निर्णय की सरल व्याख्या
इस मामले में करगहर ब्लॉक की एक निर्वाचित प्रमुख (प्रमुख) को राज्य चुनाव आयोग (SEC) द्वारा इस आधार पर अयोग्य घोषित कर दिया गया कि वह उस जाति से संबंधित नहीं हैं जिसके लिए वह सीट आरक्षित थी।
प्रारंभिक विवाद तब शुरू हुआ जब प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) ने एक रिपोर्ट दी जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता “गंधर्व” समाज की सदस्य होने का दावा करती हैं, जो अति पिछड़ा वर्ग (EBC) में आता है, लेकिन वह “नट” जाति से संबंधित हैं क्योंकि उनके भाई “नट” जाति के माने जाते हैं। इस आधार पर आयोग ने बिना पूरी सुनवाई के 25 अगस्त 2017 को याचिकाकर्ता को अयोग्य ठहराया और उन्हें पद से हटा दिया।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि:
- उनकी जाति गलत तरीके से उनके भाई की पहचान के आधार पर तय की गई।
- उन्होंने आयोग को अपना विस्तृत जवाब (शो-कॉज) दिया था, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया।
- उन्हें अपनी बात रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया, जो कि कानूनन जरूरी है।
पटना हाईकोर्ट ने जब मामले की जांच की, तो पाया कि चुनाव आयोग ने सचमुच प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर जवाब का न तो उल्लेख किया गया और न ही उस पर विचार किया गया, जिससे पूरा आदेश एकतरफा बन गया।
बिहार पंचायती राज अधिनियम, 2006 की धारा 136(2) में यह स्पष्ट है कि किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधि को हटाने से पहले उसे पूरा अवसर दिया जाना चाहिए अपनी बात रखने का। कोर्ट ने इसे दोहराते हुए कहा कि जब याचिकाकर्ता ने जवाब दिया था, तो उस पर विचार करना आयोग की कानूनी जिम्मेदारी थी।
इसलिए हाईकोर्ट ने 25 अगस्त 2017 का आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को फिर से उसी पद पर बहाल कर दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य चुनाव आयोग पूरे मामले पर नए सिरे से विचार करे, याचिकाकर्ता सहित सभी पक्षों को सुनवाई का अवसर दे और उसके बाद कानून के अनुसार निर्णय ले।
इसके अलावा, कोर्ट ने पहले दिए गए अंतरिम आदेश को भी दो सप्ताह के लिए बढ़ा दिया, ताकि नए निर्णय के बाद उचित कार्रवाई की जा सके।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि बिना न्यायिक प्रक्रिया के अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। यह निर्णय सरकारी अधिकारियों और चुनाव आयोगों के लिए एक संदेश है कि किसी व्यक्ति को पद से हटाने से पहले उसके द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है।
साथ ही, यह आम मतदाता और उम्मीदवारों के लिए भी यह संदेश देता है कि यदि उनके साथ अन्याय होता है, तो न्यायालय में उचित राहत प्राप्त की जा सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या बिना शो-कॉज पर विचार किए किसी जनप्रतिनिधि को हटाया जा सकता है?
✔ नहीं — कोर्ट ने इसे प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन माना। - क्या किसी व्यक्ति की जाति उसके भाई की पहचान के आधार पर तय की जा सकती है?
✔ नहीं (प्रत्यक्ष निर्णय नहीं हुआ) — लेकिन कोर्ट ने निष्पक्ष सुनवाई की आवश्यकता को दोहराया। - क्या यदि अयोग्यता रद्द हो जाए तो प्रतिनिधि पुनः पद पर बहाल हो सकता है?
✔ हाँ — कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फिर से उनके पद पर बहाल किया।
मामले का शीर्षक
[नाम गोपनीय] बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 7154 of 2017
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 617
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री एस. बी. के. मंगलम, अधिवक्ता (याचिकाकर्ता की ओर से)
- श्री अमित श्रीवास्तव और श्री संजीव निकेश, अधिवक्ता (राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से)
- श्री संदीप कुमार, अधिवक्ता (निजी प्रतिवादी की ओर से)
- श्री रविंद्र कुमार, सहायक अधिवक्ता जनरल (राज्य सरकार की ओर से)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzE1NCMyMDE3IzEjTg==-aDooYPut–am1–7o=
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