निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने 2021 में एक अहम मामले पर फैसला दिया, जिसमें यह सवाल था कि क्या नगर परिषद (नगर पंचायत, मनेर) के पार्किंग शुल्क वसूली के अनुबंध को कोविड-19 लॉकडाउन के कारण असंभव माना जा सकता है।
याचिकाकर्ता को वित्तीय वर्ष 2020–21 के लिए पार्किंग शुल्क वसूलने का ठेका मिला था। आदेश 18 मार्च 2020 को जारी हुआ और काम 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 तक होना था। लेकिन काम शुरू होने से पहले ही 24 मार्च 2020 को पूरे देश में लॉकडाउन लागू हो गया। लॉकडाउन और परिवहन पर लगे प्रतिबंधों की वजह से गाड़ियाँ सड़कों पर नहीं चल रही थीं, पार्किंग स्थल खाली थे और वसूली करना संभव नहीं था।
याचिकाकर्ता ने पहले ही एक बड़ी रकम अग्रिम/सिक्योरिटी के रूप में जमा कर दी थी। बाद में उसने नगर परिषद से आग्रह किया कि या तो अनुबंध को छह महीने आगे बढ़ा दिया जाए ताकि नुकसान की भरपाई हो सके, या फिर जमा राशि लौटा दी जाए। अगस्त 2020 में कई बार लिखित निवेदन किया गया, जिसमें बताया गया कि परिवहन सेवा बंद है और वसूली पूरी तरह असंभव है।
लेकिन नगर परिषद ने याचिकाकर्ता की बात मानने के बजाय अक्टूबर 2020 में अनुबंध रद्द कर दिया और बाकी बोली की राशि जमा करने का आदेश दिया। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता का एक चेक बाउंस हुआ है और स्टाम्प ड्यूटी भी नहीं चुकाई गई।
हाई कोर्ट ने इस मामले में “अनुबंध की निरर्थकता” (Doctrine of Frustration) के सिद्धांत को लागू किया। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 56 के तहत अगर कोई अनुबंध बनने के बाद ऐसी घटना हो जाती है, जिसे कोई भी पक्ष न तो रोक सकता है और न ही पहले से सोच सकता है, और जिसकी वजह से अनुबंध का उद्देश्य ही खत्म हो जाए, तो अनुबंध शून्य (Void) माना जाएगा।
अदालत ने कहा कि काम 1 अप्रैल से शुरू होना था, लेकिन उससे पहले ही 24 मार्च को लॉकडाउन लग गया और यातायात पूरी तरह ठप हो गया। पार्किंग स्थल खाली हो गए, जिसका मतलब था कि अनुबंध का मूल उद्देश्य – गाड़ियों से शुल्क वसूलना – ही समाप्त हो गया। इस वजह से अनुबंध निभाना व्यावहारिक रूप से असंभव था।
याचिकाकर्ता ने पहले ही उचित प्रस्ताव दिए थे – या तो छह महीने की अवधि बढ़ा दी जाए या फिर जमा रकम लौटा दी जाए। इसके बावजूद अधिकारियों ने 29 अक्टूबर 2020 को अनुबंध रद्द कर दिया।
हाई कोर्ट ने इसे अनुबंध की निरर्थकता माना और कहा कि जब अनुबंध ही असंभव हो गया तो किसी पक्ष को अनुचित लाभ नहीं मिलना चाहिए। अंततः कोर्ट ने रद्द करने का आदेश निरस्त कर दिया और जमा राशि लौटाने का निर्देश दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- आम जनता और छोटे ठेकेदारों के लिए: यह फैसला राहत देता है। अगर कोविड-19 जैसी अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण कोई सरकारी अनुबंध असंभव हो जाता है, तो अदालतें न्यायपूर्ण समाधान देंगी। ठेकेदारों से अनुचित वसूली नहीं की जा सकती।
- नगर निकाय और सरकारी विभागों के लिए: इस फैसले से यह संदेश मिलता है कि ऐसे मामलों में संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। महामारी या लॉकडाउन जैसे हालात में अधिकारियों को नीतिगत रूप से राहत देने के प्रावधान बनाने चाहिए, न कि केवल रद्दीकरण और वसूली का रास्ता अपनाना चाहिए।
- अनुबंध नीति और मसौदा तैयार करने में: यह मामला दिखाता है कि अनुबंधों में “Force Majeure” (अप्रत्याशित परिस्थिति) का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। महामारी, लॉकडाउन और सरकारी प्रतिबंध जैसी परिस्थितियों के लिए प्रावधान होना चाहिए ताकि भविष्य में विवाद न हो।
- न्यायिक दृष्टिकोण के लिए: यह फैसला उच्चतम न्यायालय के सिद्धांतों के अनुरूप है और बिहार में ऐसे कई मामलों के लिए मार्गदर्शन करेगा, जहाँ कोविड-19 ने अनुबंध निभाना असंभव कर दिया था।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या कोविड-19 लॉकडाउन के कारण पार्किंग शुल्क वसूली का अनुबंध असंभव हो गया?
- निर्णय: हाँ। लॉकडाउन और यातायात प्रतिबंधों ने अनुबंध के मूल उद्देश्य को समाप्त कर दिया।
- कारण: धारा 56 के तहत अनुबंध की “असंभवता” केवल शाब्दिक असंभवता नहीं है, बल्कि व्यावहारिक और उद्देश्यगत असंभवता भी इसमें शामिल है।
- क्या नगर परिषद का अनुबंध रद्द करना और शेष राशि माँगना उचित था?
- निर्णय: नहीं। यह आदेश निरस्त कर दिया गया।
- कारण: अधिकारी याचिकाकर्ता की परिस्थिति पर विचार किए बिना यांत्रिक तरीके से कार्य कर रहे थे।
- क्या याचिकाकर्ता जमा राशि लौटाने का हकदार था?
- निर्णय: हाँ। कोर्ट ने राशि लौटाने का आदेश दिया।
- कारण: जब अनुबंध असंभव हो गया, तो राशि वापस करना न्यायसंगत था ताकि किसी पक्ष को अनुचित लाभ न हो।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Delhi Development Authority v. Kenneth Builders & Developers Pvt. Ltd., (2016) 13 SCC 561
- Satyabrata Ghose v. Mugneeram Bangur & Co., AIR 1954 SC 44
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Delhi Development Authority v. Kenneth Builders & Developers Pvt. Ltd., (2016) 13 SCC 561
- Satyabrata Ghose v. Mugneeram Bangur & Co., AIR 1954 SC 44
मामले का शीर्षक
Petitioner v. Urban Development & Housing Department & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 8307 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 226
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अपूर्व हर्ष, अधिवक्ता; श्री मनु त्रिपुरारी, अधिवक्ता
- प्रतिवादी संख्या 2 (कार्यपालक पदाधिकारी, नगर पंचायत, मनेर) की ओर से: श्री अनिल कुमार, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से (A.C. to Standing Counsel-4): श्री उपेंद्र प्रताप सिंह
निर्णय का लिंक
MTUjODMwNyMyMDIwIzkjTg==-B7kDmaX9LUM=
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