निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक अहम मामले में फैसला सुनाया, जो किशनगंज इंजीनियरिंग कॉलेज (Katihar Engineering College) के निर्माण कार्य से जुड़ा था।
एक निजी निर्माण कंपनी ने सरकार के भवन निर्माण विभाग के साथ कॉलेज बनाने का ठेका लिया था। लेकिन 17 जुलाई 2020 को विभाग के कार्यपालक अभियंता ने अचानक एक आदेश जारी कर ठेका रद्द (terminate/rescind) कर दिया। इस आदेश में न केवल ठेका खत्म किया गया बल्कि अंतिम माप (final measurement) की तारीख भी तय कर दी गई।
कंपनी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि:
- ठेका समझौते की धारा 14 के अनुसार, ठेका रद्द करने से पहले नोटिस देना अनिवार्य था। लेकिन बिना किसी शो-कॉज नोटिस के सीधे ठेका रद्द कर दिया गया।
- काम में देरी का कारण कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन (23 मार्च से 5 जून 2020) था, जिस दौरान निर्माण कार्य पूरी तरह ठप रहा।
- लॉकडाउन खुलने के बाद भी काम धीरे-धीरे ही शुरू हो पाया। ऐसे में ठेका रद्द करना मनमाना और अन्यायपूर्ण है।
- कंपनी ने कोर्ट से 6 महीने का अतिरिक्त समय देने की मांग की ताकि बाकी काम पूरा किया जा सके।
कंपनी ने पहले के कुछ फैसलों का भी हवाला दिया, जैसे CWJC No. 7130 of 2020 (निर्णय दिनांक 07.08.2020), जिसमें अदालत ने कहा था कि बिना नोटिस दिए ठेका रद्द करना प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) और अनुबंध शर्तों का उल्लंघन है। इसी तरह CWJC Nos. 7234/2020 और 7240/2020 में भी कोर्ट ने ऐसे आदेश रद्द किए थे।
राज्य सरकार अदालत में आई लेकिन यह तथ्य नहीं झुठला पाई कि ठेका रद्द करने से पहले कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था।
हाई कोर्ट ने साफ कहा कि किसी भी अनुबंध को समाप्त करने से पहले दोनों पक्षों को सुनना जरूरी है। यह न केवल अनुबंध की शर्तों की मांग है बल्कि प्राकृतिक न्याय का मूल सिद्धांत भी है।
अदालत ने 17 जुलाई 2020 का ठेका रद्द करने का आदेश रद्द कर दिया। साथ ही यह छूट भी दी कि अगर सरकार चाहे तो नया नोटिस जारी करके कानूनी तरीके से ठेका रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- ठेकेदारों और कंपनियों के लिए: यह फैसला उन्हें यह भरोसा देता है कि सरकार मनमाने ढंग से ठेके रद्द नहीं कर सकती। पहले नोटिस देना और जवाब सुनना जरूरी है।
- सरकार के लिए: अदालत ने यह साफ किया कि सरकार के पास अनुबंध तोड़ने का अधिकार है, लेकिन वह तभी वैध होगा जब कानूनी प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय का पालन किया जाए।
- जनता के लिए: इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स में यह फैसला सुनिश्चित करता है कि ठेके विवाद के कारण काम ठप न हो और पारदर्शिता बनी रहे।
- कानूनी दृष्टिकोण से: यह फैसला दोहराता है कि कोविड-19 जैसी असाधारण परिस्थितियों में भी सरकार प्रक्रियाओं को दरकिनार नहीं कर सकती।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या सरकार बिना नोटिस दिए ठेका रद्द कर सकती है?
निर्णय: नहीं। कोर्ट ने कहा कि यह अनुबंध की धारा 14 और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है। - क्या कोविड-19 महामारी के कारण हुई देरी का असर ठेके पर पड़ा?
पर्यवेक्षण: कोर्ट ने माना कि लॉकडाउन से काम प्रभावित हुआ था, लेकिन मुख्य आधार यह रहा कि ठेका बिना नोटिस के रद्द किया गया, जो कानूनी रूप से अवैध है। - अदालत ने क्या राहत दी?
निर्णय: ठेका रद्द करने का आदेश 17 जुलाई 2020 को अवैध करार दिया गया और रद्द किया गया। हालांकि सरकार चाहे तो नया नोटिस देकर उचित प्रक्रिया अपना सकती है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- CWJC No. 7130 of 2020, पटना हाई कोर्ट (निर्णय दिनांक 07.08.2020) — बिना नोटिस ठेका रद्द करना अवैध।
- CWJC Nos. 7234/2020 और 7240/2020, पटना हाई कोर्ट — इसी तरह के मामलों में भी ठेका रद्द करने के आदेश निरस्त।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Whirlpool Corporation v. Registrar of Trade Marks (1998) 8 SCC 1 — अनुबंध मामलों में भी रिट याचिका की गुंजाइश।
- Popcorn Entertainment & Anr. v. City Industrial Development Corporation (2007) 9 SCC 593 — प्राकृतिक न्याय के पालन की अनिवार्यता।
मामले का शीर्षक
Kashish Developers Limited बनाम State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7933 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 197
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति विकास जैन
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री पी.के. शाही, वरिष्ठ अधिवक्ता, श्री रंजीत कुमार के साथ — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री महेन्द्र Pd. वर्मा, AC to SC-20 — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
MTUjNzkzMyMyMDIwIzEjTg==-S98TpV–ak1–xO–am1–8=
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