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7785 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 567
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति श्री चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री नारायण सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री सूर्या नारायण पोद्दार
- राज्य की ओर से: श्री एस.डी. यादव (AAG-9), सुश्री शमा सिन्हा
- बी.एस.एस.सी. की ओर से: डॉ. रतन कुमार
निर्णय का लिंक
MTUjNzc4NSMyMDIwIzEjTg==-IrQOwdltt9g=
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