निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने 2 सितम्बर 2021 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में बिहार अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (BUIDCO) द्वारा एक संयुक्त उद्यम कंपनी का अनुबंध रद्द करने और उसे भविष्य के सभी टेंडरों से ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने माना कि यह कार्रवाई बिना सही प्रक्रिया और बिना यथोचित सूचना के की गई थी, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
यह मामला मोतिहारी में मटिजील झील के जीर्णोद्धार, पुनर्विकास और संरक्षण से जुड़ी एक परियोजना से संबंधित था, जिसका ठेका याचिकाकर्ता कंपनी को दिया गया था। लेकिन बाद में BUIDCO ने अनुबंध को रद्द कर दिया, कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया और परफॉर्मेंस गारंटी जब्त करने की चेतावनी भी दी।
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में दलील दी:
- ब्लैकलिस्ट करने से पहले कोई भी नोटिस या कारण बताओ सूचना नहीं दी गई।
- याचिकाकर्ता ने जो स्पष्टीकरण दिया, उसे विचार में नहीं लिया गया।
- परियोजना का डिज़ाइन BUIDCO को देना था, जो दिया ही नहीं गया।
- यकायक कंपनी से कहा गया कि वह स्वयं झील सफाई का मॉडल तैयार करे — यह अनुबंध का हिस्सा नहीं था।
- ड्रेजिंग मशीन चालू न हो पाने के पीछे वैध कारण थे, जिन्हें अनदेखा किया गया।
- जवाब देने के लिए बहुत कम समय दिया गया और उसी दिन आदेश पारित कर दिया गया।
BUIDCO के वकील ने माना कि ब्लैकलिस्ट करने के लिए कोई अलग नोटिस नहीं दिया गया, लेकिन अनुबंध रद्द करने को उचित बताया।
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद यह निष्कर्ष निकाला:
- ब्लैकलिस्ट करना एक गंभीर दंड है और इसका सीधा प्रभाव व्यवसायिक अधिकारों पर पड़ता है। यह बिना नोटिस के नहीं किया जा सकता।
- इस मामले में ब्लैकलिस्टिंग व डीबारमेंट बिना किसी नोटिस के किया गया, जो पूरी तरह अवैध है।
- याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया।
- निर्णय अत्यधिक जल्दबाजी में लिया गया।
इसलिए, पटना हाई कोर्ट ने BUIDCO द्वारा जारी ब्लैकलिस्टिंग, डीबारमेंट और अनुबंध रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया और BUIDCO को निर्देश दिया:
- याचिकाकर्ता का स्पष्टीकरण सुनकर एक नया कारणसिद्ध आदेश पारित करें।
- यदि कंपनी को फिर से ब्लैकलिस्ट करना हो, तो उचित नोटिस देकर वैधानिक प्रक्रिया अपनाई जाए।
- याचिकाकर्ता एक सप्ताह के भीतर अतिरिक्त जवाब दाखिल कर सकता है।
- BUIDCO को चार सप्ताह के भीतर अंतिम निर्णय लेना होगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी ठेकेदारी प्रक्रिया में निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांतों को मज़बूत करता है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि:
- बिना नोटिस के किसी ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट नहीं किया जा सकता।
- सरकारी संस्थाएं दंडात्मक कार्रवाई से पहले स्पष्टीकरण और सुनवाई का मौका दें।
- ठेके की शर्तों से हटकर कोई नया कार्य थोपना अनुचित है।
यह निर्णय विशेष रूप से उन निजी कंपनियों और ठेकेदारों के लिए महत्वपूर्ण है जो सरकारी परियोजनाओं में भाग लेते हैं। यह उन्हें arbitrary कार्रवाई से कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या ठेकेदार को बिना नोटिस के ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
❌ नहीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नोटिस देना और सुनवाई करना अनिवार्य है। - क्या याचिकाकर्ता का जवाब अनुबंध रद्द करने से पहले देखा गया था?
❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि जवाब पर विचार नहीं किया गया और आदेश जल्दबाजी में पारित हुआ। - क्या परियोजना का डिज़ाइन न मिलने से देरी उचित थी?
✔ हां। कोर्ट ने माना कि डिज़ाइन BUIDCO को देना था और याचिकाकर्ता के तर्कों को नजरअंदाज किया गया। - कोर्ट ने क्या राहत दी?
✔ कोर्ट ने ब्लैकलिस्टिंग, डीबारमेंट और अनुबंध रद्द करने का आदेश रद्द किया और BUIDCO को पुनः कानूनी प्रक्रिया अपनाने का निर्देश दिया।
मामले का शीर्षक
M/s Charith – Pawan Kumar (JV) v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 25332 of 2019
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से:
श्री वाई. वी. गिरी (वरिष्ठ अधिवक्ता)
श्री प्रणव कुमार, अधिवक्ता
श्रीमति सृष्टि सिंह, अधिवक्ता - उत्तरदाताओं की ओर से (BUIDCO):
श्री ललित किशोर (वरिष्ठ अधिवक्ता)
श्री रवींद्र कुमार प्रियदर्शी, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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