निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 6 दिसंबर 2024 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में गया जिले के एक खनन निवेश विवाद से जुड़े मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया। यह मामला वर्ष 2015 में एक व्यक्ति द्वारा खनन नीलामी में निवेश करने और साझेदारी मिलने के वादे पर आधारित था।
शिकायतकर्ता का आरोप था कि याचिकाकर्ताओं ने उन्हें यह कहकर बुलाया कि “गेरा स्टोन ब्लॉक” की नीलामी होने वाली है और वह उनके समूह की कंपनी की ओर से नीलामी में भाग लें। इस वादे पर उन्होंने लगभग ₹4.02 करोड़ रुपये का निवेश किया। यह राशि पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर दी गई थी ताकि शिकायतकर्ता नीलामी में भाग ले सकें। नीलामी भी कंपनी के नाम से सफल हुई।
हालांकि, उसके बाद याचिकाकर्ताओं ने न तो उन्हें कंपनी में हिस्सा दिया और न ही उनका पैसा लौटाया। वर्ष 2023 में शिकायतकर्ता ने कानूनी नोटिस भेजा और फिर अक्टूबर 2023 में आईपीसी की धारा 406 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज करवाई।
याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय में यह दलील दी कि शिकायतकर्ता को पैसा और सामग्री पहले ही वापस कर दी गई थी। कंपनी के खातों में यह दर्ज है कि केवल ₹15 लाख के आसपास ही बकाया है, और वह भी असुरक्षित ऋण के रूप में। इसके अलावा, विवाद पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का है न कि आपराधिक।
अदालत ने पाया कि लेन-देन 2015-16 में हुआ था, जबकि एफआईआर 2023 में दर्ज की गई, यानी 7-8 वर्षों बाद। शिकायतकर्ता ने इतने लंबे समय तक कोई कानूनी कदम नहीं उठाया। सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए, पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि इस तरह की विलंबित एफआईआर जो कि दीवानी विवाद पर आधारित है, वह आपराधिक कानून का दुरुपयोग है।
अतः, अदालत ने गया मुफस्सिल थाना कांड संख्या 1094/2023 को रद्द कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला आम लोगों के लिए यह स्पष्ट संदेश देता है कि वित्तीय या साझेदारी से जुड़ा कोई विवाद अगर दीवानी प्रकृति का है, तो उसे आपराधिक मामला बनाकर पुलिस और अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।
सरकार और पुलिस विभाग के लिए भी यह निर्देशात्मक है कि इस तरह के दीवानी विवादों को प्राथमिक जांच में ही समझकर उचित श्रेणी में रखा जाए। जनता को भी यह सीखने को मिलता है कि समय पर कानूनी कार्रवाई करना आवश्यक है; वर्षों बाद एफआईआर करने से मामला कमजोर हो सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों में कोई आपराधिक कृत्य सिद्ध होता है?
➤ नहीं, यह पूरा विवाद दीवानी प्रकृति का है। - क्या 7–8 वर्षों की देरी से दर्ज की गई एफआईआर वैध है?
➤ नहीं, यह अनुचित देरी है जो दुर्भावना को दर्शाती है। - क्या एफआईआर का उद्देश्य दीवानी विवाद को जबरन आपराधिक रंग देना है?
➤ हां, अदालत ने इसे कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय / न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Hasmukhlal D Vora v. State of Tamil Nadu, (2022) 15 SCC 164
- Chanchalpati Das v. State of West Bengal, 2023 SCC Online SC 650
- Deepak Kumar Shrivas v. State of Chhattisgarh, 2024 SCC Online SC 158
- Prof R K Vijayasarathi v. Sudha Seetharam, (2019) 16 SCC 739
- Kunti v. State of Uttar Pradesh, (2023) SCC 109
- Paramjeet Batra v. State of Uttarakhand, (2013) 11 SCC 673
- Vinod Natesan v. State of Kerala, (2019) 2 SCC 401
मामले का शीर्षक
अज्ञात बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Criminal Writ Jurisdiction Case No. 1 of 2024
उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 156
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरविंद सिंह चंदेल
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सूरज समदर्शी, श्री संजय झा, श्रीमती सिमरन कुमारी
- राज्य की ओर से: श्री दीपक कुमार, सहायक सरकारी अधिवक्ता
- उत्तरदाता संख्या 6 (शिकायतकर्ता) की ओर से: श्री अंशुल, श्री अविनाश कुमार सिंह
निर्णय का लिंक
MTYjMSMyMDI0IzEjTg==-mgU3W1MF3mU=
“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”