पटना हाई कोर्ट 2021 का फैसला: हत्या मामले में परस्पर विरोधी ज़मानत आदेश और न्यायिक सुसंगति

पटना हाई कोर्ट 2021 का फैसला: हत्या मामले में परस्पर विरोधी ज़मानत आदेश और न्यायिक सुसंगति

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला पटना जिले के दानियावां थाना क्षेत्र की एक गंभीर घटना से जुड़ा है। एफआईआर के अनुसार, दस आरोपियों ने पहले से योजना बनाकर एक महिला, उसकी बेटियों और परिवार पर हमला किया। आरोपियों के पास लाठी, कट्टा (देशी पिस्तौल) और लोहे की रॉड जैसे हथियार थे। हमले में महिला गंभीर रूप से घायल हुई और बाद में उसकी मौत हो गई, जबकि अन्य पीड़ितों को भी गंभीर चोटें आईं।

इन आरोपियों में पुतुर पासवान और बृंद पासवान भी शामिल थे। एफआईआर में साफ कहा गया कि पुतुर पासवान ने कट्टा से और बृंद पासवान ने लोहे की रॉड से हमला किया। हमले में सूचना देने वाली महिला की माँ की मौत हो गई और अन्य घायल हुए।

ज़मानत पर विवाद

  • नवंबर 2019 में, प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पटना सिटी ने पुतुर पासवान की अग्रिम जमानत (anticipatory bail) अर्जी खारिज कर दी, यह कहते हुए कि आरोप गंभीर हैं और उनकी सीधी भूमिका सामने आई है।
  • लेकिन उसी न्यायाधीश ने एक महीने बाद, दिसंबर 2019 में, बृंद पासवान को अग्रिम जमानत दे दी, जबकि उन पर लगे आरोप बिल्कुल समान थे।

इस विरोधाभास को पटना हाई कोर्ट ने गंभीरता से लिया और स्वतः संज्ञान (suo motu) लेकर इस मामले को क्रिमिनल रिवीजन में बदल दिया।

हाई कोर्ट का विश्लेषण

कोर्ट ने कहा—

  • पुतुर और बृंद दोनों के खिलाफ आरोप एक जैसे हैं: दोनों ने हथियारों से हमला किया, जिससे मौत और गंभीर चोटें हुईं।
  • ट्रायल कोर्ट ने पुतुर की ज़मानत खारिज करते समय इन्हीं तथ्यों को दर्ज किया, लेकिन बृंद को ज़मानत देते समय इन्हें नजरअंदाज कर दिया।
  • ज़मानत पर फैसला करते समय आरोपों की गंभीरता, अपराध का स्वरूप और आरोपी की भूमिका को ध्यान में रखना जरूरी है।
  • एक ही न्यायाधीश द्वारा एक ही मामले में परस्पर विरोधी आदेश देना न्यायिक विवेक की कमी और असंगति दर्शाता है।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले सिद्धाराम सटलिंगप्पा मेहत्रे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2011) 1 SCC 694 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि गंभीर आरोपों और आरोपी की विशेष भूमिका को देखते हुए अग्रिम जमानत पर सावधानी से निर्णय लेना चाहिए।

निर्णय

पटना हाई कोर्ट ने कहा कि बृंद पासवान को दी गई ज़मानत कानूनन अस्थिर और अनुचित है, क्योंकि यह बिना पर्याप्त कारण और तथ्यों की अनदेखी करते हुए दी गई थी। इसलिए:

  • बृंद पासवान की अग्रिम जमानत रद्द कर दी गई
  • उन्हें चार सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण कर नियमित जमानत की अर्जी लगाने का निर्देश दिया गया।
  • कोर्ट ने यह भी कहा कि चूँकि एक ही न्यायिक अधिकारी ने विरोधाभासी आदेश दिए हैं, इसलिए उनके आचरण पर प्रशासनिक स्तर पर जांच की आवश्यकता हो सकती है। इस संबंध में आदेश मुख्य न्यायाधीश को भेजा गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • न्यायिक सुसंगति की आवश्यकता: ज़मानत जैसे मामलों में निष्पक्षता और एकरूपता जरूरी है। विरोधाभासी आदेश जनता के विश्वास को कमज़ोर करते हैं।
  • न्यायिक जवाबदेही: कोर्ट ने संकेत दिया कि असंगत आदेश देने वाले न्यायिक अधिकारियों की जांच भी की जा सकती है।
  • गंभीर अपराधों में कठोर दृष्टिकोण: हत्या और गंभीर चोटों जैसे मामलों में अग्रिम जमानत अत्यधिक सावधानी से दी जानी चाहिए।
  • निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शन: यह फैसला बताता है कि बिना कारण और तथ्यों को अनदेखा कर दिया गया ज़मानत आदेश टिक नहीं पाएगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या बृंद पासवान को अग्रिम जमानत देना उचित था जबकि पुतुर पासवान की अर्जी समान आरोपों के कारण खारिज की गई थी?
    ➡ नहीं। आदेश विरोधाभासी और तथ्यहीन था।
  • क्या एक ही न्यायाधीश द्वारा एक ही मामले में विरोधाभासी आदेश वैध हैं?
    ➡ नहीं। यह न्यायिक विवेक की कमी दर्शाता है और अस्वीकार्य है।
  • कोर्ट ने क्या आदेश दिया?
    ➡ ज़मानत रद्द की गई, आत्मसमर्पण का निर्देश दिया गया और मामले को प्रशासनिक जांच हेतु मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा गया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • सिद्धाराम सटलिंगप्पा मेहत्रे बनाम महाराष्ट्र राज्य, (2011) 1 SCC 694

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • सिद्धाराम सटलिंगप्पा मेहत्रे बनाम महाराष्ट्र राज्य, (2011) 1 SCC 694

मामले का शीर्षक

The State of Bihar v. Brind Paswan

केस नंबर

Criminal Revision No. 378 of 2020 (Daniyawan P.S. Case No. 171 of 2019)

उद्धरण (Citation)

2021(1)PLJR 552

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति बिरेंद्र कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • राज्य की ओर से: श्री दिलीप कुमार सिन्हा, ए.पी.पी.
  • प्रतिवादी की ओर से: श्री अरविंद कुमार सिंह, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NyMzNzgjMjAyMCMxI04=-Vs6ppXDbGCM=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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