पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार द्वारा किए गए इंजीनियरों की समय पूर्व सेवानिवृत्ति के निर्णय को वैध ठहराते हुए पांच अलग-अलग अपीलों में सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है। यह निर्णय बिहार सेवा कोड के नियम 74 के तहत लिए गए आदेशों को सही ठहराता है, जिसमें राज्य सरकार को जनहित में कर्मचारियों को सेवानिवृत्त करने का अधिकार है।
निर्णय की सरल व्याख्या
इस मामले में भवन निर्माण विभाग, बिहार सरकार ने 18 जून 2020 की अधिसूचना के माध्यम से पाँच अभियंताओं को समय पूर्व सेवानिवृत्त कर दिया था। इन सभी अधिकारियों ने अपनी सेवानिवृत्ति को चुनौती देते हुए पटना उच्च न्यायालय में अलग-अलग रिट याचिकाएं दायर की थीं। इन याचिकाओं में उन्होंने तर्क दिया कि उनके खिलाफ कोई विभागीय कार्यवाही नहीं हुई थी, न ही कोई कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था और उन्हें बिना स्पष्टीकरण दिए सेवा से हटाया गया, जो कानून का उल्लंघन है।
एकल न्यायाधीश ने इन तर्कों से सहमत होते हुए आदेश को रद्द कर दिया था। इसके विरुद्ध बिहार सरकार ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष पांच अपीलें दायर कीं।
खंडपीठ, जिसमें माननीय मुख्य न्यायाधीश और माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी शामिल थे, ने यह स्पष्ट किया कि उक्त आदेश नियम 74 के अंतर्गत विधिवत पारित किए गए थे। विभाग द्वारा गठित समिति ने सभी अभियंताओं की संपूर्ण सेवा विवरणों की समीक्षा की और यह निष्कर्ष निकाला कि उनका सेवा में बने रहना जनहित में नहीं है। इसके आधार पर उन्हें तीन महीने का वेतन और सभी सेवानिवृत्ति लाभ के साथ सेवानिवृत्त कर दिया गया।
न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले Central Industrial Security Force vs. HC (GD) Om Prakash [(2022) 5 SCC 100] का उल्लेख करते हुए कहा कि समय पूर्व सेवानिवृत्ति दंडात्मक नहीं है और इसके लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों जैसे सुनवाई का अवसर देना आवश्यक नहीं है।
अंततः पटना हाई कोर्ट ने एकल पीठ द्वारा पारित सभी आदेशों को रद्द करते हुए राज्य सरकार की सभी अपीलों को स्वीकार कर लिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला राज्य सरकारों को यह स्पष्ट अधिकार देता है कि वे जनहित में, सेवा नियमों के तहत, किसी भी कर्मचारी को समय पूर्व सेवानिवृत्त कर सकते हैं। यह निर्णय सरकारी सेवाओं में अनुशासन बनाए रखने के लिए एक सशक्त उपकरण के रूप में काम करेगा।
यह उन कर्मचारियों के लिए भी एक संकेत है कि उनके सेवा काल की समग्र समीक्षा की जा सकती है, और केवल पदोन्नति या समय-समय पर अच्छे मूल्यांकन का मतलब यह नहीं कि पुरानी त्रुटियाँ समाप्त हो गई हैं। सेवा रिकॉर्ड की गंभीरता से जांच होगी, और यदि जनहित में आवश्यक समझा गया, तो सरकार सेवानिवृत्ति का निर्णय ले सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या बिना कारण बताओ नोटिस या आरोप पत्र के समय पूर्व सेवानिवृत्ति वैध है?
- निर्णय: हां, नियम 74 के अंतर्गत वैध है।
- क्या यह आदेश दंडात्मक या कलंकित करने वाला था?
- निर्णय: नहीं, इसे जनहित में पारित किया गया और यह दंडात्मक नहीं है।
- क्या पदोन्नति के बाद पुराने प्रतिकूल टिप्पणी अप्रासंगिक हो जाते हैं?
- निर्णय: नहीं, संपूर्ण सेवा रिकॉर्ड को ध्यान में रखा जा सकता है।
- क्या अदालत ऐसे आदेशों की न्यायिक समीक्षा कर सकती है?
- निर्णय: केवल यदि आदेश मनमाना, दुर्भावनापूर्ण या बिना आधार के हो।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Central Industrial Security Force vs. HC (GD) Om Prakash, (2022) 5 SCC 100
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Union of India v. V.P. Seth
- Union of India v. Dulal Dutt
- Rajasthan State Road Transport Corporation v. Babu Lal Jangir
- Pyare Mohan Lal v. State of Jharkhand
- Ram Murti Yadav v. State of Uttar Pradesh, (2020) 1 SCC 801
मामले का शीर्षक
राज्य बनाम अभियंता गण (सामूहिक अपील)
केस नंबर
LPA No. 1468 of 2023 with LPA Nos. 1450, 1451, 1452, 1453 of 2023
उद्धरण (Citation)- 2025 (1) PLJR 147
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश एवं माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता (राज्य सरकार) की ओर से: श्री पी.के. शाही, महाधिवक्ता; श्रीमती बिनिता सिंह, स्थायी अधिवक्ता 28; श्री कुमरेश सिंह, सहायक अधिवक्ता; श्री निशांत कुमार झा, श्री विवेक आनंद अमृतेश
- प्रतिवादी (याचिकाकर्ता अभियंता) की ओर से: श्री प्रभु नाथ पाठक, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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